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4. आत्मकथ (जयशंकर प्रसाद) कक्षा 10 हिंदी | cbse Atmakatha class 10 bhavarth

November 20, 2022 by Raja Shahin 1 Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ एक ‘आत्मकथ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse Atmakatha class 10 bhavarth)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। cbse Atmakatha class 10 bhavarth Chapter 4

cbse Atmakatha class 10 bhavarth

4. आत्मकथ (जयशंकर प्रसाद)

मधुप गुन-गुन कर कह जाता कौन क हानी यह अपनी,
मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी आज घनी।
इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य जीवन-इतिहास

अर्थ- आत्मकथ कविता मे कवि अपनी आत्मकथा नहीं लिखने के कारणों (वजह) को बताया है। सभी व्यक्ति के मन की तुलना भौरे से की गई है। क्योंकि भौरा गुनगुणाकर हर जगह अपनी कहता रहता है गिरते हुए पत्तियों की ओर बताकर कवि कहते हैं कि आज पेड़ो पर सारी पत्तियाँ खिली हुई दिखाई दे रही है और कुछ ही देर में मुरझाकर गिर रही है यानी कि उनका जिवन समाप्त हो रहा है। ये सारे संसार में इसी तरह अंतहृीन नील आकाश के नीचे हरपल जीवन का इतिहास बन भी रहा है और बिगड़ भी रहा हैं।

यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपहास
तब भी कहते हो-कह डालूँ दुर्बलता अपनी बीती।
तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।

अर्थ- कवि कहते है कि इस दुनिया में सब कुछ चंचल है, कुछ भी रूका हुआ नहीं है यहाँ के सभी लोग एक दूसरे के मजाक बनाने में लगे है, सभी लोगो को एक दूसरे के अंदर कमी नजर आती है लेकिन खुद के अंदर झांक के नही देखता कि मेरे अंदर क्या कमी है। सब जानते हुए भी लोग मेरा आत्मकथा सुनना, पढ़ना चाहते है जानना चाहते है पर मैं क्यों लिखु क्यों बताऊँ क्योंकि आपलोगों को हमारी कहानी सुनकर मजा आएगा। लेकिन जब ये जानोगे मेरे पास दुःख है कभी सुख मिला ही नहीं।

किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते मेरी हँसी उड़ाऊँ मैं।
भूले अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं

कवि कहते है कि उनका जिवन एक सपना की तरह छलावा है क्योंकि जो वह पाना चाहते है वो चीज उनके पास आकर भी उनकों नहीं मिल पाता है उनसे दूर चला जाता हैं। इसलिए वह अपनी जिवन की बातो को बताकर संसार में अपना मजाक नहीं बनाना चाहते हैं। इसलिए कवि वह अपनी जिवन की बातो को नहीं बताना चाहते हैं।

उज्जवल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिला कर हँसते होने वाली उन बातो की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।

अर्थ- जैसे सपने में लोगो को अपनी मन के हिसाब से चीजे मिल जाने से वह खुश हो जाता है उसी तरह कवि के जिवन में भी एक बार प्रेम आया था लेकिन वह सपनों की तरह चला गया। और उनकी प्रेम को पाना उम्मीद बन कर ही रह गई। और वह सुखी होने का सपना देखते ही रह गए। इसलिए कवि कहते है अगर तुम मेरे एहसासो से जीवन का घड़ा भरने जा रहे हो तो मैं अपनी जीवन की गाथा कैसे सुना सकता हूँ।

जिसके अरूण-कोपोलों की  मतवाली सुंदर छाया में।
अनुरागी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ?

अर्थ- कवि अपने प्रेयसी के सुंदर लाल गालों को बताते हुए कहते है मानो कि जाती रात और आती सुबह की जो लाली आसमान में दिखाई पड़ती है वही लाली मेरी प्रेयसी के सुंदर गालों पे झलकती थी। लेकिन मेरी असली जीवन में वो आने से पहले ही चली। कवि को मिलने से पहले ही उसकी प्रेयसी उससे दूर चली गई। इसलिए कवि कहते है तुम मेरे जीवन के कथा को सुनकर क्या करोगे इसलिए वह अपने जीवन को छोटा समझकर अपनी कहानी नहीं सुनाना चाहते हैं।

क्या यह अच्छा नहीं कि औरो की सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी भोली आत्म-कथ
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।   

अर्थ- इसमें कवि की सादरी का प्रमाण मिलता है। कवि दूसरों के जीवन की कथाओं को सुनने और जानने में ही अपनी भलाई समझते है। कवि कहते हैं कि उनका जीवन का कहानी सुनने का समय नहीं आया है। कवि ये भी कहते है कि मेरे अतितों को मत कुरेदो, उन्हे मौन (मन) में ही रहने दों।cbse Atmakatha class 10 bhavarth

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Filed Under: Hindi

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Comments

  1. Raj says

    July 20, 2023 at 4:50 pm

    Not so effective

    Reply

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