इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पद्य भाग के पाठ 11 ‘पृथ्वी कविता का व्याख्या (Prithvi kavita class 11 Hindi)’ के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
11. पृथ्वी
लेखक – नरेश सक्सेना
पृथ्वी तुम घूमती हो
तो घूमती चली जाती हो
अपने केंद्र पर घूमने के साथ ही
एक और केंद्र के चारों ओर घूमते हुए लगातार
क्या तुम्हें चक्कर नहीं आते
अपने आधे हिस्से में अँधेरा
और आधे में उजाला लिए
रात को दिन और दिन को रात करते
कभी-कभी काँपती हो
तो लगता है नष्ट कर दोगी अपना सारा घरबार
अपनी गृहस्थी के पेड़ पर्वत शहर नदी गाँव टीले
सभी कुछ को नष्ट कर दोगी
पथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो
तुम्हारी सतह पर कितना जल है
तुम्हारी सतह के नीचे भी जल ही है
लेकिन तुम्हारे गर्भ में
गर्भ के केंद्र में तो अग्नि है
सिर्फ अग्नि
पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो
किलो ताप कितने दबाव और कितनी आर्द्रता से
अपने कोयलों को हीरों में बदल देती हो
किन प्रक्रियाओं से गुजर कर
कितने चुपचाप
रत्नों से ज्यादा रत्नों के रहस्यों से
भरा है तुम्हारा हृदय
पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो
तुम घूमती हो
तो घूमती चली जाती हो ।
भावार्थ- कवि नरेश सक्सेना पृथ्वी की गति एवं इसके गति के कारण होने वाले भयाक्य दृष्य का भी वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं पृथ्वी तुम अपना चक्कर लगाती हो यानी की तुम अपने केन्द्र के चारो ओर घुमती रहती हो कभी रूकती नहीं हो और फिर कवि कहते हैं कि पृथ्वी क्या तुम्हें चक्कर नहीं आते हैं। तुम अपने आधे में अंधेरा और आधे में उजाला लिए चारो तरफ घुमती रहती हो। साथ हीं तुम कहीं रात तो कहीं दिन कर देती हो और फिर कवि कहते हैं कि जब तुम चक्कर लगाते समय कांपती हो तो कुछ पल के लिए ऐसा लगता है जैसे सबकुछ ध्वस्त हो जाएगा सबकुछ खत्म हो जाएगा। तुम्हारे ऊपर वह पेड़ पौधे, पर्व, शहर, नदी वह ग्रमीन टिला जहाँ हम निवास करते हैं और फिर कवि कहते हैं कि पृथ्वी क्या तुम नारी हो यानी की क्या तुम स्त्री हो। और फिर कवि पृथ्वी से कहते हैं कि तुम्हारे ऊपर और नीचे हर जगह जल है लेकिन कवि कहते हैं तुम्हारे केन्द्र में यानी की तुम्हारे गर्व में सिर्फ और सिर्फ अग्नि ही अग्नि है। फिर एक बार और पुछते हैं कि पृथ्वी क्या तुम स्त्री हो । फिर कवि आगे कहते हैं कि पृथ्वी तुम कितने ताप, दाब एवं नमी को सहन कर तुम अपने अंदर छुपे कोयले को हिरो में बदल देती है। और फिर कवि कहते हैं कि तुम किन प्रक्रियाओं से गुजरती हो। ना तो शोर सराब यानी की एकदम शांत तरीके से । फिर कवि कहते हैं कि तुम्हारा यह जो दिल है, धड़कन है वह सिर्फ रत्नों से भरा हुआ है। और फिर कवि एक बार फिर पूछते हैं कि क्या तुम स्त्री हो तुम घुमती हुई फिर से अपने केन्द्र पर चली जाती हो।
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