इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पद्य भाग के पाठ 3 ‘मीराबाई के पद की व्याख्या (Bihar Board Class 11 Meera Bai ke Pad)’ के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
3. पद
लेखिका :-मिराबाई
पद-1
जो तुम तोड़ो, पिया मैं नहीं तोड़ूँ ।
तोसों प्रीत तोड़ कृष्ण ! कौन संग जोड़ूँ ।।
तुम भये तरुवर मैं भई पँखिया ।
तुम भये सरवर मैं तेरी मछिया ।।
तुम भये गिरिवर मैं भई चारा ।
तुम भये चंदा मैं भई चकोरा ।।
तुम भये मोती, प्रभु हम भये धागा ।
तुम भये सोना हम भये सोहागा ।।
मीरा कहे प्रभु ब्रज के बासी ।
तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासी ।।
भावार्थ- मिराबाई द्वारा रचित इस पाठ में मीरा एवं कृष्ण के प्रेम भाव विशेष रूप से व्यक्त किया गया है। लेखिका कहती है हे कृष्ण मैं आपसे प्रीत करती हुँ यानी की प्रेम करती हुँ चाहो तो तुम इस प्रेम बंधन यानी प्रीत को तोड़ सकते हो। लेकिन मैं नही तोरूंगी यदि मैं आपसे प्रीत तोड लेती हुँ तो फिर मैं प्र्र्र्रीत किससे जोरूंगी। आप हमसे प्रेम करो या न करो मैं तो आपसे प्रीत करूगीं। मीरा बाई कहती है कि हे कृष्ण अगर आप एक तरूवर (वृक्ष) है तो मैं उस वृक्ष पर निवास करने वाली चिड़िया हुँ अगर आप एक समुन्दर/तलाब है तो मैं उस तलाब में निवास करने वाली मछली हुँ अर्थात मीराबाई का कहना है कि मैं कृष्ण के बिना अधुरी हुँ आगे मीराबाई कहती है ठीक उसी तरह तुम एक पर्वत हो तो उस पर्वत पर उगने वाली घास हुँ। अगर तुम चाँद तो मैं चकोर, तुम यदि मोती हो तो मैं हुँ धागा और तुम अगर सोना हो तो मैं सोहागा। मीराबाई का कहने का मुख्य उद्देश्य है कि आपके बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं। मीराबाई कहती है कि हे मेरे ब्रजवासी प्रभु श्री कृष्ण आप मेरे स्वामी है और मैं आपकी दासी।
पद-2
मैं गिरधर के घर जाऊँ ।।
गिरधर म्हारो साँचो प्रीतम
देखत रूप लुभाऊँ ।।
रैप्प पड़े तब ही उठ जाऊँ
भोर भये उठ आऊँ ॥
रैण दिना वा के संग खेलूँ
ज्यूँ त्यूँ ताही रिझाऊँ ॥
जो पहिरावै सोई पहिरूँ
जो दे सोई खाऊँ ।।
मेरी उण की प्रीत पुराणी
उण बिन पल न रहाऊँ ॥
‘जहाँ बैठावें तितही बैढूँ
बेचै तो बिक जाऊँ ।
‘मीरा’ के प्रभु गिरधर नागर
बार बार बलि जाऊँ ।।
भावार्थ- इस पद के माध्यम से कवि मीराबाई श्री कृष्ण के घर मथुरा जाने की प्रेरणा जताई जाती है। मीराबाई कहती है मैं अपने कृष्ण के घर जाती हुँ। वे हमारे लिए सबसे सच्चे प्रित प्रेमी है। मीराबाई कहती है कि जब भी मैं उन्हें देखती हुँ लुब्ध हो जाती हुँ। जीस तरह सुगंधित फूल पर मंडराते भवड़े।
अब मीराबाई श्री कृष्ण सौंदर्य एवं उनके प्यार में मग्ध है। वे कृष्ण के प्रेम दीवानी हो गई है। और कहती हैं कि जब भी रात होता है तो मैं उनके सेवा में लीन हो जाती हुँ। और सुबह होते हीं चली आती हुँ मीराबाई कहती है कि रात हो या फिर दिन मैं पुरे उनके साथ खेलती हुँ। वह जीस तरह से खुश रहते हैं मैं वैसे ही प्रसन्न रखती हुँ। मीराबाई कृष्ण के प्यार में पुरे तरह से लीन हो जाती है। अपने को समर्पित कर देती है और कहती है जो भी वह पहचाने (वस्त्र) है वह मैं पहनती, जो खिलाते वह मैं खा लेती हुँ। मीरा कहती हैं कि मेरा और उनका प्रेम बहुत पुराना है और कहती है कि मैं उनके बिना एक पल भी नहीं रह सकती हुँ। मीराबाई सम्पूर्ण रूप से अपने से श्री कृष्ण को समर्पित मालुम पड़ती है। और कहती है वे जहाँ भी बैठाऐंगे मैं वहा हीं बैठुंगी। अगर वह हमें बेचना चाहे तो मैं बीक भी जाऊँगी। मीराबाई कहती है कि मैं अपने प्रभु गिरधारी के लिए अपने (स्वयं) को बार-बार न्योछावर करूँगी।
Bihar Board Class 11 Meera Bai ke Pad bhavarth
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