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8. कन्यादान कविता की व्याख्या और भावार्थ | Kanyadan kavita ka bhavarth

August 13, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ आठ ‘कन्यादान कविता की व्याख्या और भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Kanyadan kavita ka bhavarth)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Kanyadan kavita ka bhavarth

8. कन्यादान
कवि- ऋतुराज

लेखक परिचय- ऋतुराज का जन्म 10 फरवरी 1940 को राजस्थान के भरतपुर में हुआ। इन्होंने जयपुर से अंग्रेजी में एम,ए करने पश्चात ये 40 सालो तक अध्यापक से जूड़े रहे। इन्होने तीन वर्षो तक चायना रेडियो इंटरनेशनल में विदेशी भाषा के विशेषज्ञ पद को संभाला। अबतक इनके दस काव्य संग्रह है। मै आंगिरस, पुल पर पानी, एक मरणधर्मा और अन्य, लीला मुखारविंद, सुरत, निरत, आशा नाम नदी, कितना थोड़ा वक्त, अबेकस प्रबोधचंद्रोदय एवं चुनी हुइ कविताएँ प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी आलोचनात्मक कविता की बात ,संपादित रचना है। इन्हे पहले सम्मान, बिहारी सम्मान, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, सोमदत्त सम्मान, सुब्रहनण्यम, भारती हिंदी सम्मान आदि से विभूषित किया जा चुका है।

कविता परिचय- प्रस्तुत कविता कन्यादान में स्त्री के जीवन के प्रति कवि की गहरी संवेदनशीलता बताई हुई है। कवि ने स्त्री के लिए कोमलता के गौरव में छिपी कमजोर का विरोध किया है। कविता में माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा को बताया है। माँ अपनी भोली-भाली निश्छल औैर अनुभव शन्य बेटी को स्त्री जीवन में आनेवाली कठिन परिस्थितियों के लिए संचेत करती हुई आदर्शीकरण करने की सीख दे रही है। और इस कविता में स्त्री को दुःखमय बननेवाली कुरीतियो को भी उजागर किया गया है।

8. कन्यादान

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

भावार्थ- प्रस्तुत कविता में कन्यादान के समय माँ अपनी बेटी को स्त्री आदेश से हटकर सीख दे रही है। जब माँ ने अपनी बेटी के विवाह के समय उसे विदा किया तो उसे लगा कि वह अपनी आखरी पूँजी किसी को दे रही है। उस समय उसका दुःख स्वभाविक था। वो इसलिए कि माँ से केवल बेटी अपनी सुख दुःख की बाते करती है। माँ इसलिए दुःखी थी क्योंकि उसकी पुत्री अभी बहुत सयानी नहीं हुई थी। उसे ससुराल पक्ष की कठोर सच्चाईयों और पति के बंधनों का ज्ञान नहीं था। उसमें इतनी भोलापन और सरलता थी कि उसे सुख क्या होता है यह तो पता था। लेकिन दुःख क्या होता है यह नही पता था वह केवल काल्पनिक सुखों में जीती थी। Kanyadan kavita ka bhavarth

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

भावार्थ- प्रस्तुत कविता में कन्यादान के समय माँ अपनी बेटी को स्त्री आदेश से हटकर सीख दे रही है कि बेटी जब तुम पानी में देखो तो अपने आप पर खुश मत होने लगना साथ हीं आग से भी बच के रहना। जीस आग में हम रोटियाँ सेंकतें है वही आग जलती भी है और जलाती भी है। इसलिए अपनी जीवन में हमेशा संभल के रहना और माँ बेटी को ये भी समझाती है कि तुम कपड़ो और जेवरों के मोह में मत पड़ना। ये तुम्हें दूसरों के प्रति स्नेह का आभाष दिलाकर तुम्हें बंधन में जकड़ लेंगें। ससुराल में रहकर तुम लड़की की मर्यादा भरा आचरण करना लेकिन और लड़कियों की तरह किसी के अत्याचार को सहकर कमजोर और दुर्बल मत बनना। तुम हमेशा अपने लिए होने वाले अत्याचार एवं शोषण का डटकर विरोध करना ताकि लड़कियों को कभी कमजोर न समझा जा सके। माँ ने अपनी बेटी को सलाह दी कि मन से लड़की की तरह भोली और सरल कथा निश्छल रहना लेकिन गलत व्यवहार में सावधान रहना। अपनी सरलता प्रकट न होने देना। नहीं तो लोग तुम्हें मुर्ख समझकर तेरा शोषण करेंगें। तेरे साथ गलत व्यवहार करेंगें। Kanyadan kavita ka bhavarth

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