इस पोस्ट में हमलोग उत्तर प्रदेश बोर्ड के हिन्दी के गद्य खण्ड के पाठ एक मित्रता (Class 10 Hindi Chapter 1 Mitrata Vyakhya) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
1. मित्रता
लेखक परिचय
लेखक- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
इनका जन्म 1884 में बस्ती जिला के अगोना नामक गाँव में हुआ था। पिता का नाम चन्द्रबली शुक्ल था। एफ.ए. (इण्टरमीडिएट) के बाद इन्होंने सरकारी नौकरी की, बाद में सरकारी नौकरी छोड़कर मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक के रूप में कार्य किया।
इन्होंने मिर्जापुर के पण्डित केदारनाथ पाठक एवं प्रेमघन के संपर्क में आकर हिन्दी, उर्दू, बांग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी आदि कई भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया। ‘आनंद कादम्बिनी‘ नामक पत्रिका में इनकी रचनाएँ प्रकाशित भी होने लगी। इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेशर (प्राध्यापक) का कार्य किया। बाद में वे हिन्दी विभाग के अध्यक्ष भी हो गए।
यह एक निबन्धकार, अनुवाद, आलोचक और सम्पादक थे। इन्हें हिन्दी साहित्य के जगत में आलोचना का सम्राट कहा जाता है। इनकी मृत्यु 1941 में हो गयी।
Up Board Class 10 Hindi Chapter 1 Mitrata Vyakhya
मित्रता पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ ‘मित्रता‘ आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के द्वारा लिखा गया है। इस पाठ में लेखक ने सच्चे मित्र, मित्रता के उद्देश्य और सच्चे मित्र के कर्त्तव्य को बताया गया है। साथ ही लेखक के द्वारा बुरी संगति से बचने की भी सलाह दी गई है।
लेखक कहते हैं कि जब हम युवावस्था में घर की चाहरदीवारी से बाहर निकलते हैं तो हमारी सबसे बड़ी समस्या एक सच्चा मित्र बनाने की होती है। वह कहते हैं कि जब हम दुनियादारी में प्रवेश करते हैं तो हमारा मस्तिष्क और मन निर्मल होता है। मित्रता का प्रभाव हमारे चरित्र पर पड़ता है। मित्रता के प्रभाव में आकर कोई राक्षस तो काई देवता बन सकता है। चरित्र का विकास मित्रता के प्रभाव के कारण होती है।
ऐसे लोगों की मित्रता अच्छी नहीं होती है, जो अधिक दृढ़ संकल्प वाले होते हैं, क्योंकि हम उनकी बात का विरोध नहीं कर सकते और हमें बिना सोचे-समझे उनकी बात माननी पड़ती है।
लेखक कहते हैं कि ऐसे लोगों की भी मित्रता अच्छी नहीं होती है, जो हमारी बात को ऊपर रखकर हमें सम्मान देते हैं, क्योंकि वो हमारा विरोध नहीं करते, जिससे धीरे-धीरे हमारी सोचने-समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है और बुद्धि छोटी हो जाती है।
एक विश्वासपात्र और अच्छा मित्र जीवन में जड़ी-बुटी के समान होता है। जो हमें गलत रास्ते पर जाने से रोकता है। जो गलतियों से बचाता है, निराश होने पर आशा का संचार करता है।
लेखक कहते हैं कि एक सच्चे मित्र का कर्त्तव्य है कि वह हमारा सही मार्गदर्शन करे। वह हमारा प्रेमपात्र होना चाहिए, जिसमें एक अच्छे भाई का गुण हो। जो एक-दूसरे के सुख-दुःख को अपना मानें, एक के हानि-लाभ को दूसरा अपना मानें। जो शुद्ध हृदय वाला हो। जिनसे हमें धोखा खाने का डर न हो।
वह कहते हैं कि हमें उनलोगों से मित्रता भूलकर भी नहीं रखनी चाहिए, जिनमें अच्छाइयाँ कम और बुराइयाँ अधिक हों। जिनका मन नीच हो। जो दूसरों की बुराईयों करते हों तथा नशा जैसी आदतों से घिरे हों।
लेखक कहते हैं कि अलग-अलग स्वभाव और रूचि के लोगों में भी मित्रता और भाईचारा संभव है। जैसे श्रीराम वीर, गम्भीर और शांत स्वभाव के थे, जबकि लक्ष्मण उग्र और अक्खड़ स्वभाव के थे फिर भी दोनों भाईयों में घनिष्ठ प्रेम था। इसी प्रकार उदार और स्वभिमानी कर्ण और लोभी दुर्योधन के स्वभाव बिल्कुल अलग होने पर भी उनकी मित्रता विश्व प्रसिद्ध है।
लेखक कहते हैं कि जो लोग न कोई बुद्धिमानी की बात करते हैं, न सहानुभूति दिखाते हैं, न हमें कर्त्तव्य का ध्यान दिलाते हैं, न हमारे सुख-दुःख में शामिल होते हैं, ऐसे लोगों से हमें दूर रहना चाहिए।
लेखक कहते हैं कि कुसंगति अर्थात गलत संगत से व्यक्ति की बुद्धि का नाश हो जाता है। थोड़े समय के लिए कुसंगति भी व्यक्ति को नाश की ओर ले जाता है। अच्छी सगंति से व्यक्ति दिन-प्रतिदिन उन्नति करता है। उसका चरित्र उज्जवल और बिना कलंक वाला होता है।
अंत में, लेखक हमें सलाह देते हैं कि हमें बुरे लोगों की संगति से बचना चाहिए और उत्तम, अच्छा चरित्र वाला, सच्चा, ईमान्दार, विवेकशील लोगों के साथ रहना चाहिए और ऐसे लोगों से ही मित्रता करनी चाहिए।
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