इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पद्य भाग के पाठ 4 ‘सहजोबाई के पद की व्याख्या (Bihar Board Sahjo Bai ke pad class 11 Hindi)’ के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
4. पद
लेखिका :-सहजोबाई
पद-1
मुकुट लटक अटकी मन माहीं।
नृत तन नटवर मदन मनोहर कुंडल झलक अलक बिथुराई ।
नाक बुलाक हलत मुक्ताहल, होठ मटक गति भौह चलाई ।।
ठुमक ठुमक पग धरत धरनि पर, बाँह उठाय करत चतुराई ।।
झुनक झुनक नूपुर झनकारत, तता थेई थेई रीझ रिझाई ।
चरनदास सहजो हिय अंतर भवनकारी जित रहौ सदाई ॥
भावार्थ- इस पद के माध्यम से सहजोबाई श्री कृष्ण के नाटयलीला एवं उनके माये का शोभाशाली मुकुद दे मग्ध हो जाती है और कहती है जब भी मैं कृष्ण के माथे पर वह अति सुंदर सा मुकुट और उसमें लगे वह लटकन जो हमारे मन को मोह लेता है यानी की मानो वह हमारे मन में हीं अटका हो। उस लीलाधारी कृष्ण का शरीर हमेंशा नृत्य करता मालुम पड़ता है और उनके मनोहर रूप, कानों पर कुंडल डोलने बिखरे हुए बाल सम्पूर्ण तरीके से मन को मुग्ध कर देता है।
लेखिका सहजोबाई कहती है इनके आभूषण है वह मोती के बने है। और उनके ओठ बहुत ही सुंदर तरीके से मटके है यानी कि जब वह किसी से बात करते हैं तो उनके ओठ अति सुंदर प्रतित होते हैं। और होठों के साथ भौह की गति अति सुंदर मालुम परती है। जब वह अपना पैर उठा-उठा कर जमीन पर पखते है और अपने हाथों द्वारा किसी भी भाव को व्यक्त करना अति उत्तम मालुम पड़ता है।
सहजोबाई कहती है कि जब वे अपना पैर झनकराते हुए चलते हैं तो उनके पैरो की घुँघरू बजाने की आवाज सुनने वाले सभी लागों का मन मोह लेता है। चरणदास जी सहजोबाई से कहते हैं श्री कृष्ण की सदा तुम पर कृप्या बना रहे और तुम सदा जीती रहो।
पद-2
राम तनँ पै गुरु न बिसारूँ । गुरु के सम हरिकूँ न निहारूँ ॥
हरि ने जन्म दियो जग माहीं । गुरु ने आवागमन छुटाहीं ॥
हरि ने पाँच चोर दिए साथा । गुरु ने लई छुटाय अनाथा ।।
हरि ने कुटुंब जाल में गेरी । गुरु ने काटी ममता बेरी ॥
हरि ने रोग भोग उरझायौ । गुरु जोगी कर सबै छुटायौ ।।
हरि ने कर्म भर्म भरमायौ । गुरु ने आतम रूप लखायौ ।
हरि ने मोरूँ आप छिपायौ । गुरु दीपक दै ताहि दिखायो ।।
फिर हरि बंध मुक्तिगति लाये । गुरु ने सबही भर्म मिटाये ।
चरनदास पर तन मन वारूँ । गुरु न तजूं हरि तजि डारूँ ।।
सहजाबाई कहती है मैं राम को भुल सकती हुँ लेकिन गुरू को नहीं और कहती है गुरू एवं भगवान को मैं एक नजरिया से मैं नहीं देखती हुँ क्योंकि हरी/भगवान राम ने जन्म देकर इस सृष्टी पर भेजा लेकिन गुरू ने हमें शिक्षा देकर जन्म एवं मृत्यु के आवागमन से छुटकारा दिला दिया। इस पद के अनुसार हरि यानि राम ने पाँच चोरों को हमारे साथ भेजा था जिससे गुरूओं ने उन पाँच चोरों से मुक्ति दिलाने का काम किया। सहजोबाई कहती है कि हरि/राम ने हमें परिवार के कुटुम जाल में फँसा दिया था। लेकिन गुरूओं इस ममता की डोर को काटकर छुटकारा दिलाया। लेखिका सहजोबाई गुरू और हरि में तुलना करती हुई अंतर स्पष्ट करती है और कहती है कि हरि ने जन्म के साथ रोग और भोग में उलझा दिया लेकिन गुरूओं नें योग की शिक्षा देकर मुक्ति दिलाई। सहजोबाई कहती है कि हरि ने हमें कर्म के मार्ग पर डालकर कर्मफल में उलझाया लेकिन गुरूओं ने स्पष्ट तरिके बताया कि आत्म ज्ञान पाने से हीं कर्म फल एवं कर्म की बंधन से मुक्ति मिलती है लेखिका कहती है कि हरि ने हमें अपने स्वयं से छुपाया मानों कि हमारे और हरि के बीच ऐ पर्दा लग गया हो। जिससे एक दूसरे को देखा ना जा सके। लेकिन गुरूओं ने ज्ञान की दीपक जलाकर उस अंधकार से दूर किया और फिर हमें हरि यानी ईश्वर से दर्शन कराया और हम दोनों के एक साथ जोड़ा और मुक्ति गति लाया। सहजोबाई कहती है कि गुरू ने हमारे सारे भ्रम को दूर किया और कहती है मैं अपनी गुरू चरणदास जी को पुरे दिल से मानती हुँ मैं हरि को छोड़ सकती हुँ गुरू को नहीं।
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