इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पद्य भाग के पाठ 1 ‘विद्यापति पद की व्याख्या (Vidyapati ke pad class 11 Hindi)’ के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
1.पद
लेखक-विद्यापति
पद-1
चानन भेल बिषम सर रेए भूषन भेल भारी ।
सपनहुँ नहिं हरि आएल रेए गोकुल गिरधारी ॥
व्याख्या- इस पद के माध्यम से कवि विद्यापति कहते हैं कृष्ण की गोपियाँ उद्धव से कृष्ण तक संदेशा पहुँचाती है और कहती है जो चंदन के लेप माटी पर इतना ठंडक महसुस होता है। वह एक तेज शातिर की तरह चुभ रहा है और जो आभुषण है वह भारी लग रहा है। इन सब गोपियों की रक्षा करने वाला दयालू कृष्ण अब सपनों में भी दर्शन नहीं देते हैं।
एकसरि ठाढ़ि कदम.तरे रेए पथ हेरथि मुरारी ।
हरि बिनु देह दगध भेल रेए झामर भेल सारी ।।
व्याख्या- इस पंक्ति के माध्यम से गोपियाँ उद्धव से बात कर रही है कि गोपी अकेली वृक्ष के नीचे कृष्ण के आने की राह देख रही है। कृष्ण के आने की इंतजार में इनका शरीर झुलसा हुआ है और शरीर का वस्त्र मैला हो गया है।
जाह जाह तोहें ऊधव हेए तोहें मधुपुर जाहे ।
चन्द्रबदनि नहि जीउति रेए बध लागत काहे ॥
व्याख्या- इस पंक्ति के माध्यम से गोपियाँ उद्धव से कहती है आप जल्दी मथुरा लौट जाओ और बता देना कि अब चंद्रमा की तरह उसकि गोपी और जीवित नहीं रहेगी। वो आकर हमें बचा ले और गोपियाँ के मरने का पाप से मुक्त हो जाए।
भनइ विद्यापति मन दए रेए सुनु गुनमति नारी ।
आज आओतण् हरि गोकुल रेए पथ चलु झट.झारी ॥
व्याख्या- कवि द्वारा रचित इस पंक्ति के माध्यम से बताया गया है कि श्री कृष्ण मथुरा से अब गोकुल आऐगें। उद्धव उन गोपियों एवं राधा से कहते हैं ध्यान से सुनों आज कृष्ण मथुरा से गोकुल आवेंगे। तुम सब जल्दी से गोकुल चलो।
पद-2
सरस बसंत समय भल पाओलए दछिन पबन बहु धीरे ॥
सपनहुँ रूप बचन एक भाखिएए मुख सओं दुरि करु चीरे ॥
व्याख्या- गोपियाँ इस पंक्ति के माध्यम से कहती है की वसंत ऋतु की समय आ गया है और हवा की गति दक्षिण से उतर की ओर है कवि कहते हैं कि इस समय गोपियाँ सो रही है। गोपियाँ कहती है की सपनें में एक सुंदर सा पुरूष आता है और कहता है कि तुम अपनें मुख पर सारियों से ढ़का है उसे उठाओ।
तोहर बदन सन चान होअर्थि नहिंए जइओ जतन बिहि देला ।
कए बेरि काटि बनाओल नव कएए तइओ तुलित नहिं भेला ॥
व्याख्या- लेखक कहते हैं कि जो पुरूष गोपियों की स्वप्न में आया था। वह कहता है कि तुम्हारे मुख शरीर के जैसा तो चाँद भी नहीं हैं। वह महान पुरूष कहता है कि विद्याता ने तो चाँद को तुम्हारे जैसा बनाने के लिए चाँद को कितना बार काटा है लेकिन फिर भी तुम्हारे मुख के योग चाँद भी नहीं।
लोचन-तूल कमल नहिं भएण् सकए से जग के नहिं जाने ॥
से फेरि जाए नुकाएल जल भएए पंकज निज अपमाने ॥
व्याख्या- इस पंक्ति के माध्यम से कवि कहते है उस स्त्री से की तुम्हारे आँखों के जैसा सुंदर कमल के फूल भी नहीं है। और ये बात कौन नहीं जानता है। इस बात को कमल के फूल भी अच्छे तरह से जानता है तभी तो कमल स्वयं को अपमानित समझकर जल में छुप जाता है।
भनइ विद्यापति सुनु बर जौबतिए ई सभ लछमी समाने ।
राजा सिबसिंह रूपनराएनए लखिमा देइ रमाने ।
व्याख्या- कवि विद्यापति द्वारा रचित पंक्ति में उस स्त्री के बारे में प्रसंशा करते हुए कहते हैं हे युक्ति तुम सबसे श्रेष्ठ हो तो सबसे अलग हो। मानों कि तुम लक्ष्मी कि प्रतिक हो जो मैने तुम्हारे इस खुबशुरती के बारे में कहा है वो सब राजा शिव सिंह एवं उनकि पत्नी लखिमा अच्छे तरह जानती है।
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