इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पाठ चार ‘बेजोड़ गायिका लता मंगेश्कर’ (Bejor Gayika Lata Mangeshkar Summary Notes Class 11 Hindi) निबंध का सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगेंं।
4. बेजोड़ गायिका लता मंगेश्कर
लेखक-कुमार गंधर्व
लेखक कुमार गुधर्व इस पाठ के माध्यम से लतामंगेशकर की सुरिली एवं मिठापन सा अवाज और उनकी संगीत के बारे में वर्णन किया है। लेखक को गायिका लता मंगेशकर के बारे में एक रेडियो के माध्यम से पता चलता है और ये गायक दिनानाथ की पुत्री है। लेखक कहते हैं कि मैने जब से रेडियो में उनका गाना सुना तब से अभितक उनका गाना सुन रहा हूँ।
लता जी के पहले गायिका नुरजहाँ थी जिसका चित्रपट संगीत में अपना जमाना था। लोग इसे अच्छे तरह से जानते थें। लेकिन लेखक का मानना है कि जब से गायिका लता मंगेश्का आयी है तब से गायिका नुरजहाँ को पिछा छोड़ दिया है। गायक कहते हैं कि पहले भी घरों में बच्चे गाना गाया करते थें। लेकिन आज-कल के गानों में तो बहुत अंतर हो गया है।
लेखक का मनना है के आज कल जो लोगों के मन में सुरिलापन क्या है और उनके स्वर की ज्ञान बढ़ने का सबसे ज्यादा योगदान लता जी को देते हैं। लेखक कहते हैं कि अगर श्रोता से यह चुनाव कराया जाय कि लता की ध्वनि मुद्रिका और शास्त्रीय गायिकी ध्वनिमुद्रिका में कौन सबसे अच्छा है तो श्रोता लता जी की ध्वनि मुद्रिका को सपोर्ट करेंगें क्योंकि लता जी की संगीत में गनपन सत-प्रतिशत मौजुद है। क्योंकि जिस तरह मनुष्य होनें के लिए उसके अंदर मनुष्यता का होना आवश्यक है ठिक उसी प्रकार संगीत में गनपन का होना अनिवार्य है।
लेखक कहतें हैं इसके पहले भी एक प्रसिद्ध गायिका नुरजहाँ थी लेकिन उनके गानों में मादक उतान दिखता था। और लता जी के संगीत में तो सुन्दरता एवं मुग्धता दिखाई देती है। लेखक कहते हैं कि लता जी की तो संगीत समान्यतः ऊँची पट्टी में रहती है। लेकिन जो संगीत सुनने वाले होते है वह बिना मतलब आवाज ज्यादा कर चिलवाते रहते हैं।
लेखक कहते है कि चित्रपट संगीत एवं शास्त्रीय संगीत में चित्रपट संगीत आसान होता है। लेखक कहते हैं जिसे चित्रपट संगीत आता है उसे शास्त्रीय संगीत भी मालुम होना चाहिए। जो लता जी को अच्छी तरह से मालुम है।
लेखक का मानना है कि जो तीन साढ़े तीन घंटो का संगीत का आनंद एक समान होगा। क्योंकि लता जी की एक-एक गाना सम्पूर्ण कलाकृति होती है। संगीत की दुनिया मे लता जी का स्थान अव्वल पर आता है। क्योंकि कोई ऐसा गायक/गायिका नहीं है जो अपने पहले संगीत को इतनी कुशलता और रसोत्कटता से गा सकें।
चित्रपट संगीत के खिलाफ लोग कहतें हैं कि चित्रपट संगीत लोगों की सिर्फ कान खराब करता है बाकि कुछ नहीं। संगीत सुरीली एवं भावपूर्व गाना चाहिए। ये सब चित्रपट संगीत से हीं मुमकिन हो पाया है। यह संगीत समाज में अधिक अभिरूची लाया है। इसका उपयोग राजस्थानी, बंगाली, पंजाबी, प्रदेश के लोकगीतों के भंडार को भी उन्होंने खुब लुटा। कहे तो प्रत्येक परिस्थति में संगीत का उपयोग किया। अगर मैं कहुँ तो संगीत का क्षेत्र बहुत बड़ा है। और ऐसा देखा जा रहा है की दिन-प्रतिदिन संगीत अधिक से अधिक लोकप्रिय होता जा रहा है।
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