इस पोस्ट में हमलोग उत्तर प्रदेश बोर्ड के हिन्दी के गद्य खण्ड के पाठ चार ‘भारतीय संस्कृति’ (Bhartiya Sanskriti Class 10 Hindi) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
4. भारतीय संस्कृति
लेखक- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 1884 में बिहार के छपरा जिला के जीरादेई नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम महादेव राय था। इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए. और कानून की पढ़ाई पूरी की। वह बहुत ही मेधावी छात्र थे। परीक्षा में हमेशा प्रथम आते थे। इन्होंने कलकत्ता और पटना में वकालत का कार्य किया। यह एक महान और सफल लेखक थे।
महात्मा गाँधी द्वारा शुरू किया गया चम्पारण आंदोलन में इन्होंने सक्रीय भूमिका निभाई। चलता हुआ वकालत को छोड़कर महात्मा गाँधी को आदर्श मानकर अपने आप को पूर्ण रूप से राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में लगा दिया।
इनकी इमान्दारी, निष्पक्षता और प्रतिभा को देखकर भारत के प्रथम राष्ट्रपति नियुक्त किया गया। 1952 से 1962 तक भारत के राष्ट्रपति रहे। 1962 ई. में इन्हें देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न‘ से सम्मानित किया गया। इनकी मृत्यु 1963 ई. में हो गई।
प्रस्तुत पाठ देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के द्वारा लिखा गया है, जिसमें उन्होंने भारतीय संस्कृति में अनेकता में एकता के गुण को दर्शाया हे।
राजेन्द्र प्रसाद कहते हैं कि कोई ऐसा व्यक्ति जो भारत की प्राकृतिक सभ्यता और संस्कृति से अपरिचित हो, तो उसे भारत भ्रमण करना चाहिए। उसे यहाँ बहुत सारी विभिन्नताएँ देखने को मिलेगी। उसे यह लगेगा कि यह एक देश नहीं, बल्कि कई देशों का एक समुह है। यहाँ एक तरफ बर्फ से ढ़की चोटियाँ हैं, तो दूसरी ओर गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र आदि नदियोंका विशाल मैदान, तो कहीं विन्ध्याचल, सतपुड़ा और अरावली की पर्वत श्रेणियों के बीच रंग-बिरंगे समतल भूभाग मिलेंगे।
एक तरफ पर्वतीय प्रदेशों की ठण्ड, तो दूसरी तरफ मैदानी भागों में धूप और लू से तपती भूमि, एक तरफ अधिक वर्षा वाला असम, तो दूसरी तरफ कम वर्षा वाला तपती जैसलमेर। यहाँ विभिन्न प्रकार के साग-सब्जियाँ, आज और फल-फूल पैदा किए जाते हैं। यहाँ सभी प्रकार के वृक्ष और जानवर पाए जाते हैं। यहाँ अलग-अलग प्रकार के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा वाले लोग रहते हैं। यहाँ अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं। यहाँ के धर्म-सम्प्रदाय और भाषा को गिनना आसान काम नहीं है।
भारतीय संस्कृति में बाहर से देखने पर यहाँ भाषा, धर्म और जाति के आधार पर भिन्नता दिखाई देती है, लेकिन यहाँ अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं।
भारत में दूसरों को समाहित कर लेने की अनोखी शक्ति होती है। यहाँ हजारों वर्षों से अलग-अलग मत को मानने वाले लोग एकता की भाव में रहते हैं।
लेखक की इच्छा है कि हमारे देश में एकता की भावना इसी तरह बनी रहे जैसे नदियों का उदगम स्थल अलग होने के बावजूद उसका जल पवित्र होता है।
हमारा देश एक प्रजातांत्रिक देश है जिसका अर्थ जनता का शासन होता है। यदि एक की उन्नति दूसरे के विकास में बाधक सिद्ध होती है, तो संघर्ष पैदा होता है। यह संघर्ष अहिंसा के रास्ते पर चलकर समाप्त किया जा सकता है। अहिंसा का दूसरा रूप त्याग है। हिंसा का दूसरा रूप भोग या स्वार्थ है। हमारे अंदर त्याग की भावन विद्यमान है, तभी तो हम यहाँ पर अपने-अपने धर्म को मानते हें, अपनी भाषा बोलते हैं। हमने किसी की सम्पिŸा पर जबरदस्ती कब्जा नहीं किया, बल्कि प्रेम और भाईचारे के साथ एक-दूसरे के धर्म और संस्कृति में शामिल हुए।
हमारे ऊपर बहुत सारे प्राकृतिक और मानवीय आपदाओं के आने के बावजूद भी हमारी संस्कृति स्थिर है। हमें विदेशीयों के द्वारा हराया गया, फिर भी हमने अपना धैर्य नहीं खोया। हमारे बुरे समय में भी हमारे देश में रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा महात्मा गाँधी जैसे महापुरूषों ने देश के गौरव को समाप्त नहीं होने दिया।
वह कहते हैं कि हमारे देश को गौरवशाली बनाने के लिए हमें लाभ, भोग और लालच को छोड़कर समाज के कल्याण के लिए कार्य करना होगा। हमें व्यक्तिगत स्वार्थ को त्यागकर कर्तव्य और सेवा-इमान्दारी पर जोर देना होगा।
वह कहते हैं कि आज के इस वैज्ञानिक उन्नति में हर व्यक्ति या समूह एक-दूसरे को गिराने का प्रयास करेगा। हमें ऐसा प्रयास करना है, जो अहिंसा की भावना को जगाएँ और भोग की भावना को दबाकर रखें।
भारतीय संस्कृति को बनाए रखने के लिए प्रत्येक भाषाओं की रचना को दवनागरी लिपी में छपवाया जाए, जिससे उसका आनन्द सभी भारतीय ले सकें। ऐसी संस्थाओं की रचना की जाए जो इन भाषाओं का आदान-प्रदान अनुवाद के द्वारा करें।
लेखक कहते हैं कि भारत भूमि पर स्वर्ग होने की कल्पना तभी कर सकते हैं, जब हम सब अहिंसा, सत्य ओर सेवा के आदर्श को सारे संसार में फैलाऐंगे। Up Board Bhartiya Sanskriti Class 10 Hindi
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