इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पाठ एक ‘पूस की रात’ (Push ki Raat Kahani) कहानी का सारांश और सम्पूर्ण कहानी को पढ़ेंगेंं।
1. पूस की रात कहानी का सारांश
कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा लिखा गया कहानी ‘पूस की रात’ एक ग्रामीण किसान के जीवन से संबंधित है। इस कहानी के मदद से हमें यह पता चलता है कि एक हल्कू नाम का व्यक्ति जिसके पास अपना जीवन यापन करने के लिए थोड़ी सी खेत है जिससे उनका अपना पालन पोषण चल जाता है लेकिन खेत से जो भी आमदनी होती हैं वह उसमें से कुछ रुपया तो कर्ज चुकाने में ही चला जाता है।
सर्दियों में उसने मजदूरी कर तीन रुपए इकट्ठा किया था लेकिन वह तीन रुपए हल्कू ने अपने महाजन को दे दिया। इस बात को हल्कू की पत्नी बहुत ज्यादा विरोध करती है क्योंकि उसका मानना है कि हमें जो इतना दिनों से तीन रुपए इकट्ठा किया और इस पूस के महीने में जाड़े यानी ठंड से बचने के लिए कंबल खरीदने के लिए रखे थे। हल्कू की पत्नी मुन्नी के मना करने पर हल्कू कहता है कि अगर मैं महाजन का पैसा नहीं लौटाया, तो वह मुझे गाली देगा। महाजन को देखकर हल्कू की पत्नी मुन्नी लाचार हो जाती है और तीन रुपए उसे मजबूरन देना पड़ता है। जब हल्कू अपना पैसा महाजन को देने जा रहा था, तो ऐसा लग रहा था कि वह अपना कलेजा काढ़ कर देने जा रहो हो। क्योंकि उसने कंबल खरीदने के लिए मजदूरी करके पाई-पाई इकट्ठा किया था।
हल्कू अपने खेत की रखवाली करने के लिए अपना कुत्ता जबरा के साथ चल दिया। पूस का महीना था और ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। तारे टिमटिमा रहे थे। ठंड से हल्कू काँप रहा था। अपने अकेलापन को दूर करने के लिए अपने साथ पालतू कुत्ता जबरा को भी साथ लाया था। उस समय हल्कू अपने जबरा के साथ अपना मन बहलाता है। हल्कू के पास गर्म वस्त्र नहीं है। उसके पास सिर्फ एक चादर ही है। उस चादर से तो कुछ भी नहीं होता फिर उसके मन में एक विचार आता है और वह पास ही के आम के बगीचे में जाता है और गिरे सभी पति्तयों को इकट्ठा करता है और अलाव जलाता है और अलाव के आग से इसका शरीर गर्म हो जाता है और ठंडी से उस समय तक राहत मिलती है जब तक आग जलती रहती है तब तक उसका शरीर गर्म रहता है ठंड से मुक्त पाता है।
जब आग बुझ जाती है और राख बन जाता है तो फिर भी उसका शरीर थोड़ा-थोड़ा गर्म रहता है जिसे वह अपना चादर ओढ़ कर बैठ जाता है। हल्कू रात काटने के लिए चिलम पिता रहता है। आधी रात होती है और आग जलकर खत्म हो जाती है। हल्कू आग के पास ही लेट जाता है। उसके बगल में जबरा बैठ कर खेतों की रखवारी कर रहा होता है। हल्कू के सो जाने के बाद खेतों में नीलगाय घुसकर फसल चरने लगती है। हल्कू का कुत्ता बहुत होशियार था।
जबरा नीलगाय के खेत में आने से सतर्क हो जाता है और नीलगाय पर भौकना शुरू कर देता है। हल्कू को भी मालूम पड़ जाता है कि उसके खेतों में नीलगाय आ चुकी है। हल्कू को नीलगाय की चरने की आवाज भी आती है उसे सुनाई देती है। वह अपने मन को दिलासा दिलाता है शायद यह मेरा भ्रम है। मेरे जबरा के होते कोई भी जानवर हमारे फसल में आ नहीं सकता है फिर भी उठता है और जैसे ही वह दो-तीन कदम आगे चलता है। ठंडी हवा इतना तेजी से चलता है फिर वह अपने स्थान पर चादर ओढ़ कर बैठ जाता है और उसे नींद आ जाती है और सारी रात नींद में ऐसा डूबा जैसे किसी ने उसे रस्सी में बाँध दिया हो।
जबरा बेचारा अकेला भौंक-भौंक कर नीलगायों को भगा रहा होता है। जब सुबह होती है, धुप निकल चूका होता है। उसकी पत्नी मुन्नी खेत में आती है, और उससे कहती है कि सारा फसल नष्ट हो गया। सभी फसल को जानवरों ने चर लिया है। सब सपाट हो गया है। जबरा अलग चूपचाप एसे बैठा था जैसे कि वह मर गया हो। अब मजदूरी करके किराया और कर्ज भरनी पड़ेगी। यह बात सुनकर कि नीलगाय ने सभी फसल नष्ट कर डाली है तो हल्कू खुश हो जाता है और कहता है कि अब इतनी ठंडी रात को यहाँ सोना तो नहीं पड़ेगा। इस प्रकार हल्कू खुश हो जाता है कि अब रात में सुकून से सोने को मिलेगा। यह कहानी जमींदारों की शोषण और एक आम किसान की दूर्दशा को बताया है। Push ki Raat Kahani by Munshi Premchand
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