इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिंदी के पाठ चार ‘अर्धनारीश्वर (Ardhnarishwar Class 12 Hindi) ‘ के सम्पूर्ण व्याख्या को पढ़ेंगे।
4. अर्धनारीश्वर
(रामधारी सिंह दिनकर)
लेखक परिचय
जन्म : 23 सितम्बर 1908 निधन : 24 अप्रैल 1974
जन्म स्थान : सिमरिया, बेगूसराय, बिहार
माता-पिता : मनरूप देवी और रवि सिंह
शिक्षा : आरंभिक शिक्षा गाँव में, 1928 में मोकामा घाट रेल्वे हाई स्कूल से मैट्रिक,1932 में पटना कॉलेज से बी.ए.(इतिहास)
साहित्यिक अभिरुचि : 1925 में छात्र सहोदर पहली कविता प्रकाशित, छात्र जीवन में देश, प्रकाश, प्रतिमा जैसे अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई।
कृतियाँ—
प्रमुख काव्य : प्रणभंग (1929), रेणुका (1935), हुंकार (1938), रसवंती (1940), कुरुक्षेत्र (1946), रश्मिरथी (1952), नीलकसम (1954), उर्वशी (1961), परशुराम की प्रतीक्षा (1963), कोमलता और कवित्व (1964), हारे को हरिनाम (1970) आदि।
प्रमुख गद्य रचनाएँ : मिट्टी की ओर (1946), अर्द्धनारीश्वर (1952), संस्कृति के चार अध्याय (1956), काव्य की भूमिका (1958), वट पीपल (1961), शुद्ध कविता की खोज (1966), दिनकर की डायरी (1973) आदि।
सम्मान : संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण से सम्मानित।
रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि के नाम से विख्यात हैं।
रामधारी सिंह दिनकर जितने बड़े कवि थे, उतने बड़े गद्यकार थे। यह छायावादोत्तर युग के प्रमुख कवि हैं।
4. अर्धनारीश्वर का सारांश
प्रस्तुत निबंध ‘अर्धनारीश्वर’ पाठ के निबंधकार रामधारी सिंह दिनकर हैं। इनका जन्म 23 सितम्बर 1908 ई० को बिहार के सिमरिया गाँव में हुआ था। दिनकर जी को ‘राष्ट्रकवि‘ कहा जाता है।
इस पाठ में निबंधकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ कहते हैं कि अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती की कल्पित रूप का वर्णन किया गया हैं। जिनमें आधा अंग पुरूष और आधा नारी का होता है। एक ही मूर्ति के दो आँखें, एक ममतामयी और दूसरी विकराल यानी शिव की आँख विकराल है और पार्वती की आँखें ममतामयी है। एक ही मूर्ति की दो हाथ, एक हाथ से त्रिशूल उठाए, तो दूसरी में चूड़ियाँ हैं, एक ही मूर्ति के दो पाँव एक जड़ीदार साड़ी से ढ़का हुआ और दूसरा बाघ की खाल से ढ़का हुआ है।
अर्धनारीश्वर की कल्पना से कुछ इस बात का भी पता चलता है कि नर-नारी पुरी तरह समान है और एक साथ ही एक गुण दूसरे का दोष नहीं हो सकता। यानी नर में नारीयों का गुण आए तो उनकी मरियादा बुरी नही होती या नारी में नर का गुण आए, तो नारी की मरियादा धूमिल नहीं होती। बल्कि उनकी मरियादा में वृद्धि होती है।
नारी समझती है कि उसके अंदर अगर पुरूष के गुण आ जाए तो वह स्त्री नहीं रहेगी बल्कि वह नर बन जाएगी। ठीक उसी तरह नर समझता है कि नारी का गुण अगर उसके अंदर आ जाए तो वह नारी बन जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है। नारी के अंदर नर का गुण और नर के अंदर थोड़ा नारी होना जरूरी है। महिलाओं का गुण जैसे- दया, ममता, रोना आदि अगर पुरूष के अंदर आ जाता है। तो उसे खराब नहीं, बल्कि उनके लिए और अच्छा हो जाता है। उसी तरह प्रत्येक स्त्री में पुरूष का गुण होता है लेकिन सिर्फ वह कोमल शरीर वाली पुरूष को आनंद देने वाली है।
लेखक मानते हैं कि जब गुणों का बँटवारा किया गया, तो पुरूषों ने नारीयों से राय नहीं पूछा। अपने मन से उसने जहाँ चाहा, नारी को बिठा दिया। नर ने स्वयं वृक्ष बन गया और नारी को लता बना दिया। अपने को नर ने वृंत बना लिया और नारी को लता बना दिया। उसी समय से धूप पुरूष और चाँदनी नारी है, ग्रीष्म नर और वर्षा मादा है।
लेखक कहते हैं कि जहाँ भी अधिकार की कोई भूमि हो, कर्म का कोई क्षेत्र या सत्ता पर अधिकार हो। उस पर नारी का नहीं, नर का कब्जा माना जाता है।
निबंधकार कहते हैं कि अगर आदि मानव आज मौजुद होते तो उन्हें भी आज आश्चर्य होता। उस समय पुरूष और नारी में कोई बँटवारा नहीं था। उस समय जब कोई जानवर उन पर हमला करता तो दोनों एक साथ उसका सामना करते थे। धूप-वर्षा में एक साथ घूमते थे। भोजन भी एक साथ इकट्ठा करते थे। लेकिन कृषि के खोज से पुरूष बाहर का कार्य करने लगा और महिलाएँ घर के अंदर चारदिवारी में रहने लगी। घर का जीवन सीमित हो गया और बाहर का जीवन असीमित हो गया। यहीं से पुरूष और स्त्रियों में विभाजन शुरू हो गया। जिंदगी दो टूकड़ों में बँट गई। नारी की जिंदगी पूरूषों के अधीन हो गई।
कवि आगे कहते हैं कि पशु-पक्षीयों में भी ऐसा बँटवारा नहीं होता है। उसमें भी नर और मादा दोनों एक साथ हर काम को करते हैं। आज हर आदमी अपनी पत्नी को फूलों को आनंद की वस्तु समझता है। नारीयों का पुरूषों के गुलामी के कारण उसके सुख और दुख, प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा, यहाँ तक कि जीवन और मरण पुरूषों की मर्जी पर टिकने लगा। सारा मुल्य इस बात पर रूका कि पुरूषों को नारीयों की आवश्यकत है या नहीं। नारी को अपने जीवने में रखने या नहीं रखने का अधिकार पुरूषों पर निर्भर करने लगा।
भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी ने नारीयों को कुछ अधिकार दिया। लेकिन जैन धर्म में दिगम्बर संप्रदाय निकला जिसने नए नियम बनाया कि नारीयों को मुक्ति मिल नहीं सकती है। बुद्ध ने अपने प्रिय शिष्य आनंद के कहने पर नारियों को बौद्ध धर्म में प्रवेश की अनुमति दिया। लेकिन कहा कि मैंने सोचा था कि यह मेरा चलाया गया धर्म पाँच हजार वर्ष तक चलेगा पर नारी के प्रवेश आ जाने से अब केवल पाँच सौ वर्ष ही चलेगा। इस प्रकाश बुद्ध ने भी नारीयों का अपमान किया।
महात्मा और साधु नारियों से डरते थे। कई महात्माओं ने नारीयों से शादी भी किया और बाद में उसकी बुराई भी की। कबीर भी नारी को महाविकार कहा है।
अपनी कमजोरी छिपाने के लिए पुरूष नारी को ‘नागीन’ या ‘जादूगरनी’ कहता है लेकिन यह बात सच है कि पुरूष में जादूगर और नाग का गुण नारी से कहीं ज्यादा होता है।
नारी की बुराई करते हुए कलम के सिपाही प्रेमचन्द कहते हैं कि पुरूष नारी का रूप लेता है तो वह देवता बन जाता है लेकिन वहीं जब पुरूष का रूप नारी ग्रहण करती है तो राक्षसी बन जाती है।
रवीन्द्रनाथ मानते हैं कि नारी पढ़-लिखकर क्या करेगी। नारी का मतलब सुंदर दिखना, पृथ्वी की शोभा बढ़ाना और प्रेम की प्रतिमा बनने में है।
लेखक कहते हैं कि नारीयों की इतनी अवहेलना यानी बेइज्जती के बावजूद भी वह कभी बुरा नहीं मानतीं। नारीयों को यह भी सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि नारी सपना है, नारी सुगंध है, नारी पुरूष की बाँहों पर झूलती हुई जुही की माला है, नारी नर के वक्षस्थल पर मंदार फूल का हार है। नर नारीयों के अंदर उठने वाले स्वतंत्रता को धीमा रखना चाहते हैं।
अब नारीयों को विकार और पुरूषों की बाधा नहीं मानी जाती है। वह प्रेरणा का उद्गम और शक्ति का स्त्रोत है। नारी भी अब सभी प्रकार के कार्य करने लगी है। लेखक का मानना है कि फिर भी, नारी अपनी सही जगह पर नहीं पहुँची है।
दिनकर जी यह भी कहते हैं कि प्रत्येक नर एक हद तक नारी है और नारी बनना अधिक जरूरी है। वह कहते हैं कि पुरुष इतना कर्कश औश्र क्ठोर हो उठा है कि युद्धों में रक्त बहाते समय यह ध्यान नहीं रहता कि रक्त के पीछे किसका सिंदूर बहनेवाला है, उन सिंदूरवालीयों का क्या हाल होगा। लेखक कहते हैं कि कौरवों की सभा में अगर संधि कृष्ण और दुर्योधन के बीच न होकर कुंती और गंधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत का युद्ध नहीं होता।
नारी कोमलता का आरधना करते-करते इतनी कोमल हो गई कि उसे कमजोर कहा जाने लगा। लेखक कहते हैं कि नर में भी कोमलता का विकास करना चाहिए।
मार्क्स और गाँधी इस ओर संकेत करते हैं कि नारी से दूर भागना मूर्खता है। नारी केवल नर को रिझाने या उसे प्रेरणा देने के लिए नहीं बनी है। नर जिसे अपना कर्मक्षेत्र मानता है, नारी का भी कर्मक्षेत्र वहीं हैं।
गाँधीजी ने नारीत्व की भी साधना अपने जीवन में की थी। उनकी पोती जो पुस्तक लिखी उसका नाम ‘बापू मेरी माँ’ है। जिसमें पुरूषों में उपस्थित नारीयों के गुण जैसे दया, क्षमा इत्यादि को बतलाया गया है।
इस निबंध में लेखक रामधारी सिंह दिनकर ने स्त्रियों के सम्मान को बढ़ाने पर बल दिया है । उन्होने गाँधी और मार्क्स के विचारों की वकालत की है जिन्होंने नारी जाति के सम्मान की बात कही है।
4. अर्द्धनाश्वर : रामधारी सिंह ‘दिनकर‘
Ardhnarishwar Class 12 Hindi Objecitve Question
प्रश्न 1. ‘दिनकर’ किस युग के कवि थे ?
(क) द्विवेदी युग
(ख) छायावादी युग
(ग) छायावादोतर युग
(घ) भारतेन्दु युग
उत्तर- (ग) छायावादोतर युग
प्रश्न 2. रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) इटारसी, मध्यप्रदेश
(ख) ढाका, बंगाल
(ग) लमही, वाराणसी
(घ) सिमरिया, बेगूसराय, बिहार
उत्तर- (घ) सिमरिया, बेगूसराय, बिहार
प्रश्न 3. रामधारी सिंह दिनकर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) 22 सितम्बर, 1907
(ख) 23 सितम्बर, 1908
(ग) 24 सितम्बर, 1909
(घ) 25 सितम्बर, 1910
उत्तर- (ख) 23 सितम्बर, 1908
प्रश्न 4. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का निधन कब हुआ था ?
(क) 22 अप्रैल, 1972
(ख) 23 अप्रैल, 1973
(ग) 24 अप्रैल, 1974
(घ) 25 अप्रैल, 1975
उत्तर- (ग) 24 अप्रैल, 1974
प्रश्न 5. किसने कहा हैं- ‘नारी की पराधीनता तब आरम्भ हुए जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया जिसके चलते नारी घर में और पुरूष बाहर रहने लगा ।’
(क) प्रेमचंद
(ख) दिनकर
(ग) रवीन्द्रनाथ
(घ) बनार्ड शा
उत्तर- (ख) दिनकर
प्रश्न 6. किस रचनाकार की पंक्तियाँ हैं ? ‘नारी सुगंध हैं, नारी पुरूष की बाँह पर झूलती हुई, जूही की माला हैं।’
(क) प्रेमचंद
(ख) अज्ञेय
(ग) मोहन राकेश
(घ) रामधारी सिंह दिनकर
उत्तर- (घ) रामधारी सिंह दिनकर
प्रश्न 7. नर और नारी के क्या काम हैं ?
(क) नर-नारी और नारी नर हो गयी है ।
(ख) नर कुदाल चलाने वाला बलशाली किसान और नारी का काम अछोरना – पछोरना हैं ।
(ग) नर चाय बनाता हैं , नारी खाना पकाती हैं ।
(घ) नारी नौकरी करती है , नर खाना बनाता हैं ।
उत्तर- (ख) नर कुदाल चलाने वाला बलशाली किसान और नारी का काम अछोरना–पछोरना हैं ।
प्रश्न 8. कामिनी तो अपने साथ ……… की शांति लाती हैं । खाली जगह को भरें ।
(क) दामिनी
(ख) गामिनी
(ग) यामिनी
(घ) शायनी
उत्तर- (ग) यामिनी
प्रश्न 9. दिनकर को किस गद्य–पुस्तक पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था ?
(क) अर्धनारीश्वर
(ख) शुद्ध कविता की खोज
(ग) संस्कृति के चार अध्याय
(घ) दिनकर की डायरी
उत्तर- (ग) संस्कृति के चार अध्याय
प्रश्न 10. दिनकर को किस काव्य–पुस्तक पर भारतीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार मिला था ?
(क) हुंकार
(ख) रश्मिरथी
(ग) कुरूक्षेत्र
(घ) उर्वशी
उत्तर- (घ) उर्वशी
प्रश्न 11. ‘दिनकर’ की कविता का कौन–सा गुण नहीं था ?
(क) ओज गुण
(ख) मसृणता
(ग) पौरूष
(घ) प्रभावपूर्ण वाग्मिता
उत्तर- (ख) मसृणता
प्रश्न 12. अर्द्धनारीश्रर कल्पित रूप हैं
(क) राधा–कृष्ण का
(ख) शंकर और पार्वती का
(ग) राम और सीता का
(घ) गणेश और लक्ष्मी का
उत्तर- (ख) शंकर और पार्वती का
प्रश्न 13. दिनकर के माता–पिता का क्या नाम था ?
(क) गंगा देवी और प्रेम कुमार सिंह
(ख) संजीव और नारायण जिद
(ग) विद्यावति देवी एवं कला प्रसाद सिंह
(घ) मनरूप देवी एवं रवि सिंह
उत्तर- (घ) मनरूप देवी एवं रवि सिंह
प्रश्न 14. दिनकर जी की पत्नी का नाम क्या था ?
(क) श्यामवति देवी
(ख) प्रभावति देवी
(ग) मनरूप देवी
(घ) प्रमरूपावति देवी
उत्तर- (क) श्यामवति देवी
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