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6. ‘यह दंतुरित मुस्कान‘ तथा ‘फसल‘ कविता का भावार्थ | Yah danturit muskan tatha Fasal kavita ka bhavarth class 10

August 12, 2022 by Raja Shahin 6 Comments

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ छ: ‘यह दंतुरित मुस्कान’ तथा ‘फसल’ कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Yah danturit muskan tatha Fasal kavita ka bhavarth)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

yeh danturit muskan aur fasal kavita ka bhavarth

6. ‘यह दंतुरित मुस्कान’ तथा ‘फसल’
कवि- नागार्जुन

नागार्जुन का वास्तविक नाम वैधनाथ मिश्र था। साहित्य के क्षेत्र में वे नागार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनका जन्म 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। 1936 में वे श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए और 1938 में स्वेदश लौट आए।
नागार्जुन धुमक्कड़ और फक्कड़ स्वभाव के कारण प्रसिद्ध थे। इन्होनें हिन्दी और मैथिली भाषा में लेखन कार्य किया । युगधारा ,सतरंगे पंखो वाली ,हजार हजार बाँहो वाली, तुमने कहा था ,पुरानी जूतियों का फोरस आदि। नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ हैं। मैथली भाषा के काव्य रचना के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनकी भाषा बहुत ही आसान और सहज व प्रवाहमयी है। इनकी मृत्यु 1998 में हुआ था।
’यह दंतुरित मुस्कान‘ को कवि ने एक छोटे बच्चे की मुसकान का वर्णन किया है। बच्चे की मुसकान को अमुल्य माना गया है। बच्चे की कोमल दंतुरित मुसकान कठोर ह्रदय को भी पिघला देती है। ‘फसल‘ कविता में कवि नें अनेक तत्वों का उल्लेख किया है। जिसकी मदद से फसल की उत्पति होता है। इसकी उत्पति में किसान की भूमिका और उसके मेहनत को बताने के साथ-साथ मिट्टी, जल, सूर्य, हवा आदि सभी के योगदान को भी बताया है। प्रकृति एवं मनुष्य के परस्पर सहयोग का ही परिणाम फसल है।

‘यह दंतुरित मुस्कान’

तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?

भावार्थ- कवि को बच्चे के नए-नए निकले दाँतो की मनमोहक मुसकान में जीवन का संदेश दिखाई देता हैं। वह कहते हैं कि हे बालक तुम्हारे नए-नए दाँतों की मनमोहक मुसकान को देखकर तो जिन्दगी से निराश और उदासीन लोगों के हृदय भी खुशी से खिल उठते हैं। कवि कहते हैं कि तुम्हारे इस शरीर को धुल से सने हुए देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कमल का सुंदर फूल तालाब को छोड़कर मेरी झोपड़ी में आकर खिल गया हो और तुम्हें पत्थर दिल वाले व्यक्ति ने जब तुम्हरा छुवा स्पर्श किया होगा तो वह भी पत्थर की तरह अपनी कठोरता को छोड़कर नर्म बन गया होगा। तुम्हारा स्पर्श त्वचा इतना कोमल है कि बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगे होंगे।

तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान

भावार्थ- कवि को बच्चे की मुसकान मनमोहक लगती है जब बच्चा पहली बार किसी को देखता है तो वह अंजान की तरह उसे घुरता है इसलिए कवि बच्चे से कहता है कि तुम मुझे पहचान नही पाए। इसलिए बिना पलक झपकाए अंजान की तरह मुझे देखे जा रहे हो। कवि कहते है ऐसे लगातार देखते-देखते तुम थक गए हो। इसलिए मैं ही तुम्हारी तरफ से नजर हटा लेता हूँ। अगर तुम मुझे पहली बार में नहीं पहचान सके तो क्या हुआ। अगर तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच का माध्यम का काम न करती तो तुम मुझे देखकर हँसते नहीं और मुझे तुम्हारे इन नए-नए निकले दाँतो वाली मुसकान को देखने का सौभाग्य नहीं मिल पाता।

धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

भावार्थ- कवि बच्चे की मधुर मुसकान देखकर कहता है कि तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य है जो तुम्हे एक दुसरे का साथ मिला मैं तो हमेशा बाहर ही रहा इसलिए मेरा तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा। तुम्हारे लिए तुम्हारे माँ के अंगुलियों में ही आत्मीयता है। जिसने तुम्हें पंचामृत पिलाया। इसलिए तुम उनका हाथ पकड़कर मुझे कनखी से नजारा देख रहे हो। औश्र जब हमारी नजरें तुम्हारी नजरों से मिल रही है। तुम मुसकुरा दे रहे हो। उस समय तुम्हारे नए-नए निकले दाँतों वाली मुसकान मुझे बहुत ही प्रिय लगती है।

Fasal kavita ka bhavarth

फसल कविता का भावार्थ

एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्मः

भावार्थ- कवि ने स्पष्ट बताया है कि लहलहाती फसल को पैदा करने में प्रकृति और किसान दोनों का ही बराबर सहयोग होता है। इसलिए फसल को पैदा करने में सिर्फ एक-दो नदियाँ ही नहीं, बल्कि अनेक नदियाँ अपना पानी देकर उसकी सिंचाई करते हैं। सिर्फ एक-दो मनुष्य का ही नहीं बल्कि लाखों करोड़ों मनुष्यों का मेहनत मिलता है और एक-दो खेती का हीं नहीं बल्कि हजारों खेतों की मिट्टी का गुण धर्म मिलता हे, तब खेतों में फसल होती है।

फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

भावार्थ- कवि ने स्पष्ट बताया है कि फसल को ऊपजाने में प्रकृति और मनुष्य दोनों ही का सहयोग होता है। इसलिए कवि कहता है कि फसल का खुद कोई अस्तित्व नहीं है। वह तो नदियों द्वारा दिए गए उसका पानी का जादू है, वह तो लाखों-करोड़ों मनुष्यों के किए गए मेहनत का फल है। वह तो भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुणधर्म है। जिसमें फसल को बोया था और सुर्य के किरणों का बदला हुआ रूप है जिससे फसलों को रोशनी मिली। साथ ही हवा का समान सहयोग है। इस तरह इन सब के सहयोग और मेहनत से ही खेतों में लहलहाती फसल खड़ी होती है। Yah danturit muskan tatha Fasal kavita ka bhavarth

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Filed Under: Hindi

Reader Interactions

Comments

  1. ISHANT RANA says

    September 11, 2023 at 9:02 pm

    Best ????

    Reply
    • Nisha says

      September 28, 2023 at 8:00 pm

      Yes you are absolutely right

      Reply
  2. Nisha Singh says

    September 28, 2023 at 8:02 pm

    This poem has my heart ❤️

    Reply
  3. Vishal jogi says

    October 16, 2023 at 1:05 pm

    Best ????????

    Reply
  4. Amit rajput says

    October 17, 2023 at 11:46 am

    Nice

    Reply
  5. Prince says

    October 18, 2023 at 2:44 pm

    Op

    Reply

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