इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी पाठ 11 ‘भोगे हुए दिन (Bhoge hue din Class 11 Hindi) ‘ के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
11. भोगे हुए दिन
लेखक-मेहरून्निसा परवेज
लेखिका इस पाठ के माध्यम से हमें संदेश देना चाहतें हैं कि जो शांदा साहब है वह एक शायर है जो पहले कहीं भी शायरो मशवेरा होता तो वहाँ शांदा साहब को बुलाया जाता लेकिन अब नहीं। सामीम पुराने शायर शांदा साहब के घर आते हीं शांदा साहब बहुत खुशी महसुस करतें हैं। और कहते तो बरखुरदार इस बुड्ढ़े की याद आ गई। शांदा साहब अपने दस साल के एक लड़के को सुटकेश अपने कमरे में रखने के लिए बुलाते है। लड़का आता है और सुटकेश लेकर चला जाता है|
लेखिका कहती है कि समीम देखते हैं कि वहाँ पर एक आम के पेड़ के पीचे छाया में बैठी ऐ लड़की जो लकड़ी बेंचने के लिए बैठी है जिसका कपड़ा बहुत हीं ज्यादा गंदा है। और उनके घर उदास सा मालुम पड़ता था। संदा साहब की बुड्ढ़ी औरत जो कुँए के पास कपड़ा धोती हुई नजर आती है। समीम उनसे सलाम करते हैं। शांदा साहब परिचय देते हुए कहते हैं कि अरे बेगम यह तो अपना जगदलकुर वाला समीम है। जब शांदा साहब बाहर जाते हैं तो समीम अपना सुटकेश से कपड़ निकालता है और फ्रेस होकर अपना कपड़ा बदलते है। समीम देखता है कि शांदा साहब अपने हाथों में आठ आने वाली चाय की एक पुरिया लिए आ रहे हैं और तराजू के पास बैठी वह लड़की लकड़ी तौल-तौल कर दे रही है। जावेद सोफिया के पास जाता है और कहता है आठ आने दे नानी बोली है। फिर सोफिया वो आठ आने अपने जेब से निकालकर दे देती है।
लेखिका कहती है कि जब समीम सोफिया के पास आता है तो वह देखता है कि अच्छे-अच्छे घराने के भी औरतें यहाँ पर बिड़ी बनाती है। शांदा साहब की एक बेटी जो प्राइमरी स्कूल की टिचर है जिसके दो बच्चे जावेद एवं सोफिया है। सोफिया कि अम्मा उसे घर पर हीं पढ़ाती है। वह जावेद अभी तीसरी स्कूल में पढ़ता है लेखिका कहती है कि इसके पहले जावेद गर्मियों में माशयरा रखा गया था तो संदा साहब को एक अध्यक्ष के रूप में बुलाया था। जावेद, समीम को बुलाकर घर के अंदर ले जाता है जहाँ शांदा साहब बैठे हैं। और अच्छे तरह से नाश्ता करते हैं। संदा साहब ज्यादा बुड्ढ़ा हो जाने के कारण इन्हें कहीं भी मुशायरा में नहीं बुलाया जाता है। किसी तरह इनकी लड़की स्कूल में पढ़ाकर एवं लकड़ी की धंधा कर अपना खर्चा चला रहें है। शांदा साहब की लड़की स्कूल से छुट्टी होते हीं फातमा घर को आ जाती है और थकान होनें के कारण वह खाट पर लेट जाती है।
लेखिका कहती है कि समीम सोंच ही रहा था कि कल सुबह घर के लिए निकलेंगे लेकिन उनका लगाव घर वालों से कुछ ज्यादा ही हो गया था। शांदा साहब अपने बारे में कुछ विशेष बिते बातों का जिक्र करते हैं कि एक दिन था जो मेरा शायरी सुनने के लिए लोग दौड़े भागे आते थें। और आज कोई पुछता तक नहीं। सब ने मुझे भुला दिया। शांदा साहब एक फाइल लोते और उसमें से सभी कागजात निकालतें हैं और समीम को पढ़ने के लिए देते हैं। वह सब खत पुरानी सायरो का है जो शांदा साहब से उन सभी सायरों ने कहा था। जो इन्हें अच्छे तरह से जानते हैं। शांदा साहब कहते हैं जब किसी शायरो की शायरी में कुछ भी गलती होता तो मैं उसे सुधारता लेकिन आज हमें कोई नहीं पुछता है। संदा साहब निराश मालुम पड़ते है किसी भी शायर को उस समय मर जाना चाहिए था जब लोग उन्हें चाहने लगें।
लेखिका कहती है कि समीम जब शाम के समय सामान खरीदकर लोटता तो सबकुछ शांत मालुम पड़ता है फिर वह उसी कमरे में जाता है और वहाँ शांदा साहब और उनकी नतनी सोफिया काम कर रहे होते हैं। फिर समीम वापस बाहर आ जाता है। इधर जावेद लकड़ियाँ तौल रहा था समीम को अपने घर जाने का वक्त नजदीक आ जाता हैं जावेद, समीम से हाथ मिलाकर स्कूल चला जाता है। सोफिया फिर से उसी तरह बाल बिखराए बैठ जाती है। समीम को जाते देख शांदा साहब निराश मालुम पड़ते हैं और इसी तरह समीम अपने घर को चला जाता है।
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