इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ श्वसन (Swasan class 10 notes in hindi) के प्रत्येक टॉपिक के व्याख्या को पढ़ेंगे।
2. श्वसन
श्वसन-श्वसन उन सभी प्रक्रियाओं का सम्मिलित रूप है जिनके द्वारा शरीर में ऊर्जा का उत्पादन होता है।
यह ऊर्जा ए.टी.पी. जैसे विशेष रासायनिक बंधन में संगृहीत हो जाती है। संगृहीत ऊर्जा का उपयोग सभी जीव ए.टी.पी. के जलीय विघटन के द्वारा करते हैं।
श्वसन क्रिया में ग्लूकोज-अणुओं का ऑक्सीकरण कोशिकाओं में होता है। इसीलिए, इसे कोशिकीय श्वसन कहते हैं।
कोशिकीय श्वसन- यह मानव कोशिका के अंदर होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा पाचन के फलस्वरूप बना ग्लूकोज कोशिका के अंदर टूट जाता है और हमें ऊर्जा प्राप्त होता है।
संपूर्ण कोशिकीय श्वसन का दो अवस्थाओं में विभाजित किया गया है-
1. अवायवीय श्वसन- यह कोशिकाद्रव्य में पूर्ण होता है। यह ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। अतः इसे अनॉक्सी श्वसनन कहते हैं।
2. वायवीय श्वसन- यह माइटोकोण्ड्रिया में होता है। यह ऑक्सीजन के उपस्थिति में होता है। अतः इसे ऑक्सी श्वसन कहते हैं।
वायवीय श्वसन और अवायवीय श्वसन में क्या अंतर है ?
वायवीय श्वसन और अवायवीय श्वसन में मुख्य अंतर निम्नलिखित है-
1. वायवीय श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है जबकि अवायवीय श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।
2. वायवीय श्वसन का प्रथम चरण कोशिकाद्रव्य में तथा द्वितीय चरण माइटोकॉण्ड्रिया में पूरा होता है जबकि अवायवीय श्वसन की पूरी क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है।
3. वायवीय श्वसन में अवायवीय श्वसन की तुलना में बहुत ज्यादा ऊर्जा मुक्त होती है।
पौधों में श्वसन- पौधों में श्वसन श्वसन-गैसों का आदान-प्रदान शरीर की सतह द्वारा विसरण विधि से होता है।
पेड़-पौधों में गैसों का आदान-प्रदान पत्तियों के रंध्रों के द्वारा होता है।
पौधों में श्वसन की क्रिया जंतुओं के श्वसन से किस प्रकार भिन्न है-
पोधों में श्वसन की क्रिया जंतुओं के श्वसन से निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है-
1. पौधों के प्रत्येक भाग, अर्थात जड़, तना तथा पत्तियों में अलग-अलग होता है।
2. जंतुओं की तरह पौधों में श्वसन गैसों का परिवहन नहीं होता है।
3. पौधों में जंतुओं की अपेक्षा श्वसन की गति धीमी हेती है।
जंतुओं में श्वसन
एककोशिकीय जीव जैसे अमीबा, पैरामीशियम में श्वसन कोशिका झिल्ली से विसरण विधि द्वारा होता है।
बहुकोशिकीय जीव हाइड्रा में श्वसन गैसों का आदान-प्रदान शरीर की सतह से विसरण के द्वारा होता है।
उच्च श्रेणी के जंतुओं में समान्यतः तीन प्रकार के श्वसन अंग होते हैं-
1. श्वासनली या ट्रैकिया 2. गिल्स तथा 3. फेफड़े
1. श्वासनली या ट्रैकिया- ट्रैकिया द्वारा श्वसन किटों, जैसे टिड्डा तथा तिलचट्टा में होता है।
2. गिल्स- गिल्स विशेष प्रकार के श्वसन अंग हैं जो जल में घुलित ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं। श्वसन के लिए गिल्स का होना मछलियों के विशेष लक्षण है। मछलीयों में गिल्स द्वारा श्वसन होता है।
3. फेफड़ा- वर्ग एंफीबिया (जैसे मेढ़क) में फेफड़े के अतिरिक्त त्वचा तथा गिल्स से भी श्वसन होता है।
रेप्टीलिया (जैसे सर्प, लिजर्ड, कछुआ तथा मगरमच्छ) तथा उच्चतम श्रेणी के वर्टिब्रेटा जैसे एवीज (पक्षी) तथा मैमेलिया (जैसे मनुष्य) में श्वसन सिर्फ फेफड़ों से होता है।
श्वसन अंग- मनुष्य में नासिका छिद्र, स्वरयंत्र या लैरिंक्स, श्वासनली या ट्रैकिया तथा फेफड़ा मिलकर श्वसन अंग कहलाते हैं।
मानव का श्वसन मार्ग- मानव जब श्वसन करता है तो वायु जिस मार्ग का अनुसरण करती है तो उस मार्ग को ही श्वसन मार्ग कहा जाता है।
श्वसन मार्ग निम्नलिखित है-
1. नासिका छिद्र
2. ग्रसनी
3. स्वरयंत्र
4. श्वासनली
5. ब्रोंकाई (श्वसनिय)
6. ब्रोंकीयोलस (श्वसनिका)
7. वायुकोष
8. रूधिर
9. कोशिका
डायफ्राम- यह वक्ष गुहा के नीचे तथा उदर गुहा के ऊपर पाया जाता है। यह संयोजी ऊतक का बना होता है। निःश्वसन में यह 75 प्रतिशत योगदान करता है।
डायफ्राम टूट जाने पर व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है।
1. नासिका छिद्र- नाक का भाग होता है, इसी भाग से वायु अन्दर जाती है।
2. ग्रसनी- यह नासिका छिद्र के नीचे और मुखगुहा के पीछे पाया जाता है। इस मार्ग से भोजन और वायु दोनों जाते हैं।
3. स्वरयंत्र- ग्रसनी कंठद्वार के ठीक नीचे एक छोटी रचना स्वरयंत्र में खुलती है। यह ग्रसनी के ठीक नीचे पाया जाता है। यह आवाज निकालने में सहायक होता है।
फेफड़ा- यह मानव के वक्षगुहा में पाया जाता है। यह मानव का मुख्य श्वसन अंग है। इसकी संख्या दो होती है। यह प्लूरल मेम्ब्रेन नामक झिल्ली द्वारा ढ़का होता है। फेफड़ा का कार्य रक्त को शुद्ध करना होता है अर्थात फेफड़ा रक्त में ऑक्सीजन मिलाकर उसे शुद्ध करता है।
4. श्वासनली- इसके द्वारा वायु फेफड़े के अंदर जाती है। ट्रैकिया या श्वासनली आगे चलकर दो भागों में विभाजित हो जाती है, जिसे ब्रोंकाई कहते हैं। ब्रोंकाई आगे जाकर कई शाखाओं में विभाजित हो जाती है, जिसे ब्रोंकियोलस या श्वसनिका कहते हैं।
7. वायुकोष- श्वसनिका फेफड़े के अंदर पतली शाखाओं में बँट जाती है। ये शाखाएँ छोटी-छोटी गोल संरचना में विभाजित होती है। जिसे वायुकोष कहते हैं।
वायुकोष की संख्या 300,000,000 होती है।
श्वसन क्रिया- श्वसन दो क्रियाओं का सम्मिलित रूप है। पहली क्रिया में हवा नासिका से फेफड़े तक पहुँचती है जहाँ इसका ऑक्सीजन फेफड़े की दीवार में स्थित रक्त कोशिकाओं के रक्त में चला जाता है। इस क्रिया को प्रश्वास कहते हैं।
इसके विपरित, दूसरी क्रिया उच्छ्वास कहलाती है जिसके अंतर्गत रक्त से फेफड़े में आया कार्बन डाइऑक्साइड बची हवा के साथ नासिका से बाहर निकल जाता है।
श्वसन की दो अवस्थाएँ प्रश्वास तथा उच्छ्वास मिलकर श्वासोच्छ्वास कहलाती है।
फेफड़े में श्वसन गैसों का आदान-प्रदान- शरीर के विभिन्न भागों से ऑक्सीजनरहित रक्त फेफड़ा में पहुँचता है। रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से संयोग करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन में परिवर्तित हो जाता है जो रूधिर परिसंचरण के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों तक कोशिकाओं में पहुँच जाता है। हीमोग्लोबीन ऑक्सीजन कोशिकाओं के दे देता है और कार्बनडाइऑक्साइड को अपने साथ बाँध लेता है। जो कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन कहलाता है। कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन परिसंचन के माध्यम से फेफड़े में पहुँच जाता है। कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन अर्थात रक्त में घुला हुआ कार्बनडाइऑक्साइड फेफड़े के द्वारा नासिका से बाहर निकल जाता है। Swasan class 10 notes in Hindi
Up Board Class 10th Hindi – Click here
Up Board Books Pdf Download – Click here
Class 10th Science – Click here
Leave a Reply