इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पद्य भाग के पाठ 12 ‘मातृभूमि कविता का व्याख्या (Mathrubhumi kavita ka bhavarth class 11 Hindi)’ के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
12. मातृभूमि
लेखक – अरूण कमल
आज इस शाम जब मैं भींजता खड़ा हूँ आसमान और धरती
के बीच
तब अचानक मुझे लगता है यही तो तुम हो मेरी माँ मेरी
मातृभूमि
धान के पौधों ने तुम्हें इतना ढंक दिया है कि मुझे रास्ता तक
नहीं सूझता
और मैं मेले में खोए बच्चे सा दौड़ता हूँ तुम्हारी ओर
जैसे वह समुद्र जो दौड़ता आ रहा है छाती के सारे बटन खोले
हहाता
और उठती है शंखध्वनि कंदराओं के अंधकार को हिलोड़ती
ये बकरियाँ जो पहली बूंद गिरते ही भागीं और छिप गई पेड़
की ओट में
सिंधु घाटी का वह साँढ़ चौड़े पट्टे वाला जो भींगे जा रहा है।
पूरी सड़क छेके
वे मजदूर जो सोख रहे हैं बारिश मिट्टी के ढेले की तरह
घर के आँगन में वो नवोढ़ा भींगती नाचती
और काले पंखों के नीचे कौवों के सफेद रोएँ तक भींगते
और इलायची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यार से गुत्थमगुत्था
ये सब तुम्हीं तो हो
कई दिनों से भूखा प्यासा तुम्हें ही तो ढूँढ़ रहा था चारों तरफ
आज जब भीख में मुट्ठी भर अनाज भी दुर्लभ है
तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैल रही है गर्म रोटी की
लगता है मेरी माँ आ रही है नक्काशीदार रूमाल से ढंकी
तश्तरी में
खुबानियाँ अखरोट मखाने और काजू भरे
लगता है मेरी माँ आ रही है हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए
ये सारे बच्चे तुम्हारी रसोई की चौखट पर कब से खड़े हैं माँ
धरती का रंग हरा होता है फिर सुनहला फिर धूसर
छप्परों से इतना धुआँ उठता है और गिर जाता है
पर वहीं के वहीं हैं घर से निकाले ये बच्चे तुम्हारी देहरी पर
सिर टेक सो रहे माँ
ये बच्चे कालाहाँडी के
ये आंध्र के किसानों के बच्चे ये पलामू के पट्टन नरौदा पटिया
के
ये यतीम ये अनाथ ये बंधुआ
इनके माथे पर हाथ फेर दो माँ
नके भींगे केश सँवार दो अपने श्यामल हाथों से-
तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि ?
मेरे थके माथे पर हाथ फेरती तुम्हीं तो हो मुझे प्यार से तकती
और मैं भींज रहा हूँ
नाच रही धरती नाचता आसमान मेरी कील पर नाचता नाचता
मैं खड़ा रहा भींजता बीचोंबीच ।
भावार्थ- कवि अरूण कमल इस पाठ के माध्यम से पृथ्वी की योग्यता का विशेष वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि जब मैं बारिश में भिंगता हुआ पृथ्वी एवं आसमान के बीच खड़ा था तो मुझे लगा कि यहीं तो मेरी माँ यानी की मेरी मातृभूमि है। जब कवि अपने खेत की ओर जाते हैं तो वह देखते हैं चारो तरफ धान के फसलों से रास्ता बंद हो चुका दिखाई नहीं दे रहा है। फिर कवि कहते हैं कि मेले में जिस तरह बच्चे गुम हो जाते हैं और इधर-उधर दौड़ते रहते हैं ठिक वैसे हीं भूल चुका हुँ रास्ते और फिर कवि का ध्यान बारिश में भिंगती बकरी के तरफ जाता है। और वह कहते हैं कि जो बकरी एक बूँद पानी उसक शरीर पर पड़ने पर वह तुरंत किसी भी पेड़ के नीचे और फिर सांड की तरफ नजर जाता है और वह कहते हैं कि सिंधु घाटी वाली जो सांड है वह बारिश में भिंगता हुआ पुरा सड़क पर हीं खड़ा हुआ है और बारिश में भिंग रहा है। और फिर कवि कह रहे हैं कि जो मजदूर है वह मिट्टी के ढ़ेले जिस तरह बारिश को सोख लेते हैं ठिक उसी तरह मजदूर बारिश के पानी सोख रहे हैं और घर के आँगन में वह नई नवेली दुल्हन जिस स्त्री की शादी हाल हीं में हुई हो वह भिंगती हुई आँगन में नाचती हैं साथ ही कौआ के काले पंख के नीचे सफेद रोंए भी भिग जाते हैं। इलायची के छोटे-छोटे दाने भी एक दूसरे से गुँथा हुआ यानी की इलायची के दाने के जो गुच्छा है वह भी भिग जाता है। और इन सब का श्रेय कवि अपनी मातृभूमि को देते हैं और कहते हैं यह सब तुम्हीं तो हो। और फिर लेखक कहते हैं जब भी कोई भूखा प्यासा रहता है तो वह तुम्हें हीं याद करता है। इसका अर्थ ये हुआ जब खेतों में सुखाड़ आता है। फसल खराब होने लगते हैं तो बारिश होने की संभावना जताई जाती है। फिर कवि कहते हैं कि जब कभी गर्मा-गरम भाप आता है तो मुझे लगता है अब मेरह माँ आ रही है। भेल भटुरे से ढ़की अपनी तस्तरी में जिसमें मेवा, अखरोट, मक्खन और काजू लिए आ रही है। और फिर मेरी अपने हाथों में दुध लिए आ रही है। ये सब बच्चे रसोई के चौखट पर इस आशा में खड़े हैं कि उन्हें कुछ खाने को मिल जाए।
कवि कहते हैं कि कभी-कभी तो धरती का रंग हरा मालुम पड़ता है। यहाँ पर कवि का कहने का अर्थ ये है कि कभी-कभी तो फसल बहुत हीं ज्यादा हरे-भरे होते हैं। तो कभी बहुत हीं ज्यादा सुनहरा कभी-कभी इतनी तेज धूप होती है जिसके कारण फसल सुखने लगता है और ये तुम्हारे चौखट पर खड़े के खड़े है। अपना सिर टेके सो रहे हैं और फिर कवि अपने मातृभूमि से कहते हैं कि ये जो आपके बच्चे जो यतिम है जिसका कोई नहीं अनाथ है। जो कर्ज से दबे हुए है उनके माथे पर हाथ फेर दो फिर कवि एक बार और कहते हैं कि माँ तुम इसके जिंदगी को संवार दो। यहाँ इस पाठ में भिगी हुई बाल संवारने की बात कही गई है। कवि उस बारिश में भिग रहें है और ये बाते अपने मातृभूमि से कह रहे हैं।
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