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Hamare aas paas ke padarth notes | हमारे आस-पास के पदार्थ नोट्स | Class 9th Science

August 25, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 9 विज्ञान के पाठ एक हमारे आस-पास के पदार्थ नोट्स (Hamare aas paas ke padarth notes) के प्रत्‍येक टॉपिक के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Hamare aas paas ke padarth notes

अध्याय 1
हमारे आस-पास के पदार्थ

पूरे विश्व में प्रत्येक वस्तु जिस चीज से बनी है, उसे वैज्ञानिकों के द्वारा पदार्थ नाम दिया गया है।
कोई भी वस्तु जो स्थान घेरे, जिसमें द्रव्यमान एवं आयतन हो, और जो रूकावट उत्पन्न करे, उसे पदार्थ कहते हैं। जैसे- हवा, पत्थर, बादल, तारे, पौधे एवं पशु, रेत के एक कण से लेकर जल की एक बूँद तक पदार्थ हैं।

प्राचीन भारतीय दार्शनिकों ने पदार्थ को पाँच मूल तत्वों में बाँटा, जिसे ‘पंचतत्व’ कहा गया। वे पंचतत्व— वायु, पृथ्वी, अग्नि, जल और आकाश है। उनके अनुसार इन्हीं पंचतत्वों से सभी वस्तुएँ बनी हुई है।

आधुनिक वैज्ञानिकों ने पदार्थ को भौतिक गुणों और रासायनिक प्रकृति के आधार पर दो तरिके से वर्गीकृत किया। इस पाठ में भौतिक गुणों के आधार पर पदार्थ के बारे में अध्ययन करेंगे तथा अगले पाठ में रासायनिक गुणों के आधार पर पदार्थों का अध्ययन करेंगे।

विसरण- दो विभिन्न पदार्थों के कणों का अपने-आप मिलना ही विसरण कहलाता है।

पदार्थ के भौतिक गुण-

  1. पदार्थ कणों से मिलकर बना होता है।
  2. पदार्थ के कणों के बीच खाली स्थान होता है। जिसे अंतराणुक स्थान कहते हैं।
  3. पदार्थ के कण अति सूक्ष्म होते हैं।
  4. पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं।
  5. पदार्थ के कण एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं, जिसे अंतरा-अणुक आकर्षण बल कहते हैं।

पदार्थ के भौतिक गुणों के आधार पर पदार्थ की तीन अवस्थाएँ होती है-

  1. ठोस, 2. द्रव और 3. गैस

ठोस पदार्थों के सामान्य गुण

  1. ठोस के आकृति और आयतन निश्चित होते हैं।
  2. ठोस पदार्थ का घनत्व उच्च होता है।
  3. इसका आकार निश्चित होता है तथा आयतन भी निश्चित होता है।
  4. इसके द्रवणांक और क्वथनांक प्रायः उच्च होते हैं।
  5. ये कठोर और दृढ़ (बल लगाने पर यह टूट सकते हैं लेकिन इसका आकार नहीं बदलता है) होते हैं।
  6. इसकी संपीड्यता नगण्य होती है।
  7. इसमें बहाव की प्रवृति नहीं पाई जाती है।

द्रव- जिसकी आकार निश्चित नहीं लेकिन आयतन निश्चित होता है, उसे द्रव कहते हैं। जिस बर्तन में द्रव को रखा जाता है, वे उसी का आकार ले लेते हैं।

द्रव की विशेषताएँ-

  1. द्रव की आकार निश्चित नहीं होती है और न हीं आयतन निश्चित होती है।
  2. द्रव का घनत्व ठोस की तुलना में कम होता है।
  3. द्रव प्रायः असंपीड्य होते हैं अर्थात इस पर दाब बढ़ाकर या दाब घटाकर इसके आयतन को घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता है।
  4. इसके द्रवनांक और क्वथनांक ठोस पदार्थों की तुलना में प्रायः कम होते हैं।
  5. द्रव पदार्थों में बहने की प्रवृति पाई जाती है।
  6. द्रव अवस्था में पदार्थ के कण स्वतंत्र रूप से गति करते हैं।
  7. ठोस की अपेक्षा द्रव के कणों में रिक्त स्थान अधिक होता है।
  8. ठोस की अपेक्षा द्रव में विसरण की दर अधिक होती है। अर्थात यह ठोस की तुलना में अधिक फैल जाता है।

Hamare aas paas ke padarth class 9 science notes

पदार्थ की गैसीय अवस्था

पदार्थ की वह अवस्था जिसकी आकृति और आयतन दोनों निश्चित नहीं होते हैं, उसे गैसीय अवस्था कहा जाता है। गैसों के कण स्वतंत्र रूप में इधर-उधर गमन करते हैं। इनके अणुओं के बीच का स्थान अधिक होता है।

गैसों के सामान्य गुण-

  1. गैसों का आकार और आयतन दोनों निश्चित नहीं होता है।
  2. ठोस और द्रव की तुलना में गैसों का घनत्व बहुत कम होता है।
  3. गैसों के द्रवनांक और क्वथनांक सामान्य वायुमंडीलय दाब पर कमरे के ताप से कम होते हैं।
  4. गैसों की संपीयड्यता बहुत अधिक होती है अर्थात गैस का दाब बढ़ाकर उसके आयतन को कम किया जा सकता है तथा दाब घटाकर उसके आयतन को बढ़ाया जा सकता है।
  5. गैसों में विसरण की दर ठोस और द्रव की तुलना में अत्यधिक तीव्र होती है। इसके कण बहुत तेजी से गमन करते हैं।
  6. गैस को गर्म करने पर इसका प्रसार तथा ठंडा करने पर सिकुड़ता है।

रसोइगैस के रूप में द्रवीभूत पेट्रोलियम गैस (liquefied petroleum gas, LPG) होती है। जिसे उच्च दाब पर द्रवीभूत कर सिलिंडरों में भरा जाता है।
स्वचालित वाहनों में ईंधन के रूप में संपीडित प्राकृतिक गैस (compressed natural gas, CNG) का उपयोग किया जाता है। जो बहुत कम प्रदुषण मुक्त करता है।
तापमान बढ़ने से पदार्थ के कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है।
जिस न्यूनतम ताप पर कोई ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है, उस तापमान को उस पदार्थ का गलनांक कहते हैं।
बर्फ का गलनांक 273.15 केल्विन या 0 डिग्री सेल्सियस होता है।
किसी पदार्थ को ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में बदलने की प्रक्रिया को संगलन कहते हैं।
वायुमंडलीय दाब पर 1 किलोग्राम ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा कहते हैं, अर्थात् 0० सेल्सियस पर जल के कणों की ऊर्जा उसी तापमान पर बर्फ के कणों की ऊर्जा से अधिक होती है।

वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा ताप की वह मात्रा है जो 1 किलोग्राम द्रव को वायुमंडलीय दाब और द्रव के क्वथनांक पर गैसीय अवस्था में परिवर्तन कने के लिए प्रयोग होती है।
जल को जब हम ऊष्मीय ऊर्जा देते हैं, तो कण अधिक तेजी से गति करते हैं। एक निश्चित तापमान पर पहुँचकर कणों में इतनी ऊर्जा आ जाती है कि वे परस्पर आकर्षण बल को तोड़कर स्वतंत्र हो जाते हैं। इस तापमान पर द्रव गैस में बदलने लगता है।

क्वथनांक- वायुमंडलीय दाब पर वह तापमान जिस पर द्रव उबलने लगता है, उसे उस पदार्थ का क्वथनांक कहते हैं। अर्थात् वह तापमान जिस पर कोई पदार्थ, द्रव से गैस में परिवर्तित होने लगता है, उस तापमान को उस पदार्थ का क्वथनांक कहते हैं। क्वथनांक में द्रव के सभी कणों को उतनी ऊर्जा मिल जाती है कि वे वाष्प में बदलने लगते हैं।
जल का क्वथनांक 373 केल्विन या 100० सेल्सियस होता है।

वाष्पण की गुप्त ऊष्मा, ऊर्जा की वह मात्रा है, जो द्रव के इकाई मात्रा को गैस में बदलने के लिए आवश्यक है। अर्थात वह ऊष्मा जिसे प्राप्त कर कोई द्रव गैस में परिवर्तित हो जाता है, उसे वाष्पण की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।

373 केल्विन या 100० सेल्सियस तापमान पर भाप अर्थात वाष्प के कणों में उसी तापमान पर पानी के कणों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भाप के कणों ने वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा के रूप में अतिरिक्त ऊष्मा अवशोषित कर ली है।
किसी पदार्थ को ठोस अवस्था से द्रव में परिवर्तित हुए बिना सीधे गैस में बदलने की प्रक्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं।
जैसे- कपूर को गर्म करने पर वह द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना सीधा गैस अवस्था में बदल जाता है।, आयोडिन, ईथर और एल्कोहल भी द्रव में बदले बिना सिधे गैस में परिवर्तित हो जाते हैं।

निक्षेपण- किसी पदार्थ को गैस से सीधे ठोस बनने की प्रक्रिया को निक्षेपण कहते हैं।

द्रव का हिमांक- जिस ताप पर कोई पदार्थ द्रव की अवस्था से ठोस की अवस्था में परिवर्तित होता है, द्रव का हिमांक कहलाता है, और यह प्रक्रिया द्रव का जमना कहलाती है।

पृथ्वी पर एकमात्र जल है, जो तीनों अवस्थाओं ठोस, द्रव और गैस के रूप में पाई जाती है।

ठोस कार्बनडाइऑक्साइड से क्या समझते हैं ?
ठोस कार्बनडाइऑक्साइड को उच्च दाब पर संग्रहित किया जाता है। जब एक वायुमंडलीय दाब हो, तो ठोस कार्बनडाइऑक्साइड द्रव अवस्था में आए बिन सिधें गैस में परिवर्तित हो जाताहै। यही कारण है कि ठोस कार्बनडाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ कहते हैं।

गैस का द्रव में बदलना संघनन कहलाता है।
वर्षा संघनन के कारण होती है।
द्रव से गैस में परिवर्तित होना वाष्पण कहलाता है।
द्रव से ठोस में बदलने की प्रक्रिया को जमना कहते हैं।
ठोस से द्रव में बदलने की प्रक्रिया को संगलन कहते हैं।
क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को वाष्पीकरण कहते हैं।

Hamare aas paas ke padarth class 9 science notes

वाष्पीकरण क्यों होता है ?
जल की ऊपरी सतह का तापमान जब अधिक हो जाता है, तो जल के कणों में गतिज ऊर्जा आ जाती है। जिससे उनका अन्तराण्विक आकर्षण बल कमजोर हो जाता है। जब जल के ऊपरी सतह के कण हवा से टकराते हैं, तो सतही जल के अणु अन्य जल के अणु से टूट जाते है। या ऊपर का सतह अधिक तापमान पड़ने पर उनके अन्तराण्विक आकर्षण बल कमजोर हो जाते हैं। जिससे जल के अणुओं के बीच का अन्तराण्विक आकर्षण बल कमजोर हो जाते हैं। जिससे वह वाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

वायु में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं।

वाष्पीकरण की दर निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है।
सतह का क्षेत्रफल बढ़ा देने से वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है। जैसे, कपड़े सुखाने के लिए हम उसे फैला देते हैं।
तापमान बढ़ने पर उनके कणों को पर्याप्त गतिज ऊर्जा मिल जाती है, जिससे वे वाष्पीकृत हो जाते हैं।
जब वायु में जल के कणों की मात्रा पहले से अधिक होगी, तो वाष्पीकरण की दर घट जाएगी।
तेज गति की आयु से वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।

तेज वायु में कपड़े जल्दी सुख जाते हैं, क्यों?
वायु के तेज होने से जलवाष्प के कण वायु के साथ उड़ जाते हैं जिससे आस-पास के जलवाष्प की मात्रा घट जाती है और वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है। इसलिए तेज वायु में कपड़े जल्दी सुख जाते हैं।

तेज धूप वाले गर्म दिन के बाद लोग अपनी छत या खुल स्थान पर जल छिड़कते हैं, क्यों?
तेज धूप वाले गर्म दिन के बाद लोग अपनी छत या खुल स्थान पर जल छिड़कते हैं। क्योंकि जल के वाष्पीकरण के गुप्त ऊष्मा गर्म सतह को शीतल बनाती है।

गर्मियों में हमें सूती कपड़े क्यों पहनने चाहिए?
वाष्पीकरण के दौरान द्रव की सतह के कण हमारे शरीर या आसपास से ऊर्जा प्राप्त करके वाष्प में बदल जाते हैं। वाष्पीकरण की प्रसुप्त ऊष्मा के बराबर ऊष्मीय ऊर्जा हमारे शरीर में अवशोषित हो जाती है, जिससे शरीर शीतल हो जाता है। चूँकि सूति कपड़ों में जल का अवशोषण अधिक होता है, इसलिए हमारा पसीना इसमें अवशोषित होकर वायुमंडल में आसानी से वाष्पीकृत हो जाता है।

बर्फीले जल से भरे गिलास की बाहरी सतह पर जल की बूँदें क्यों नजर आती हैं?
वायु में उपस्थित जलवाष्प की ऊर्जा ठंडे पानी के संपर्क में आकर कम हो जाती है और यह द्रव अवस्था में बदल जाता है, जो हमें जल की बूँदों के रूप में नजर आता है। आसान भाषा में कहे तो हवा का जल होता है, जो गिलास या बोतल के बाहर दिखाई देता है।

गर्मी के दिनों में काले कपड़ों की तुलना में सफेद कपड़ों का पोशाक पहना अधिक उतम क्यों माना जाता है?
काली वस्तुएँ ऊष्मा का अवशोषण अधिक मात्रा में करती है। जबकि सफेद वस्तुएँ ऊष्मा का अवशोषण कम करती है। यही कारण है कि गर्मी के दिनों में काले कपड़ों की तुलना में सफेद कपड़ा पहनना उतम माना जाता है।

प्लाज्मा अवस्था- प्लाज्मा को पदार्थ की चौथी अवस्था को कहते हैं प्लाज्मा अवस्था में पदार्थ अत्यधिक आयनिकृत गैस के रूप में रहता है। इस अवस्था में इनके कण अति ऊर्जावान और अति उत्तेजित अवस्था में रहते हैं। इसका उपयोग प्रतिदीप्त ट्यूब और नियॉन संकेत वाले बल्ब के निर्माण में किया जाता है।
सूर्य और तारे प्लाज्मा अवस्था में हैं। प्लाज्मा की उत्पति तारे और सूर्य में उच्च ताप के कारण होती है। अर्थात् उच्च तापमान के कारण प्लाज्मा बनता है।

बोस-आइ्रस्टाइन कंडेन्सेट- यह पदार्थ की पाँचवीं अवस्था है। इसका अवधारणा सर्वप्रथम भारतीय भौतिक वैज्ञानिक सत्येंद्रनाथ बोस ने की थी। अल्बर्ट आइंस्टाइन ने भी इसकी भविष्यवाणी की थी।

2001 में अमेरिका के तीन वैज्ञानिक ने इस अवस्था को प्राप्त करने में सफल हुए। सामान्य वायु के घनत्व के एक लाखवें भाग जितने कम घनत्व वाली गैस को बहुत ही कम तापमान पर ठंडा करके (2 × 107 केल्विन ताप पर) इस अवस्था को प्राप्त किया गया। इस अवस्था को बोस-आइंस्टाइन कंडेन्सेट कहते हैं। Hamare aas paas ke padarth class 10 science notes

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Jaiv Prakram Class 10th in Hindi | जैव प्रक्रम कक्षा 10 विज्ञान

August 4, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ  जैव प्रक्रम (Jaiv Prakram Class 10th in Hindi) के प्रत्‍येक टॉपिक के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Jaiv Prakram Class 10th in Hindi

1. जैव प्रक्रम : पोषण

जैव प्रक्रम– वे सारी क्रियाएँ जिनके द्वारा जीवों का अनुरक्षण होता है, जैव प्रक्रम कहलाती हैं।
पोषण- वह विधि जिससे जीव पोषक तŸवों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते हैं, पोषण कहलाता है।
पोषण की विधियाँ
जीवों में पोषण मुख्यतः दो विधियों द्वारा होता हैं।
1. स्वपोषण
2. परपोषण
स्वपोषण- पोषण की वह विधी जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं निर्माण करते हैं। स्वपोषण कहलाता है।
स्वपोषी- पोषण की वह प्रक्रिया जिसमें जीव अपने भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्वयं संश्लेषित (निर्माण) करते हैं, स्वपोषी कहलाते हैं। अर्थात जिस जीव में स्वपोषण पाया जाता है, उसे स्वपोषी कहते हैं। जैसे- हरे पौधे।
परपोषण- परपोषण वह प्रक्रिया है जिसमें जीव अपना भोजन स्वयं संश्लेषित न कर किसी-न-किसी रूप में अन्य स्त्रोतों से प्राप्त करते हैं।
परपोषी- वे जीव जो अपने भोजन के लिए अन्य स्त्रोतों पर निर्भर रहते हैं, उसे परपोषी कहते हैं। जैसे- गाय, अमीबा, शेर आदि।
परपोषण के प्रकार-
परपोषण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-
1. मृतजीवी पोषण- पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपने भोजन के लिए मृत जंतुओं और पौधों के शरीर से, अपने शरीर की सतह से घुलित कार्बनिक पदार्थों के रूप में अवशोषित करते हैं। मृतजीवी पोषण कहलाते हैं। जैसे- कवक बैक्टीरिया तथा कुछ प्रोटोजोआ।
2.परजीवी पोषण- पोषण की वह विधि जिसमें जीव अपने पोषण के लिए दूसरे प्राणी के संपर्क में, स्थायी या अस्थायी रूप से रहकर, उससे अपना भोजन प्राप्त करते हैं। परजीवी पोषण कहलाते हैं। जैसे-कवक, जीवाणु, गोलकृमि, हुकवर्म, मलेरिया परजीवी आदि।
3. प्राणिसम पोषण- वैसा पोषण जिसमें प्राणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंतुओं के भोजन ग्रहण करने की विधि द्वारा ग्रहण करते हैं, प्राणी समपोषण कहलाते हैं। जैसे- अमीबा, मेढ़क, मनुष्य आदि।
प्रकाशसंश्लेषण क्या है ?
सूर्य की ऊर्जा की सहायता से प्रकाशसंश्लेषण में सरल अकार्बनिक अणु- कार्बन डाइऑक्साइड और जल का पादप-कोशिकाओं में स्थिरीकरण कार्बनिक अणु ग्लूकोज (कार्बोहाइड्रेट) में होता है।
प्रकाशसंश्लेषण के लिए आवश्यक पदार्थ-
प्रकाश संश्लेषण के लिए चार पदार्थों की आवश्यकता होती हैं-
1. पर्णहरित या क्लोरोफिल, 2. कार्बनडाइऑक्साइड, 3. जल और 4. सूर्य प्रकाश
उपापचय- सजीव के शरीर में होनेवाली सभी प्रकार की रासायनिक क्रियाएँ उपापचय कहलाती है। जैसे- अमीनो अम्ल से प्रोटीन का निर्माण होना, ग्लूकोज से ग्लाइकोजेन का निर्माण होना आदि।
अमीबा में पोषण
अमीबा एक सरल प्राणीसमपोषी जीव है। यह मृदुजलीय, एककोशीय तथा अनिश्चित आकार का प्राणी है। इसका आकार कूटपादों के बनने और बिगड़ने के कारण बदलता रहता है।
अमीबा का भोजन शैवाल के छोटे-छोटे टुकड़े, बैक्टीरिया, डायटम, अन्य छोटे एककोशिकीय जीव तथा मृत कार्बनिक पदार्थ के छोटे-छोटे टुकड़े इत्यादि हैं।
अमीबा में पोषण अंतर्ग्रहण, पाचन तथा बहिष्करण प्रक्रियाओं द्वारा पूर्ण होता है।
अमीबा में भोजन के अंतर्ग्रहण के लिए मुख जैसा कोई निश्चित स्थान नहीं होता है, बल्कि यह शरीर की सतह के किसी भी स्थान से हो सकता है।
अमीबा जब भोजन के बिल्कुल समीप होता है तब अमीबा भोजन के चारों ओर कूटपादों का निर्माण करता है। कूटपाद तेजी से बढ़ते हैं और भोजन को पूरी तरह घेर लेते हैं। धीरे-धीरे कूटपादों के सिरे तथा फिर पार्श्व (पार्श्व) आपस में जुड़ जाते हैं। इस तरह एक भोजन-रसधानी का निर्माण हो जाता है जिसमें भोजन के साथ जल भी होता है।
भोजन का पाचन भोजन रसधानी में ही एंजाइमों के द्वारा होता है। अपचे भोजन निकलने के लिए शरीर के किसी भाग में अस्थायी छिद्र का निर्माण होता है जिससे अपचा भोजन बाहर निकल जाता है।
मनुष्य का पाचनतंत्र
वैसे अंग जो भोजन पचाने में सहायता करते हैं। उन्हें सामुहिक रूप से पाचन तंत्र कहते हैं।
आहारनाल और संबंधित पाचक ग्रंथियाँ और पाचन क्रिया मिलकर पाचनतंत्र का निर्माण करते हैं।
मनुष्य तथा सभी उच्च श्रेणी के जंतुओं में भोजन के पाचन के लिए विशेष अंग होते हैं जो आहारनाल कहलाते हैं।
आहारनाल- मनुष्य का आहारनाल एक कुंडलित रचना है जिसकी लंबाई करीब 8 से 10 मीटर तक की होती है। यह मुखगुहा से शुरू होकर मलद्वार तक फैली होती है।
मुखगुहा- मुखगुहा आहारनाल का पहला भाग है। पाचन मुखगुहा से प्रारंभ होता है। मुखगुहा एक खाली जगह होता है जिसमें एक जीभ, तीन जोड़ा लार ग्रंथि तथा 32 दांत पाये जाते हैं।
मुखगुहा को बंद करने के लिए दो मांसल होंठ होते हैं।
जीभ के ऊपर कई छोटे-छोटे अंकुर होते हैं, जिसे स्वाद कलियाँ कहते हैं। यह भोजन के विभिन्न स्वादों जैसे मीठा, खारा, खट्टा, कड़वा आदि का अनुभव कराता है।
मनुष्य के मुखगुहा में तीन जोड़ी लार ग्रंथियाँ पाई जाती है, जिससे प्रतिदिन डेढ़ लीटर लार का स्त्राव होता है।
लार में मुख्य रूप से लाइसोजाइम, एमीलेस या एमाइलेज तथा टायलीन नामक एंजाइम पाए जाते हैं।
मुखगुहा में लार का कार्य-
यह मुखगुहा को साफ रखती है।
भोजन को चिपचिपा और लसलसा बना देता है।
यह भोजन में उपस्थित किटाणुओं को मार देता है।
यह स्टार्च को शर्करा (कार्बोहाइड्रट) में बदल देता है।
दाँत
दाँत में सर्वाधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है।
मानव दाँत के दो परत होता है। बाहरी परत इनामेल कहलाता है जबकि आंतरिक पर डेंटाइन कहलाता है।
मानव शरीर का सबसे कठोर भाग दाँत का इनामेल होता है जो कैल्शियम फॉस्फेट का बना होता है। इनामेल दाँतों की रक्षा करता है।
मानव दाँत चार प्रकार के होते हैं-
1. साइजर (8), 2. केनाइन (4), 3. प्रीमोलर (8) और 4. मोलर (12)
ग्रसनी- मुखगुहा का पिछला भाग ग्रसनी कहलाता है। इसमें दो छिद्र होते हैं।
1. निगलद्वार, जो आहारनाल के अगले भाग ग्रासनली में खुलता है। तथा
2. कंठद्वार, जो श्वासनली में खुलता है। कंठद्वार के आगे एक पट्टी जैसी रचना होती है, जो एपिग्लौटिस कहलाता है। मनुष्य जब भोजन करता है तब यह पट्टी कंठद्वार को ढँक देती है, जिससे भोजन श्वासनली में नहीं जा पाता है।
ग्रासनली- यह मुखगुहा को अमाशय से जोड़ने का कार्य करता है। यह नली के समान होता है। मुखगुहा से लार से सना हुआ भोजन निगलद्वार के द्वारा ग्रासनली में पहुँचता है। भाजन के पहुँचते ही ग्रासनली की दिवार में तरंग की तरह संकुचन या सिकुड़न और शिथिलन या फैलाव शुरू हो जाता है। जिसे क्रमाकुंचन कहते हैं। ग्रासनली में पाचन की क्रिया नहीं होती है। ग्रासनली से भोजन अमाशय में पहुँचता है।
आमाशय- यह एक चौड़ी थैली जैसी रचना है जो उदर-गुहा के बाईं ओर से शुरू होकर अनुप्रस्थ दिशा में फैली होती है।
आमाशय में प्रोटीन के अतिरिक्त भोजन के वसा का पाचन करता है।
अमाश्य के तीन भाग होते हैं- कार्डिएक, फुंडिक और पाइलेरिक
अमाश्य से हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्त्राव होता है, जो कीटाणुओं को मार देता है और भोजन को अम्लीय बना देता है।
अमाश्य में जठर ग्रंथि पाई जाती है, जिससे जठर रस निकलता है। जठर रस में रेनिन और पेप्सिन पाया जाता है। रेनिन दूध को दही में बदल देता है तथा पेप्सीन प्रोटीन का पाचन करता है। प्रोटीन को पेप्टोन में बदल देता है।
भोजन अब गाढ़ लेई की तरह हो गया है, जिसे काइम कहते है। काइम अमाशय से छोटी आँत में पहुँचता है।
छोटी आँत- छोटी आँत आहारनाल का सबसे लंबा भाग है। यह बेलनाकार रचना है। छोटी आँत में ही पाचन की क्रिया पूर्ण होती है। मनुष्य में इसकी लंबाई लगभग 6 मीटर तथा चौड़ाई 2.5 सेंटीमीटर होती है।
शाकाहारी जन्तुओं में छोटी आँत की लंबाई अधिक और मांसाहारी जन्तुओं में छोटी आँत की लंबाई कम होती है।
छोटी आँत के तीन भाग होते हैं- ग्रहणी, जेजुनम तथा इलियम
ग्रहणी छोटी आँत का पहला भाग होता है। जेजुनम छोटी आँत का मध्य भाग होता है। छोटी आँत का अधिकांश भाग इलियम होता है।
पचे हुए भोजन का अवशोषण छोटी आँत में ही होता है।
छोटी आँत में भोजन का पाचन पित्त, अग्न्याशयी रस तथा आंत्र-रस के स्त्राव से होता है।
यकृत- यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है जो उदर के ऊपरी दाहिने भाग में अवस्थित है। यकृत कोशिकाओं से पिŸा का स्त्राव होता है। स्त्रावित पित्त पित्ताशय नामक एक छोटी थैली में आकर जमा रहता है।
पित्ताशय- इसमें यकृत द्वारा बनाया गया पित्त आकर जमा रहता है। इसमें पित्त का निर्माण नहीं होता है। पित्त भोजन को क्षारिय बना देता है क्योंकि पित्त क्षारिय होता है। इसका रंग गाढ़ और हरा होता है। यह एंजाइम न होते हुए भी भोजन के पाचन में सहायक है।
पित्त के दो मुख्य कार्य है-
1. पित्त अमाशय से ग्रहणी में आए अम्लीय काइम की अम्लीयता को नष्ट कर उसे क्षारीय बना देता है ताकि अग्न्याशयी रस के एंजाइम उस पर क्रिया कर सके।
2. पित्त के लवणों की सहायता से भोजन के वसा के विखंडन तथा पायसीकरण होता है ताकि वसा को तोड़नेवाले एंजाइम उस पर आसानी से क्रिया कर सके।
अग्न्याशय- आमाशय के ठीक नीचे तथा ग्रहणी को घेरे पीले रंग की एक गं्रथि होती है जो अग्न्याशय कहलाती है।
अग्नाशय से तीन प्रकार के इंजाइम निकलते हैं। इन तीनों को सामूहिक रूप से पूर्ण पाचक रस कहते हैं क्योंकि यह भोजन के सभी अवयव को पचा सकते हैं।
इससे ट्रिप्सीन, एमाइलेज और लाइपेज नामक इंजाइम स्त्रावित होते हैं।
ट्रिप्सीन- यह प्रोटीन को पचाकर पेप्टाइड में बदल देता है।
एमाइलेज- यह स्टार्च को शर्करा में तोड़ देता है।
लाइपेज- यह पित्त द्वारा पायसीकृत वसा को तोड़कर ग्लिसरोल तथा वसीय अम्ल में बदल देता है।
पचे हुए भोजन का अवशोषण इलियम के विलाई के द्वारा होता है। भोजन अवशोषण के बाद रक्त में मिल जाते हैं। रक्त शरीर के विभिन्न भागों तक वितरित कर देते हैं।
छोटी आँत में काइम (भोजन) और भी तरह हो जाता है, जिसे चाइल कहा जाता है।
बड़ी आँत- छोटी आँत आहारनाल के अगले भाग बड़ी आँत में खुलती है। बड़ी आँत दो भागों में बँटा होता है। ये भाग कोलन तथा मलाशय या रेक्टम कहलाते हैं।
छोटी आँत और बड़ी आँत के जोड़ पर ऐपेंडिक्स होती है। मनुष्य के आहारनाल में ऐपेंडिक्स का कोई कार्य नहीं है।
जल का अवशोषण बड़ी आँत में होता है।
अंत मे अपचा भोजन मल के रूप में अस्थायी तौर पर रेक्टम में जमा होता रहता है जो समय समय पर मलद्वार के रास्ते शरीर से बाहर निकलते रहता है।

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