इस पोस्ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्दी के पद्य भाग के पाठ तीन ‘सवैया (देव) कक्षा 10 हिंदी’ (Savaiye class 10 bhavarth cbse Hindi) के व्याख्या को पढ़ेंगे। Savaiye class 10 bhavarth cbse Hindi Chapter 3
पाठ-3 सवैया (देव)
पाँयनि नूपुर मंजु बज, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
अर्थ- बालकृष्ण के रूप को देखते हुए कहते हैं कि उनकी पैरो की पायल और कमर में करधनी है वह भी बज रही है। और जब वह चल रहे हैं तो उनके छोटे पैरो से घुँघरू की मधुर आवाजे आ रही है। उनके साँवले शरीर पर पिले रंग के सुंदर कपड़े भी है और वह अपने गर्दन में फूलो की माला है जो छाती पर बनफूलो की माला बहुत अच्छी लग रही है।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव‘ सहाई।।
अर्थ- उनके सीर पर मुकुट है और इनकी बड़ी आँखे बहुत ही चंचल दीख रही है उनके चेहरे पर हँसी (मुस्कान) है कवि उनके चेहरे को चाँद की तरह सुंदर कहते है और उनका चेहरा इतना चमक रहा है (चाँदनी के समान) श्री कृष्ण का मुस्कान मन को मोहने वाली मुस्कान है जैसे मानो मंदीर में जल रहे दीपक (दीया) के समान है वो ब्रज के दूल्हा बने है और उनकी सभी लोग मान सम्मान कर रहे है
डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बतरावै ‘देव‘,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।।
अर्थ- कवि प्रकृति के विभिन्न उपादानो के भावना के संबंध मे है कुछ कहते है बसंत को बच्चा बताते हुए कहते है बच्चा का झूला पेड़ो की टहनियाँ है और नई नई निकली पत्तियो का मुलायम और आरामदेह बिछौबना है। बसंत की तरह बच्चा के शरीर पर फूलो से बना झबला (कपड़े की तरह) बहुत ही सुंदर दिख रही है हवा बहने से जब पेड़ की डालियाँ हिलने लगती है तो ऐसा लगता है हवा पालने को झुला झुला रही है मोर और तोता आपस मे बाते कर रहे है और कोयल अपनी मिठी बोली से गाना सुनाकर ताली बजा रही है
पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन,
कंजकली नायिका लतान सिर सारी दै।
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि,
प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै।।
अर्थ- अब चारो तरफ फूलो के बीच के पराग के कण गिरे पड़े मिलते है इसे देखकर कवि कहते है मानो कोई बच्चा बसंत को किसी नजर से बचाने के लिए उसकी नजर उतारकर चारो तरह फैला दिया हो कमल की काली को नायिका कहते है इसलिए कि वह लताओं की साड़ी पहनकर बहुत ही अच्छी दिख रही है तब आई है हवा को काम का पुत्र कहते है यानी वसंत को कामदेव का पुत्र कहते है और वसंत सुबह मे गुलाब चुटकारी (चुटकी ) देकर जगाता है।
फटिक सिलानि सौं सुधारौं सुधा मंदिर,
उदधि दधि को सो अधिकाइ उमगे अमंद।
वाहर ते भीतर लौं भीति न झिए ‘देव‘,
दूध को सो फेन फैल्यो आँगन फरसबंद।
अर्थ- कवि चाँदनी रात को दुध से नहाई रात को अमृत के रूप में मानते है। और इस रात मे जीस भी चीज पर चाँद की रौशनी पर रही है वह दुध की तरह से चमक रहा है चारो तरह चाँदनी बिखरी हुई है देव भी कहते है इस चाँद की प्रकार सारे जगहो पर ही नही बल्कि हमारे ह्रदय तक भी फैला हुआ है आगन मे भी चाँदनी ऐसे फैला है जैसे दुध में झाग फैली है।
तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होति,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा सी उजारी लगै,
प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।।
अर्थ- तारे जो आसमान में टिमटिमाते है मानो जमीन पर उतर आए है वो ऐसे आए है जैसे किसी सुंदरी को सजकर खड़ी है वो बहुत से आभूषण (जेवर मोती गहना) पहने हुई है। और इधर उधर धुम रही है सभी चाँदनी रात में यह सब इतना सुंदर दीखाई दे रहा है जैसे आइना में दीखाई देता है और कवि इसकी तुलना राधा के सुंदर मुखड़े (चेहरे) से की है।Savaiye class 10 bhavarth cbse Hindi
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