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2. ममता कहानी का व्‍याख्‍या और सारांश | Mamta Kahani Jaishankar Prasad

August 4, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग उत्तर प्रदेश बोर्ड के हिन्‍दी के गद्य खण्‍ड के पाठ दो ममता कहानी (Class 10 Hindi Chapter 2 Mamta Kahani Jaishankar Prasad)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Mamta Kahani Jaishankar Prasad

2. ममता (कहानी)

जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई. में काशी के एक जाने-माने एक वैश्य परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम देवी प्रसाद था। इनके परिवार का मुख्य व्यापार तम्बाकू का था। जब लेखक युवावस्था में आए, तो इनके पिता का स्वर्गावास हो गया और उनके चार वर्ष के बाद ही उनकी माता का भी स्वर्गावास हो गया। इनका पालन-पोषण इनके बड़े भाई ने किया।
प्रसाद जी ने अंग्रजी, फारसी, उर्दू, हिन्दी और संस्कृत का शिक्षा ग्रहण किया। वेद, पुराण, साहित्य, दर्शन का ज्ञान अपने स्वाध्याय से किया।
इनके बड़े भाई के मृत्यु के बाद इनके परिवार का व्यवसाय ठप्प हो गया तथा परिवार ऋणग्रस्त हो गया। ऋण चुकाने के लिए इन्होंने अपनी पूरी पैतृक संपत्ति बेच दी।
इनका जीवन संघर्षों में बीता हुआ है, लेकिन वे कभी हार नहीं माने। यह क्षयरोग के शिकार हो गया जिसके कारण इनका शरीर बहुत कमजोर हो गया तथा 1937 में इनकी मृत्यु हो गई।

ममता कहानी का सारांश

प्रस्तुत कहानी ‘ममता’ जयशंकर प्रसाद के द्वारा लिखी गयी है। इस कहानी का मुख्य पात्र ममता है, जो रोहतास दुर्गपति (किले का मालिक) के मंत्री की इकलौती पुत्री है, जोकि एक विधवा है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने हिन्दू समाज में विधवा स्त्रियों की असहाय और दयनीय स्थिति का वर्णन किया है।
ममता रोहतास-दुर्ग के मन्त्री चूड़ामणि की इकलौती पुत्री थी, जो बाल्यावस्था में ही विधवा हो गई थी। वह अपने दुर्ग के मुख्यद्वारा के पास कमरे में बैठी हुई सोन नदी के उफान की प्रवाह को देख रही थी। वह हर पल व्याकुल रहती थी, जैसे उसके दिलों में विचारों की आँधी चल रही हो तथा उसकी आँखों से निरंतर आँसू ही निकलते थे। पिता के मन्त्री होने के कारण ममता को धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी, किन्तु बाल-विधवा होने के कारण उसको मानसिक सुख की प्राप्ति नहीं हुई। उसके मन में तरह-तरह के विचार उमड़ रहे थे। इसी बीच चूड़ामणि उसके कमरे में प्रवेश किया, किन्तु ममता अपने पिता के आगमन को न जान सकी। उसके लिए पिता चिन्तित होते हुए वापस लौट गए।
एक पहर के बाद चूड़ामणि ने थालों में सोना लिए ममता के पास आए। उनके पिछे दस सैनिक थे। ममता ने उनलोगों के आगमन पर सवाल पूछा कि इतना सोना कहाँ से आया, तो पिता ने जवाब दिया कि यह तुम्हारे लिए उपहार है। उनके पिता ने बताया कि अब सामन्त वंश का अंत होने वाला है। शेरशाह किसी भी दिन दुर्ग पर अधिकार कर सकता है। जब हम मंत्री नहीं रहेंगे, तो उस दिन यह काम आएगा। ममता ने रिश्वर में लिए गए सोने को परमात्मा के इच्छा के विरूद्ध दुस्साहस माना और पिता से कहा कि इसे लौटा दीजिए।
हम ब्राह्मण हैं, हम सोने लेकर क्या करेंगे? क्या उस बुरे समय में कोई हम ब्राह्मणों को दो मुट्ठी अनाज नहीं देगा ? बेटी के इस व्यवहार से दुःखी होकर चूड़ामणि चले गए।
दूसरे दिन रोहतास-दुर्ग के गेट पर डोलियों की कतारें आ रहीं थी, तब ब्राह्मण चूड़ामणि से रहा न गया और उसने डोलियों के आवरण हटाने के लिए कहा। इतने में पठानों ने इसे महिला का अपमान समझा और तलवारें निकालकर चूड़ामणि को मान दिया।
रोहतास के राजा-रानी और खजाना सभी पर शेरशाह शुरी का कब्जा हो गया। किन्तु ममता उनकी हाथ न लगी। पठान सैनिकों ने पूरा उनका दूर्ग देख लिया लेकिन ममता वहाँ से गायब हो गयी थी।
इस घटना के काफी समय बाद बनारस के उŸार में धर्मचक्र-विहार में बने मौर्य और गुप्त सम्राटों के कीर्ति स्तम्भ, जो अब लगभग खण्डहर बन चूके थे, वहाँ वृक्षों की छाया में बैटी ममता पाठ कर रही थी। अचानक उनका पाठ रूक गया, उनके पास एक हताश-सा एक व्यक्ति आया और ‘माता मुझे आश्रय दो‘ कहकर शरण माँ्रगने लगा। उसने बताया वह शेरशाह शुरी के द्वारा हराया गया है। ममता को उसके अंदर क्रुरता और रक्त की प्यास दिखाई दे रही थी। ममता ने कहा कि मेरी कुटि में जगह नहीं है। इतने में वह बेहोश होकर वहीं गिर गया। ममता ने पानी देकर उसका जान बचाई। ममता के द्वारा अपने पिता का पठानों द्वारा किया गया हत्या याद था। फिर भी वह अतिथि की सेवा कŸार्व्य समझकर अपने कुटिया में विश्राम करने के लिए कही। मुगल ने ममता का प्यारा चेहरा देखकर मन-ही-मन प्रणाम किया। ममता पास के खण्डहर में चली गयी।
अगले दिन सुबह में बहुत-से सैनिकों ने ममता को इनाम देने के लिए खोजें। लेकिन ममता जब नहीं मिली, तो शाम को मुगल अपने अधीन सैनिकों से कहा रहा था कि मैं उस स्त्री को कुछ दे न सका, यहाँ उसकी झोपड़ी की जगह उसके लिए महल बनवा देना। यह कहकर वह वहाँ से चला गया। यह सब ममता खंडहर से देख रही थी।
चौसा के मैदान में पठान और मुगलों के बीच हुए इस युद्ध का बहुत समय बीत गया। ममता मरने की अवस्था में आ गई थी। उसके पास दो-तीन स्त्रीयाँ बैठी हुई थी, क्योंकि उसने भी जीवन भर दूसरों की सेवा की थी।
उसी समय एक अश्वारोही आया और नक्शा देखकर वह स्थान ढूँढने लगा कि किससे पूछूँ कि शहंशाह हुमायँ किस छप्पर के नीचे विश्राम किया था। बात सैंतालिस साल पूरानी थी। तब ममता ने बताया कि मुझे पता नहीं कि वह कौन था , किन्तु एक मुगल ने यहाँ रात बिताई थी। मैं जीवन भर अपनी झोपड़ी टूटने से डरती रहीं। अब तुम यहाँ जो चाहो बनवाओ मैं तो हमेशा के लिए विश्राम करने जा रही हुँ। यह कहते ही ममता हमेशा के लिए सो गई।
उसके बाद अकबर के द्वारा वहाँ पर एक सुन्दर अष्टकोण मन्दिर बनावाया गया और उस पर लिखवाया गया ‘सातों देश के राजा हुमायूँ ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था‘‘
उनके पुत्र अकबर ने उनके याद में एक गगनचुम्बी इमारत बनावाया, लेकिन दुःख की बात है कि उसमें ममता का कहीं नाम न था।

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