इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 12 हिंदी गद्य भाग के पाठ तीन ‘सम्पूर्ण क्रांति (Sampoorna Kranti Class 12th Hindi Notes)’ के सम्पूर्ण व्याख्या को पढ़ेंगे। जिसके लेखक जयप्रकाश नारायण हैं।
3. सम्पूर्ण क्रांति
प्रस्तुत पाठ लोकनायक जयप्रकाश नारायण के द्वारा रचित ‘सम्पूर्ण क्रांति‘ पाठ से लिया गया है। यह भाषण 5 जून 1974 को पटना के गाँधी मैदान में दिए गए। प्रस्तुत पाठ जयप्रकाश नारायण के ऐतिहासिक भाषण का एक अंश है। संम्पूर्ण भाषण एक पुस्तिका (किताब) के रूप में प्रकाशित हो चूका है। यह भाषण छात्र आंदोलन के दौरान दिया गया था। पटना गाँधी मैदान में उपस्थित लाखो लोगों ने उसी समय जात-पात, तिलक-दहेज और भेद-भाव छोड़ने का विचार किया। हजारो लोगों ने अपने जेनऊ को तोड़ दिया था। नारा जोर-जोर से गुँजने लगा— ‘जात-पात छोड़ दो तिलक-दहेज छोड़ दो समाज के प्रभाव को नई दिशा में मोड़ दो यही नारा गुँज उठा था।’
1974 में बिहार से शुरू हुए छात्र आंदोलन का मुख्य कारण मँहगाई, बेरोजगारी और गरीबी था। इस आंदोलन का उद्देश्य तत्कलीन सरकार को हटाकर भ्रष्टाचार मुक्त सरकार की स्थापना था। भाषण के दौरान नेहरू जी का उदाहरण दिया गया था। नेहरू जी कहते थे कि देश को विकसित बनाने के लिए जनता को अभी कोसों दुर जाना होगा अर्थात कठिन परिश्रम करना होगा। वह आगे कहते हैं कि मेरे भाषण में क्रांति के बिगुल होंगे। जिन पर आपको अमल करना होगा। लाठियाँ खानी होंगी। यह सम्पूर्ण क्रांति है और वैसी ही जो हमारे भगत सिंह लाना चाहते थे। स्वराज से जनता कह रही, भूखमरी, महंगाई और भ्रष्टचार यहीं आज फैला हुआ है।
शिक्षा पाकर व्यक्ति ठोकर खाता फिर रहा है। कांग्रेस गरीबी हटाओं के नारे जरूर लगाती है, लेकिन गरीबी हटती नहीं, बढ़ती ही चली जा रही है। जयप्रकाश नारायण का यह भी कहना था कि जब वो नौजवान थे, तो बापू जब कोई बात कहते थे और वो बात जेपी के विचार से नहीं मिलते थे यानी जेपी (जयप्रकाश नारायण) अगर उनकी बात नहीं मानते थे, तो बापू में इतने महानता थी कि वो बुरा नहीं मानते थे। जेपी जी कहते है कि मै जवाहरलाल नेहरू को हमेशा भाई कहता था। (बड़ा भाई) वो भी मुझे बहुत मानते थे। मै उनका बड़ा आदर और उनसे प्रेम करता था।
नेहरू जी का बड़ा ही स्नेह था मुझपर। मैं भी उनकी आलोचना करता था लेकिन बड़प्पन था कि वो कभी बुरा नहीं माने। संघर्ष समितियों से जयप्रकाश नारायण का यहीं उपेक्षाएँ थी कि उनका काम केवल शोषण से संघर्ष करना नहीं बल्कि उनका काम तो समाज के हर अन्याय और अनीति के विरूद्ध लड़ना होगा और इस प्रकार जो संघर्ष समितियाँ सरकार से लड़ रही है। वह सिर्फ लोकतंत्र के लिए ही नहीं लड़ रही है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, नैतिक क्रांति के लिए अथवा सम्पूर्ण क्रांति के लिए एक महत्वपूर्ण काम करेगी। ये बात सच्च है कि जयप्रकाश नारायण जी जब अमेरिका में थे, तो 1929 में वे मार्क्सवादी बनें।
वे भारत लौटे, तो भी घोर मार्क्सवादी थे और काँग्रेस में दाखिल हुए वे कम्युनिस्ट पार्टी में इसलिए शामिल नहीं हुए क्योंकि लेनिन द्वारा कही गई बात उनको अच्छी तरह याद थी कि लेनिन यह बताया था कि जो देश गुलाम हो, वहाँ के कम्युनिस्ट हरगिज वहाँ की आजादी की लड़ाई से अपने को अलग नहीं रखना चाहिए।
हमारे नेता लोकतंत्र की बात करते हैं, लेकिन वह जुलुस पर रोक लगाते हैं। जो लोकतंत्र के खिलाफ हैं।
लेखक के अनुसार अन्य देशों में प्रेस तथा पत्रिकाएँ प्रतिनिधियों पर अंकुश लगती है लेकिन हमारे देश में इसका बहुत अभाव है। जयप्रकाश नारायण जी का ये भाषण मंत्रमुग्ध करने वाला था। Sampoorna Kranti Class 12th Hindi Notes
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