इस पोस्ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्दी के पद्य भाग के पाठ पॉंच ‘उत्साह, अट नहीं रही है कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Utsah aur at nahi rahi hai bhavarth) के व्याख्या को पढ़ेंगे।
5. ‘उत्साह‘ तथा ‘अट नहीं रही है‘
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 1899 ई़ में बंगाल के महिषा दल में हुआ। इन्होंने अपनी शिक्षा कि प्राप्ति घर पर हीं कि। उन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी आदि भाषाओं का अध्ययन घर पर ही किया। इनका पारिवारिक जीवन कष्ट और संघर्षो से भरा था। इनके पिता, चाचा, पत्नि के अलावा उनकि पुत्री सरोज कि भी मुत्यु हो गई। उनकि प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। अनामिका, परिमल, गितिका, कुकुमुत्ता, नए पत्ते आदि। निराला कि मृत्यु 1961 में हुआ। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला नें उत्साह कविता के अंतर्गत बादलों को एक ओर तो लागों की इच्छाओं को पुरा करने वाला बताया है। निराल इस कविता के माध्यम से सामाजिक क्राति और बदलाव लाना चाहतें हैं। यह कविता एक आहान गित है। इनसे निराला ने फागून के सौदर्य और उल्लास को बताया है । कवि बादलों को कहतें हैं कि एै लोगो के मन को सुख से भर देने वाले बादलों, आकाश को घेर-घेर कर खुब गरजो तुम्हारे काले बाल सुंदर घुँघराले हैं। ये कल्पना के विस्तार से समान घने है। निराला बादलो को कवि के रूप में समझाते हुए कहतें हैं कि तुम्हारे हृदय में बिजली कि चमक है। वर्षा दुःखी और प्यासे लोगो कि इच्छा पुरी करतें है उसी प्रकार कवि भी संसार को नया जीवन देनेवाले है। जिस प्रकार बादलों में वज्र छिपा है उसी तरह कवि भी अपनी नई कविता के भावनाओं में वज्र छिपाकर नवीन सृष्टि का निर्माण करतें है और पुरे संसार को जोश से भर देते हैं।
उत्साह कविता का भावार्थ
बादल, गरजो!-
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो-
बादल, गरजो!
भावार्थ- कवि बादलों को कहते है कि ऐ लोगों के मन को सुख से भर देने वाले बादलो , आकाश को घेर कर खुब गरजो। तुम्हारे काले बाल घने सुन्दर धुँधराले है। ये कल्पना के विस्तार से समान है। निराला बादलों के कवि के रूप में समझाते हुए कहते हैं। कि तुम्हारे ह्रदय में बिजली की चमक है। वर्षा दुःखी और प्यासे लोगो की इच्छा पुरी करते है, उसी प्रकार कवी भी संसार को नया जीवन देने वाले है। जिस प्रकार बादलों में वज्र छिपा है, उसी तरह कवि भी अपनी नइ कविता के भावनाओं में वज्र छिपाकर नवीन सृष्टि का निर्माण करतें है और पुरे संसार को जोश से भर देते हैं।
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो-
बादल, गरजो!
भावार्थ- कवि कहते है कि सभी तरफ वातावरण में बेचैनी थी लोगो के मन दु;खी थें , इसलिए बादलों से कहते है कि आकाश को घेर-घेर कर गरजो और लोगो के मन को सुख से भर दों। दुनिया के सभी प्राणी इस भयंकर गर्मी के कारण बेचैन और उदास हो रहे है। अंजान दिशा से आए हुए घने बादलों तुम बरसकर गर्मी से तपती इस धरती को ठंडा करके लोगो को सुखी और खुश कर दो।
अट नहीं रही है कविता का भावार्थ
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।
भावार्थ- कवि फागुन के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते है कि चारो तरफ फागुन की शोभा समा नहीं पा रही है। फागुन की सोभा तन-मन में नहीं समा पा रही है। इस समय चारो ओर फूल खिलते है और तुम साँस लेते हो, उस साँस से तुम पुरे प्रकृति को खुशबू से भर देती है। यह सब देखकर मन खुश हो जाता है। और खुले आसमान में उडना चाहता है। इस वातावरन में पक्षी भी पंख फैलाकर उडना चाहते है। इस फागुन की नजारा इतना अदभुत और सुहाना होता है कि अगर हम इससे नजरे हटाना भी चाहे तो नहीं हटा पाते है। इस समय में पेंडो की डालियाँ कही लाल फुलो से तो कही हरी पत्तियों से लदी रहती है। इस सबको देखकर ऐसा लगता है कि फागून के गले में सुगंध फैलाने वाली फूलो की माला पडी हुइ है। इस प्रकार फागुन का यह सौंदर्य बिखरा हुआ है कि वह सौंदर्य समा नही पा रहा है। Utsah aur at nahi rahi hai bhavarth NCERT Class 10
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