इस पोस्ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्दी के गद्य भाग के पाठ बारह ‘लखनवी अंदाज कहानी का व्याख्या का व्याख्या कक्षा 10 हिंदी’ (cbse Lakhnavi Andaaz Class 10 Summary & Notes) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
पाठ-12
लखनवी अंदाज
लेखक- यशपाल
पाठ का सारांश
लेखक कोई नई कहानी लिखने और उसके बारे में सोंचने के लिए अकेला रहना चाहता था। इसलिए लेखक सेकंड क्लास का टिकट ले आया और उनकी इच्छा यह भी थी कि वह रेल (ट्रेन) की खिड़की से दिखने वाले प्राकृतिक दृश्यों को देखकर कुछ सोंच सके।
जिस डिब्बे में लेखक चढ़ा, तो देखा की एक नवाब साहब पालथी मारे बैठे हुए थे। और वो अपने सामने दो खिरे तौलिए पर रखे हुए थे। तो लेखक को लगा कि नवाब साहब उसके इस डिब्बे में आने से इसलिए खुश नहीं है, क्योंकि कोई और आदमी के सामने खीरे जैसी साधारण चीजें खाने में उन्हें दिक्कत हो रहा था।
बहुत देर बीतने के बाद नवाब साहब को लगा कि वह खीरे कैसे खाएँ तब हारकर उन्होंने लेखक को खीरा खाने के लिए कहा, जिसे लेखक ने धन्यवाद कहकर ठुकरा दिया।
लेखक जब खिरा खाने के लिए मना किया तो नवाब साहब ने खीरों के नीचें रखे हुए तौलिए को झाड़कर सामने बिछाया, फिर खिरा को धोया और तौलिए से पोछ लिया। और चाकू निकालकर दोनों खिरों के सिर काटे, उन्हें घिसकर उनका झाग निकाला और बहुत ही अच्छे ढ़ग से छिलकर खीरों के उन फाँको को सलीके से तौलिए पर सजाया। सब करने के बाद उन्होंने फाँको पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी। यह सब देखकर लेखक और नवाब साहब दोनों के मुँह में पानी आ रहा था।
सब करने बाद नवाब साहब ने एक बार फिर से लेखक को खीरा खाने को कहा। लेकिन लेखक को खीरा खाने का मन होते हुए भी यह कहकर ठुकरा देता है कि उनका मेदा कमजोर है।
तब नवाब साहब ने खीरा के फाँको को सूँघा, स्वाद का आनंद लिया और सभी फाँकों को एक-एक करके खिड़की के बाहर फेंक दिया। इसके बाद नवाब साहब लेखक की ओर देखते हुए तौलिए से मुँह हाथ पोंछ लिए। यह सब देखकर लेखक को लगा जैसे वह उससे कह रहे हैं कि यह खानदानी रईसों का तरीका है। लेकिन फिर उसके बाद लेखक को नवाब साहब के मुँह से भरे पेट की ऊँची डकार की आवाज भी सुनाई दी।
सब देखने के बाद लेखक सोंचने लगता है कि बिना खीरा खाए सिर्फ सुगंध और स्वाद की कल्पना करने से पेट भर जाने का डकार आ सकता है, तो बिना विचार, बिना कोई घटना और पात्रों के, सिर्फ लेखक के इच्छा से नई कहानी क्यों नहीं बन सकती।
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