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Raja Shahin

3. आँखो देखा गदर का व्‍याख्‍या | Aankho Dekha Gadar Class 11th Hindi

August 21, 2022 by Raja Shahin 2 Comments

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पाठ तीन ‘आँखो देखा गदर’ (Aankho Dekha Gadar Class 11th Hindi) कहानी का सारांश और सम्‍पूर्ण कहानी को पढ़ेंगेंं।

3. आँखो देखा गदर

पाठ का सारांश और व्‍याख्‍या

झांसी में लड़ाई होने के संभावना को देखकर वहाँ के लोग ग्वालियर चले गए। एक दिन शहर के मैदान में तंबु दिखाई दी चारो तरफ हलचल मच गई। जिसके कारण से शहर के चारो तरफ मोरचे लगाने का प्रत्यंत किया परंतु यहाँ के गोलदाज के चिथड़े उड़ा रखे थे। यहाँ के बुजुर्गो को मालुम था कि मोरचा किले के किस स्थान से किया जाता है। पर अंदर के षड्यंत्र का पता अंग्रेजो को चला और मोरचा बाग दिया गया। किले पर गोले बरसाये गए। लेकिन यहाँ के क्षेत्रो का अधिक नुकसान हुआ। इसी कारण से रोजगार बिल्कुल बंद हो गया। लोग सफर करने से डरते है परंतु बाई ने अंग्रेजो कि जबरदस्त नाकाबंदी शुरू की। अंग्रेजो के तरफ से बहुत लोग मारे गए। इसके सामने गोलंदाल टिक नहीं पाए। पर एक तोप का एक गोला का वजन 50-60 सेर होता है। दिन रात युद्ध होने के बाद शहर बरबरद हो गया। रात में कुशल कारिगरो का बुर्ज पर चढ़ाया गया। Aankho Dekha Gadar Class 11th Hindi

क्योंकि बिना ईट की दिवारो मनुष्य की नशेनी-सी खड़ा करने के लिए। आटवे दिन प्रलय मचा और युद्ध हुआ। बहादुर लोग एक दुसरे को प्रोत्साहित करते थे। नर्सिग नगाड़े बिगुल बज रहे थे। और चारो तरफ धुल और धुआ का बंदूक बारूद, गोले के आवाज से वातावरण भयंकर लगता था। अंग्रेजी फौजी ने अधिक तबाही मचाई। इधर से तात्याटोपे पंद्रह हजार फौजी लेकर झांसी पहुँचे तब अंग्रेजी फौजी और तात्याटोपे की फौजो से अधिक युद्ध हुआ। हिन्दी फौज के नादानी से तात्याटोपे की फौज टूटने लगी। यही देखकर तात्याटोपे 24 पन्ने और 36 पन्ने के टोपो को छोड़कर भाग गया। तथा अंग्रेजो की विजय हुई। और उनकी हिम्मत चारगुणी हो गई सबलोग डर गए। क्योंकि अगर झांसी अंग्रेजो के हाथ लगती है तो वो हमें नहीं छोड़ेंगें। इसलिए स्वयं सरदार लोगो नें बाई साहब के प्रकोटे की दीवार पर मेहनत करने लगे। और अपना कई रात वहीं गुजारा और बाई साहब सबको हिम्मत दे रही थी। उस दिन महल पर शनि दृष्टि हो रही थी।

एस दिन महल पर गोले बरसाए गएँं जिसके कारण सबलोग घबराकर एक कोठरी में घुसने लगे। वे कोठरी तीन मंजीलो के नीचे थी। उसमें दासियाँ भी थी। बाई साहब के गोलंदाजो के टोपो को खाली कर दी तब गोले बरसना बंद हो गई। तब 11 दीन तक लड़ाई चली जिसमें हजारों मजदूर के सर पर घासो के गट्ठर को लादकर दीवार के दीवार के जैसी सिढ़ी बनाए गए। और उन्हीं सिढ़ीयों पर एक एक करके गोरे सिपाही उतरने लगें। दीवर पर बाई साहब घोड़े पर सवार थी। जो सफेद था उसको ढ़ाई हजार में खरीदा गया। जिसे राजरत्न के समान था और अपने पिछे रेशमी दुपट्टे से 12 महीने के दत्ततक पुत्र को बाँधी थी। हलचन में बाई साहब का घोड़ा अंग्रेजो को पता नहीं चला कि बाई का घोड़ा कौन है। बाई ने काल्पि रास्ता के धारा सबको मारते निकल गई। कुछ देर बार पता चला कि चरखारी में पेशवा की हार हुई। परंतु इनके साथ झांसी वाली रानी थी। वो पठानी पोशाक पहनी थी। जब लेखक कुँए से पानी निकाल रहे थे परंतु तभी बाई साहब ने देखा और कहा मैं पानी निकालुँगी तथा बाई ने अंजला बाँधकर पानी पिया। मैं महारानी मै आधाशेर चावल की हकदार हूँ। मै सुख दुःख की आस छोड़कर बैठी हूँ पेशवा की फौज युद्ध में असफल हो गए।

दिल्ली, लखनऊ, झांसी में अंग्रेजो की वजह से गदर वाले घबराने लगे। इस युद्ध में सैकड़ो की हार हुई। ग्वालियर में सिंदे सरकार के पास रहने वाले लोग तात्याटोपे के साथ चले गए। कलापि में पेशवा की हार हो गई । सब साथी ग्वालियर की तरफ चली गई। सिंदे सरकार फौज छावनी में थी तो वहाँ मोरचा सभा सीदो को कहा था। तो चारलाख खर्चे दो या युद्ध में उतरो। दीनकर राव राजवाने दीवान ने जवाब दिया। हम लड़ाई के लिए तैयार है। लड़ाई तो होगी पर हम पेशवा को नहीं मारेंगें। क्योंकि आपके और हमारे वे मालिक है। इतने में गदर वाली फौज की तरफ से तोप चलने लगी सिंदे राल दीवान दोनो मिलकर तोप में बŸा लगाई। सौ दो सौ आदमी मारे गए। इतने में सिंदे और दीवान कें भाग जाने की खबर चारो तरफ फैल गई । खबर को सुनते सिपाही ने लड़ाई बंद कर दी।  Aankho Dekha Gadar Class 11th Hindii

श्रीमंत पेशवा की ओर शहनाई बजी गदर वालो ने सारा पेंड़ उजाड़ डाला बहुत सारे जानवर जैसे हाथी, ऊँट, बंदर आदि छोड़े गए। जिसके कारण पौधो को अधिक नुकसान पहुँचा इसी हानी को देखकर सिंद सरकार ने फूलबाग नामक बाग लगाए। पशुओ के डर से सारे दूकान बंद हो गई। श्रीमंत ने ओडी पिलाकर सारी दूकान खुलवाईं। शहर के राजमहल में किसे भेजे गए। इसपर श्रीमंत राय साहब विचार कर रहे थे। तभी स्वयं झांसी वाली रानी ने वहाँ जाने की विचार आज्ञा मान ली। अब राव साहब ने कहा वह डाकू का शहर है। महलो में अधिक धोखेबाजी होगी। अपना सामान को बंधुबस्त करके जाना। बाई ने अपने साथ हथियार लेकर महल में गई। और खबर भेजी वहाँ के सब चीजें अपने दवा में ले ली। फिर तात्याटोपे और राव साहब को खबर मिली यहाँ सब ठीक है आप यहाँ चले आइये। तब राव साहब शहर की ओर चल पड़े। इसलिए कल से भोजन को प्रबंध कर लड्डू और पकवानों के साथ एक रूपया दक्षिणा के क्रम में बाँटे जाए।

18 दीन बड़ी आराम से बीती अचानक खलबली मची की आगरा से अंग्रेजो पर आकर आगरा पर हल्ला बोल दिया। तभी झांसी वाली बाई तात्याटोपे और राव साहब घोड़े से मुरस की ओर चल पड़े। बाडा युद्ध छिप गया। झांसी वाली को गोली तथा तलवार के चोट लगने के बावजूद भी डटी रही। वो बेहोस होकर गिरने लगी तथा तात्याटोपे उन्हे संभाला। झांसी वाली की शरीर का अंतिम संस्कार किया गया। जिसमें अंग्रेजो की जीत हुई। गदर वाले इधर उधर भागने लगे। इस तरह मशहूर देवीस्रूपीनी स्त्री ने मृत्यु पाकर स्वर्ग को जीता, लेकिन गदर वालों ने सदा उत्साह और शूरता से चमकने वाली प्रत्यक्ष वीरश्री निस्तेज हो गई। Aankho Dekha Gadar Class 11th Hindi

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2. कविता की परख निबंध का व्‍याख्‍या | Kavita ki Parakh Nibandh | Class 11th Hindi

August 20, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पाठ दो ‘कविता की परख’ (Kavita ki Parakh Nibandh) कहानी का सारांश और सम्‍पूर्ण कहानी को पढ़ेंगेंं।

Kavita ki Parakh Nibandh

2. कविता की परख

प्रस्तुत पाठ ‘कविता की परख‘ के लेखक रामचंद्र शुक्ल है। इस पाठ के माध्यम से लेखक हमें यह ज्ञात कराते हैं कि कविता क्या है अर्थात लेखक ने इस पाठ में कविता की विशेषता का उल्लेख किया है।

लेखक के अनुसार कविता का उद्देश्य कविता को पढ़ने वाले पाठक के हृदय पर सिधा प्रभाव पड़ाना है और यदि उस कविता से पाठक के अंदर ये विचार उत्पन्न नहीं होता होता, तो यह कविता नहीं कहलाता है। जैसे प्रेम, आनंद, हास्य, करूणा, आश्चर्य आदि किसी एक का प्रभाव पाठक के हृदय पर पड़ना चाहिए। कविता हमारे मन में कुछ इस प्रकार से व्यापार की तरह खड़ा करती है कि मानो सबकुछ हमारे सामने हो रहा हो। यानी कि कवि अपने कविता के माध्यम से पाठक के मन में अलग-अलग विचार लाता है।

कविता में कवि अपने पाठक के मन में किसी भी प्रकार का भाव व्यक्त करने के लिए अपने शब्दों के माध्यम से सुंदर व्यक्ति एवं सुंदर स्थान को स्मरण कराता है। जैसे सुरदास जी श्रीकृष्ण के महान लीला का चित्रण, उसी प्रकार तुलसीदास जी की गीतावली जिसमें कितना सुंदरता हमारे समक्ष में लाता है। यदि कवि के द्वारा अपने पाठक के मन में किसी तरह के भावना जागृत करना है, तो उन्हें सब पता है कि किस तरह के शब्द का उपयोग हमें अपने कविता में करना चाहिए।

वाक्य में मधुरता और सुंदरता लाने के लिए वाक्यों में वस्तुओं का उल्लेख किया जाता है। जैसे मुख को चंद्र या कमल के समान, कायर को सियार के समान, वीर को पराक्रमी के समान कहा जाता है। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य अपने पाठक के मन उस वस्तु-स्थान के प्रति सुंदरता, मधुरता, कोमलता, कठोरता, वीरता एवं कायरता की भावना और भी तीव्र हो जाए।

उपमा का अर्थ भावना को तीव्र करना होता है। वस्तु की बोध या परीज्ञान कराना नहीं, बोध या परिज्ञान का अर्थ होता है किसी वस्तु को किसी दूसरे वस्तु के समाना दिखाना जैसे- मानो कि कोई ऐसा व्यक्ति जो हारमोनियम ना देखा हो तो उसे हम कह सकते हैं कि वह एक संदुक के जैसा होता है।

अच्छे कवि अभि उपमा नहीं दिया करते कवि लोग अखि की उपमा के लिए कभी कमल दल लाते है। जिससे पाठक के मन में रंग की मनोहरता, प्रफूलता, कोमलता आदि की भावना एक साथ उत्पन्न हो सके। कवि लोग प्रेम, शोक, करूणा, आश्चर्य,भय आदि जैसे भावनाओ अपने पाठक के मुँह से प्रकट कराया करते हैं। और कवि अपने

कविता कुछ ऐसे शब्द का उच्चारण करते हैं कि मनुष्य के प्रेम, क्रोध के समय शोक में, आश्चर्य में एवं उत्साह में किस तरह के व्यंजनों का वर्णन करना है। ये सब सिर्फ एक सच्चे कवि को अनुभव होता है। Kavita ki Parakh Nibandh Summary Explanation

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3. साना-साना हाथ जोड़ी | कृतिका भाग 2 | Sana Sana Hath Jodi Class 10 Hindi

August 20, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग उत्तर प्रदेश बोर्ड के कृतिका भाग 2 के पाठ तीन  ‘साना-साना हाथ जोड़ी’ (Sana Sana Hath Jodi Class 10 Hindi) के व्‍याख्‍या और सारांश को पढ़ेंगे।

Sana Sana Hath Jodi Class 10 Hindi

3. साना-साना हाथ जोड़ी

पाठ की रूपरेखा लेखिका द्वारा महानगरों की भाव शून्यता, भागम-भाग और यंत्रवत् जीवन की ऊब से बचने के लिए दूरस्थ स्थानों की यात्रा की गई। इन्हीं यात्राओं के दौरान लेखिका को देश की विभिन्न संस्कृतियों, मनुष्यों और स्थानों को पहचानने और मिलने का अवसर मिला। इन अनुभवों को उन्होंने अपने यात्रा-वृत्तांतों में स्थान दिया है। प्रस्तुत पाठ भी एक यात्रा-वृत्तांत है, जिसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम की राजधानी गंतोक (गैंगटॉक) और उसके आगे की हिमालय-यात्रा का वर्णन किया गया है।

लेखिका-परिचय हिंदी साहित्य की आधुनिक लेखिका मधु कांकरिया का जन्म वर्ष 1957 में कोलकाता शहर में हुआ। इन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम. ए. तथा कंप्यूटर एप्लीकेशन में डिप्लोमा किया। इन्होंने विशेषकर गद्य साहित्य संबंधी रचनाएँ लिखीं, जो इस प्रकार हैं-पत्ताखोर (उपन्यास), सलाम आखिरी, खुले गगन के लाल सितारे, बीतते हुए, अंत में ईशु, चिड़िया ऐसे मरती है, भरी दोपहरी के अँधेरे, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, युद्ध और बुद्ध (कहानी-संग्रह), बादलों में बारूद (यात्रा-वृत्तांत)। मधु कांकरिया की रचनाएँ विचारात्मक तथा संवेदना की दृष्टि से नवीन हैं। इनकी रचनाओं के विषय सामाजिक समस्याओं से संबंधित है। जैसे- संस्कृति, महानगर की घुटन और असुरक्षा के जीच युवाओं में बढ़ती नशे की आदत, लालबत्ती इलाकों की पीड़ा आदि ।

पाठ का सारांश

लेखिका को गंतोक (गैंगटॉक) शहर सुबह, शाम और रात, हर समय बहुत लगता है। यहाँ की रहस्यमयी सितारों भरी रात लेखिका को सम्मोहित होती है। लेखिका ने यहाँ एक नेपाली युवती से प्रार्थना के बोल सीखे थे। हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कोसेली।” जिसका हिंदी में है-छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छा समर्पित हो।

सुबह लेखिका को यूमथांग के लिए निकलना था। जैसे ही उनकी आँख खुलती है न बालकनी की ओर भागती हैं, क्योंकि उन्हें लोगों ने बताया था कि यदि मौसम सा तो बालकनी से भी कंचनजंघा (हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी) दिखाई देती । उस सुबह मौसम अच्छा होने के बाद भी आसमान हल्के-हल्के बादलों से ढका हुआ जिसके कारण लेखिका को कंचनजंघा दिखाई नहीं पड़ी, किंतु सामने तरह-तरह के रंग-बिरंगे ढेर सारे फूल दिखाई दिए।

गंतोक (गैंगटॉक) से 149 किमी की दूरी पर यूमथांग था। लेखिका के साथ चल रहे ड्राइवर-कम-गाइड जितेन नार्गे उन्हें बताता है कि यहाँ के सारे रास्तों में हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी। आगे बढ़ने पर उन्हें एक स्थान पर एक कतार में लगी सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ दिखाई देती हैं, नार्गे उन्हें बताता है कि यहाँ बुद्ध की बहुत मान्यता है। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाए फहरा दी जाती हैं और इन्हें उतारा नहीं जाता। ये स्वयं ही नष्ट हो जाती हैं।

कई बार कोई नया कार्य लेकिन ये पताका यहाँ जगह-जगह पर कार्य आरंभ करने पर भी पताकाएं लगाई जाती है। केट न होकर रंगीन भी होती है। लेखिका को जगह पर दलाई लामा की तस्वीर दिखाई देती है। यही स जीप में वह बैठी थी, उसमें भी दलाई लामा का चित्र लगा हुआ था।

आगे चलने पर ‘कवी-लोग स्टॉक’ स्थान आता है, जिसे देखते न बताता है कि यहाँ ‘गाइड’ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। इसी स्‍थान पर तिब्बत के चीस-खे बम्सन ने लेपचाओं के शोमेन से कंजतेक के साथ संधि-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे तथा उसकी याद में यहाँ पर एक पत्थर स्मारक के रूप में भी है। लेखिका को एक कुटिया में घूमता हआ चक्र दिखाई देता है, जिस पर नार्गे उन्हें बताता है कि इसे ‘धर्म चक्र’ कहा जाता है। इसे लोग ‘प्रेयर व्हील’ भी कहते हैं। इसके विषय में यह मान्यता है कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।

कछ और आगे चलने कहीं-कहीं स्वेटर बन कार्टन (गत्ते का बक्स ऊपर से नीचे देखने रास्ते वीरान, सँकरे हिमालय विशालकाय

से चलने पर बाज़ार, बस्तियाँ और लोग पीछे छटने लगे। लेटर बुनती नेपाली युवतिया और पीठ पर भारी भरकम ने का बक्सा) ढोते हुए बौने से बहादुर नेपाली मिल रहे थे। नीचे देखने पर मकान बहुत छोटे दिखाई दे रहे थे। अब मन सँकरे और जलेबी की तरह घुमावदार होने लगे थे।

शालकाय होने लगा था। कहीं पर्वत शिखरों के बीच दूध र की तरह झर-झर नीचे गिरते हुए जलप्रपात दिखाई दे रहे नहीं चाँदी की तरह चमक मारती तिस्ता नदी, जो सिलीगुड़ी लगातार लेखिका के साथ चल रही थी, बहती हुई दिखाई दे रही थी।

जीप ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ नामक स्थान पर रुकी. जहाँ एक विशाल और सुंदर झरना दिखाई दे रहा था। सैलानियों ने कैमरों से उस स्थान के चित्र लेने शुरू कर दिए। लेखिका यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य में इतना खो गईं कि उनका दिल वहाँ से जाने को नहीं कर रहा था।

आगे चलने पर लेखिका को हिमालय की रंग-बिरंगी चोटियाँ नए-नए रूपों में दिखाई देती हैं, जो अचानक बादलों के छा जाने पर ढक जाती है। धीरे-धीरे धुंध की चादर के छंट जाने पर उन्हें दो विपरीत पशाआ से आते छाया पहाड़ दिखाई देते हैं, जो अब अपने श्रेष्ठतम में उनके सामने थे। इस स्थान को देखकर लेखिका को ऐसा लगता है मानो स्वर्ग यहीं पर है। वहाँ पर लिखा था-‘थिंक ग्रीन’ जो और पर्यावरण के प्रति सजग होने की बात कह रहा था। का वहाँ के प्राकतिक सौंदर्य से इतना प्रभावित होती है कि जाप पहा रुकने पर वह थोड़ी दूर तक पैदल ही वहाँ के सौंदर्य निहारने लगती हैं। उनकी यह मुग्‍धता पहाड़ी औरतों द्वारा पत्‍थरों को तोड़ने की आवाज़ से टूटती है।

लेखिका को यह देखकर बहुत दुःख हुआ कि इतने सुंदर तथा प्राकृतिक स्थान पर भी भूख, मौत और जीवित रहने की जंग चल रही था। वहाँ पर बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन के एक कर्मचारी ने बताया कि जिन सुंदर स्थानों का दर्शन करने वह जा रही हैं, यह सब इन्हीं पहाड़ी महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे हैं। यह काम इतना खतरनाक है कि ज़रा भी ध्यान चूका तो मौत निश्चित है। लेखिका को ध्यान आया कि एक स्थान पर सिक्किम सरकार का लगाया हुआ बोर्ड उन्होंने पढ़ा था, जिसमें लिखा था-‘एवर वंडर्ड ह डिफाइंड डेथ टू बिल्ड दीज़ रोड्स।’ इसका हिंदी अनुवाद था-आप आश्चर्य करेंगे कि इन रास्तों को बनाने में लोगों ने मौत को झुठलाया है। वास्तव में, कितना कम लेकर भी ये पहाड़ी स्त्रियाँ समाज को कितना अधिक वापस कर देती हैं।

जब जीप और ऊँचाई पर पहुंची तो सात-आठ वर्ष की उम्र के बहुत सारे बच्चे स्कूल से लौट रहे थे। जितेन (गाइड) उन्हें बताता है कि यहाँ तराई में ले-देकर एक ही स्कूल है, जहाँ तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की पहाड़ी चढ़कर ये बच्चे स्कूल जाते हैं। पढ़ाई के अतिरिक्त ये बच्चे शाम के समय अपनी माँ के साथ मवेशियों को चराते हैं, पानी भरते हैं और जंगल से लकड़ियों के भारी-भारी गट्ठर ढोते हैं।

यूमथांग पहुँचने के लिए लायंग में जिस मकान में लेखिका व उनके सहयात्री ठहरे थे, वह तिस्ता नदी के किनारे लकड़ी का एक छोटा-सा घर था। वहाँ का वातावरण देखकर उन्हें लगा कि प्रकृति ने मनुष्य को सुख-शांति, पेड़-पौधे, पशु सभी कुछ दिए हैं, किंतु हमारी पीढ़ी ने प्रकृति की इस लय, ताल और गति से खिलवाड़ करके अक्षम्य (क्षमा के योग्य न होने वाला) अपराध किया है। लायंग की सुबह बेहद शांत और सुरम्य थी। वहाँ के अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और दारू का व्यापार है। लेखिका सुबह अकेले ही पहाड़ों की बर्फ़ देखने निकल जाती हैं, परंतु वहाँ ज़रा भी बर्फ़ नहीं थी। लागुंग में एक सिक्कमी नवयुवक उन्हें बताता है कि प्रदूषण के चलते यहाँ बर्फबारी (स्नो-फॉल) लगातार कम होती जा रही है। Sana Sana Hath Jodi Class 10

बर्फबारी देखने के लिए लेखिका अपने सहयात्रियों के संग लायुंग से 500 फीट की ऊँचाई पर स्थित ‘कटाओ’ नामक स्थान पर जाती हैं। इसे भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। ‘कटाओ’ जाने का मार्ग बहत दुर्गम था। सभी सैलानियों की साँसें रुकी जा रही थीं। रास्ते धुंध और फिसलन से भरे थे, जिनमें बड़े-बड़े शब्दों में चेतावनियाँ लिखी थीं-‘इफ यू आर मैरिड, डाइवोर्स स्पीड’, ‘दुर्घटना से देर भली, सावधानी से मौत टली।’

कटाओ पहुँचने के रास्ते में दूर से ही बर्फ से ढके पहाड़ दिखाई देने लगे थे। पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने उन पर पाउडर छिड़क दिया हो या साबुन के झाग चारों ओर फैला दिए हों। सभी यहाँ बर्फ पर कूदने लगे थे। लेखिका को लगा शायद ऐसी ही . विभोर कर देने वाली दिव्यता के बीच हमारे ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की होगी और जीवन के गहन सत्यों को खोजा होगा। लेखिका की मित्र मणि एकाएक दार्शनिकों की तरह कहने लगीं, ”ये हिमशिखर जल स्तंभ हैं, पूरे एशिया के। देखो, प्रकृति भी किस नायाब ढंग से इंतज़ाम करती है। सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है, तो ये ही बर्फ़ शिलाएँ पिघल-पिघलकर जलधारा बन हमारे सूखे कंठों को तरावट पहुँचाती हैं। कितनी अद्भुत व्यवस्था है जल संचय की!”

वहाँ से आगे बढ़ने पर उन्हें मार्ग में इक्की-दुक्की फ़ौजी छावनियाँ दिखाई देती हैं। वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर चीन की सीमा थी। जब लेखिका ने एक फ़ौजी से पूछा कि इतनी कड़कड़ाती ठंड (उस समय तापमान 15° सेल्सियस था) में आप लोगों को बहुत तकलीफ़ होती होगी, तो उसने उत्तर दिया-“आप चैन की नींद सो सकें, इसीलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं।” थोड़ी दूर एक फौज़ी छावनी पर लिखा था-‘वी गिव अवर टुडे फॉर योर टुमारो।’ लेखिका को भारतीय सैनिकों पर बहुत गर्व होता है। वह सोचने लगती है कि पौष और माघ के महीनों में जब केवल पेट्रोल को छोड़कर सब कुछ जम जाता है, उस समय भी ये सैनिक हमारी रक्षा के लिए। दिन-रात लगे रहते हैं। यूमथांग की घाटियों में ढेरों प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूल खिले हुए थे। जितेन उन्हें बताता है कि अगले पंद्रह दिनों में पूरी घाटी फूलों से भर उठेगी ।

लेखिका यूमथांग में चिप्स बेचती हुई एक युवती से पूछती है क्या तुम सिक्किमी हो?’ वह युवती उत्तर देती है-‘नहीं, मैं इंडियन हूँ।’ लेखिका को यह जानकर बहुत प्रसन्नता होती है कि सिक्किम के लोग भारत में मिलकर बहुत प्रसन्न हैं।

जब लेखिका तथा उनके साथी जीप में बैठ रहे थे, तब एक पहाड़ी कुत्ते ने रास्ता काट दिया। लेखिका की साथी मणि बताती है कि ये पहाड़ी कुत्ते हैं, जो केवल चाँदनी रात में ही भौंकते हैं। वापस लौटते हुए जितेन उन्हें जानकारी देता है कि यहाँ पर एक पत्थर है, जिस पर गुरुनानक के पैरों के निशान हैं। कहा जाता है कि यहाँ गुरुनानक की थाली से थोड़े से चावल छिटककर बाहर गिर गए थे और जिस स्थान पर चावल छिटक गए थे, वहाँ चावल की खेती होती है। Sana Sana Hath Jodi Class 10

जितेन उन्हें बताता है कि तीन-चार किलोमीटर आगे ‘खेदुम’ नाम स्थान पर देवी देवताओं का निवास है। सिक्किम के लोगों का विश्वास जो यहाँ गंदगी फैलाता है, उसकी मृत्यु हो जाती है। लेखिका के पर पर कि क्या तुम लोग पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते, तो वह उत्तर देता है-नहीं मैडम, हम लोग पहाड़, नदी, झरने इन सबकी पूजा करते है। जितेन यूमथांग के विषय में एक जानकारी और देता है कि जब सिक्किम भारत में मिला तो उसके कई वर्षों बाद भारतीय सेना के कप्तान शेखर दत्ता के दिमाग में यह विचार आया कि केवल सैनिकों को यहाँ रखकर क्या होगा, घाटियों के बीच रास्ते निकालकर इस स्थान को टूरिस्ट स्पॉट बनाया जा सकता है। आज भी यहाँ रास्ते बनाए जा रहे हैं। लेखिका सोचती है कि नए-नए स्थानों की खोज अभी भी जारी है और शायद मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम सौंदर्य है। Sana Sana Hath Jodi Class 10 Summary Explanation

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3. व्‍यायामः सर्वदा पथ्यः हिन्‍दी व्‍याख्‍या | Vyayam Sarvada Pathya Sanskrit Class 10 Hindi Translation

August 20, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड कक्षा 10 संस्‍कृत के पाठ तीन व्‍यायामः सर्वदा पथ्यः (Vyayam Sarvada Pathya Sanskrit Class 10 Hindi Translation) के हिन्‍दी व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Vyayam Sarvada Pathya Sanskrit Class 10 Hindi Translation

3. व्‍यायामः सर्वदा पथ्यः (व्‍यायाम हमेशा लाभकारी होता है)

पाठ परिचय- चार वेदों के अतिरिक्त आयुर्वेद को पंचम वेद भी माना गया है। ’जीवन का पहला सुख स्वस्थ शरीर‘ के अनुसार यह शास्त्र बहुत उपयोगी है। आयुर्वेद के प्रसिद्भ ग्रन्थ ’सु श्रुतसंहिता‘ के चिकित्सा स्थान में वर्णित 24 वें अध्याय से यह पाठ वंकलित है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के पास रोग फटकता भी नहीं है। इस पाठ में आचार्य सुश्रुत ने व्यायाम की परिभाषा बताते हुए उससे होने वाले लाभों की चर्चा की है। शरीर में सुगठन, कान्ति, स्फूर्ति सहिष्णुता, नीरोगता आदि व्यायाम द्वारा प्राप्त होने वाले प्रमुख लाभ हैं।

प्रस्तुतः पाठः सुश्रुतसंहिता इति नाम्नः प्रसिद्धस्य आयुर्वेदग्रन्थस्य चिकित्सास्थान-गतात्। चतुर्विंशाध्यायात् समुद्धृतोऽस्ति। अस्मिन् आचार्यसुश्रुतः व्यायामस्य परिभाषां तेन जायमानान् लाभान् च निबोधयति। प्रामुख्येण शरीरसौष्ठवम्, कान्तिः, स्फूर्तिः, सहिष्णुता, आरोग्यं च इत्यादयः व्यायामस्य लाभाः सन्ति।

प्रस्तुत पाठ आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सुश्रुत संहिता’ के चिकित्सा स्थान में वर्णित 24वें अध्याय से संकलित है। इसमें सुश्रुत ने व्यायाम की परिभाषा बताते हुए उससे होने वाले लाभों की चर्चा की है। शरीर में संगठन, कान्ति, स्फूर्ति, सहिष्णुता, निरोगता आदि व्यायाम के प्रमुख लाभ हैं।

शरीरायासजननं कर्म व्यायामसंज्ञितम् ।
तत्कृत्वा तु सुखं देहं विमृद्नीयात् समन्ततः ॥1॥

हिन्दी अनुवाद- शरीर के परिश्रम से सम्बधित (एक विशेष प्रकार का) कर्म( वि$ आयाम) ही व्यायाम कहा गया है। इसे करके सुख मिलता है। शरीर की सब ओर से मालिश करनी चाहिए।

शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता ।
दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मजा ॥2॥

हिन्दी अनुवाद- शरीर की वृद्भि, चमक, शरीर का गठीलापन (सौन्दर्य), जठराग्नि तेज होना (पाचन शक्ति बढ़ना), आलस्य न आना, स्थिरता, लाघव और स्‍वच्‍छता (व्यायाम करने से) आती है।

श्रमक्लमपिपासोष्ण-शीतादीनां सहिष्णुता ।
आरोग्यं चापि परमं व्यायामादुपजायते ॥3॥

हिन्दी अनुवाद- परिश्रम-जनित थकान, पिपासा (प्यास), गरर्मी-सर्दी आदि को सहन कर सकना और परम आरोग्य (स्वास्थ्य) व्यायाम से मिलता है।

न चास्ति सदृशं तेन किञ्चित्स्थौल्यापकर्षणम्।।
न च व्यायामिनं मर्त्यमर्दयन्त्यरयो बलात् ॥4॥

हिन्दी अनुवाद- इस (व्यायाम) के समान मोटापे को कम करने वालो कोई अन्य साधन या उपाय नही है व्यायाम करन वाले व्यक्ति को शत्रु बल से नहीं पछाड़ सकते हैं।

न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति ।
स्थिरीभवति मांसं च व्यायामाभिरतस्य च ॥5॥

हिन्दी अनुवाद- बुढ़ापा भी इस (व्यायामशील) पर अचानक आक्रमण करके सवार नहीं होता है। तल्लीनता से व्यायाम करने वाले का मांस भी स्थिर हो जाता है।

व्यायामस्विन्नगात्रस्य पद्भ्यामुवर्तितं व नरम् ।
व्याधयो नोपसर्पन्ति वैनतेयमिवोरगाः वयोरूपगुणैर्लीनमपि कुर्यात्सुदर्शनम् ॥6॥

हिन्दी अनुवाद- व्यायाम के कारण स्वेदसिक्त शरीर वाले तथा दोनों पैर उठाकर व्यायाम करने वाले के पास रोग उसी तरह नहीं आते है, जैसे गरूड़ के पास साँप। व्यायाम आयु, रूप आदि गुणों से रहित को भी सुन्दर बना देती है।

व्यायाम कुर्वतो नित्यं विरुद्धमपि भोजनम् ।
विदग्धमविदग्धं वा निर्दोषं परिपच्यते ॥7॥

हिन्दी अनुवाद- नित्य व्यायाम करने वाले को प्रतिकूल, पक्का या कच्चा सब तरह का भोजन आसानी से पच जाता है।

व्यायामो हि सदा पथ्यो बलिनां स्निग्धभोजिनाम् ।
स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः ॥8॥

हिन्दी अनुवाद- चिकनाई वाला भोजन खाने वालों तथा बलवानों के लिए व्यायाम सदैव स्वास्थ्यवर्धक है। उनके लिए सर्दी और वसन्त (आदि सभी ऋतुओं) में व्यायाम परम स्वास्थ्यवर्धक बताया गया है।

सर्वेष्वृतुष्वहरहः पुम्भिरात्महितैषिभिः ।
बलस्यार्धेन कर्त्तव्यो व्यायामो हन्त्यतोऽन्यथा ॥9॥

हिन्दी अनुवाद- इसलिए अपना कल्याण (भला/ हित) चाहने वाले लोगों को सभी ऋतुओं मे प्रतिदिन अपने बल के आधे भाव (आधी ताकत) से व्यायाम करना चाहिए, अन्‍यथा वह मरता है।

हृदिस्थानस्थितो वायुर्यदा वक्त्रं प्रपद्यते ।
व्यायामं कुर्वतो जन्तोस्तबलार्धस्य लक्षणम् ॥10॥

हिन्दी अनुवाद- व्यायाम करते हुए व्यक्ति के ह्रदय में स्थित वायु जब मुँह पर पहुँचती है तो यह बल का आधा (लक्षण) पहचान है।

वयोबलशरीराणि देशकालाशनानि च ।
समीक्ष्य कुर्याद् व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात् ॥11॥

हिन्दी अनुवाद- वायु, बल, शरीर, देश, काल, भोजन आदि को परखकर व्यायाम करना चाहिए, अन्यथा वह रोग पाएगा। Vyayam Sarvada Pathya Sanskrit Class 10 Hindi Translation

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1. पूूस की रात कहानी और सारांश | मुंशी प्रेमचंद की कहानी | Push ki Raat Kahani | Class 11th Hindi

August 19, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पाठ एक ‘पूस की रात’ (Push ki Raat Kahani) कहानी का सारांश और सम्‍पूर्ण कहानी को पढ़ेंगेंं।

Push ki Raat Kahani

1. पूस की रात कहानी का सारांश

कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा लिखा गया कहानी ‘पूस की रात’ एक ग्रामीण किसान के जीवन से संबंधित है। इस कहानी के मदद से हमें यह पता चलता है कि एक हल्कू नाम का व्यक्ति जिसके पास अपना जीवन यापन करने के लिए थोड़ी सी खेत है जिससे उनका अपना पालन पोषण चल जाता है लेकिन खेत से जो भी आमदनी होती हैं वह उसमें से कुछ रुपया तो कर्ज चुकाने में ही चला जाता है।

सर्दियों में उसने मजदूरी कर तीन रुपए इकट्ठा किया था लेकिन वह तीन रुपए हल्कू ने अपने महाजन को दे दिया। इस बात को हल्‍कू की पत्नी बहुत ज्यादा विरोध करती है क्योंकि उसका मानना है कि हमें जो इतना दिनों से तीन रुपए इकट्ठा किया और इस पूस के महीने में जाड़े यानी ठंड से बचने के लिए कंबल खरीदने के लिए रखे थे। हल्‍कू की पत्‍नी मुन्‍नी के मना करने पर हल्‍कू कहता है कि अगर मैं महाजन का पैसा नहीं लौटाया, तो वह मुझे गाली देगा। महाजन को देखकर हल्कू की पत्नी मुन्नी लाचार हो जाती है और तीन रुपए उसे मजबूरन देना पड़ता है। जब हल्‍कू अपना पैसा महाजन को देने जा रहा था, तो ऐसा लग रहा था कि वह अपना कलेजा काढ़ कर देने जा रहो हो। क्‍योंकि उसने कंबल खरीदने के लिए मजदूरी करके पाई-पाई इकट्ठा किया था।

हल्‍कू अपने खेत की रखवाली करने के लिए अपना कुत्ता जबरा के साथ चल दिया। पूस का महीना था और ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। तारे टिमटिमा रहे थे। ठंड से हल्‍कू काँप रहा था। अपने अकेलापन को दूर करने के लिए अपने साथ पालतू कुत्ता जबरा को भी साथ लाया था। उस समय हल्कू अपने जबरा के साथ अपना मन बहलाता है। हल्कू के पास गर्म वस्त्र नहीं है। उसके पास सिर्फ एक चादर ही है। उस चादर से तो कुछ भी नहीं होता फिर उसके मन में एक विचार आता है और वह पास ही के आम के बगीचे में जाता है और गिरे सभी पति्तयों को इकट्ठा करता है और अलाव जलाता है और अलाव के आग से इसका शरीर गर्म हो जाता है और ठंडी से उस समय तक राहत मिलती है जब तक आग जलती रहती है तब तक उसका शरीर गर्म रहता है ठंड से मुक्त पाता है।

जब आग बुझ जाती है और राख बन जाता है तो फिर भी उसका शरीर थोड़ा-थोड़ा गर्म रहता है जिसे वह अपना चादर ओढ़ कर बैठ जाता है। हल्‍कू रात काटने के लिए चिलम पिता रहता है। आधी रात होती है और आग जलकर खत्म हो जाती है। हल्‍कू आग के पास ही लेट जाता है। उसके बगल में जबरा बैठ कर खेतों की रखवारी कर रहा होता है। हल्‍कू के सो जाने के बाद खेतों में नीलगाय घुसकर फसल चरने लगती है। हल्कू का कुत्ता बहुत होशियार था।

जबरा नीलगाय के खेत में आने से सतर्क हो जाता है और नीलगाय पर भौकना शुरू कर देता है। हल्कू को भी मालूम पड़ जाता है कि उसके खेतों में नीलगाय आ चुकी है। हल्कू को नीलगाय की चरने की आवाज भी आती है उसे सुनाई देती है। वह अपने मन को दिलासा दिलाता है शायद यह मेरा भ्रम है। मेरे जबरा के होते कोई भी जानवर हमारे फसल में आ नहीं सकता है फिर भी उठता है और जैसे ही वह दो-तीन कदम आगे चलता है। ठंडी हवा इतना तेजी से चलता है फिर वह अपने स्थान पर चादर ओढ़ कर बैठ जाता है और उसे नींद आ जाती है और सारी रात नींद में ऐसा डूबा जैसे किसी ने उसे रस्‍सी में बाँध दिया हो।

जबरा बेचारा अकेला भौंक-भौंक कर नीलगायों को भगा रहा होता है। जब सुबह होती है, धुप निकल चूका होता है। उसकी पत्नी मुन्‍नी खेत में आती है, और उससे कहती है कि सारा फसल नष्ट हो गया। सभी फसल को जानवरों ने चर लिया है। सब सपाट हो गया है। जबरा अलग चूपचाप एसे बैठा था जैसे कि वह मर गया हो। अब मजदूरी करके किराया और कर्ज भरनी पड़ेगी। यह बात सुनकर कि नीलगाय ने सभी फसल नष्ट कर डाली है तो हल्‍कू खुश हो जाता है और कहता है कि अब इतनी ठंडी रात को यहाँ सोना तो नहीं पड़ेगा। इस प्रकार हल्‍कू खुश हो जाता है कि अब रात में सुकून से सोने को मिलेगा। यह कहानी जमींदारों की शोषण और एक आम किसान की दूर्दशा को बताया है। Push ki Raat Kahani by Munshi Premchand

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij | CBSE class 10 hindi kshitij solutions

August 18, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

In this article, we shall read all about NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij part 2. This solutions are very useful for cbse board examination. By the help of this article, you can obtain maximum marks. This article has described with the help of easy language. You can easily understand every chapter easily. If you have any queries, then comment on the comment box. I will solve your problem.

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij part 2

CBSE Solutions for Class 10 Kshitij bhag 2 क्षितिज भाग 2

काव्‍य-खण्‍ड

Chapter 1 पद
Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद
Chapter 3 सवैया और कवित्त
Chapter 4 आत्मकथ्य
Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही
Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल
Chapter 7 छाया मत छूना
Chapter 8 कन्यादान
Chapter 9 संगतकार

पद्य-खण्‍ड

Chapter 10 नेताजी का चश्मा
Chapter 11 बालगोबिन भगत
Chapter 12 लखनवी अंदाज़
Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक
Chapter 14 एक कहानी यह भी
Chapter 15 स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
Chapter 16 नौबतखाने में इबादत
Chapter 17 संस्कृति

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Part 2

CBSE Solutions for Class 10 Hindi Kritika Bhag 2 कृतिका भाग 2

Chapter 1 माता का आँचल
Chapter 2 जॉर्ज पंचम की नाक
Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि
Chapter 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!
Chapter 5 मैं क्यों लिखता हूँ?

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2. जॉर्ज पंचम की नाक | कृतिका भाग 2 | Jarj pancham ki nak class 10

August 18, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

पाठ-02

जॉर्ज पंचम की नाक

लेखक-परिचय— कमलेश्वर नई कहानी के प्रमुख रचनाकार हैं। उनका जन्म 1932 ई. में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद तथा पत्रकारिता से अत्यधिक लगाव होने के कारण इन्होंने सारिका, दैनिक जागरण तथा दैनिक भास्कर जैसी पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया। कमलेश्वर की प्रमुख रचनाएँ हैं— मांस का दरिया, कस्बे का आदमी, तलाश, ज़िंदा मुर्दे (कहानी संग्रह); वही बात, एक सड़क सत्तावन गलियाँ, कितने पाकिस्तान। (उपन्यास); अधूरी आवाज़, चारुलता (नाटक)। कमलेश्वर ने अपनी कहानियों में सामान्य जन के जीवन की पीड़ाओं, समस्याओं का चित्रण किया है। इनकी रचनाओं में उर्दू, अंग्रेज़ी तथा आंचलिक शब्दों का प्रयोग मिलता है। कमलेश्वर को साहित्य अकादमी पुरस्कार व भारत सरकार के पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनका निधन 27 जनवरी, 2007 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ।

पाठ परिचय—नाक जो कि इज्जत का प्रतीक मानी जाती है। इस संदर्भ के माध्यम से लेखक ने व्यंग्य करते हुए सत्ता एवं सत्ता से जुड़े सभी लोगों की मानसिकता को प्रदर्शित किया है, जो अंग्रेज़ी हकूमत को कायम रखने के लिए भारतीय नेताओं की नाक काटने को तैयार हो जाते हैं। लेखक ने इस रचना के माध्यम से बताया है कि रानी का भारत आगमन महत्त्वपूर्ण विषय है जिसके लिए जॉर्ज पंचम की नाक मूर्ति पर होना अनिवार्य है, क्योंकि वह रानी के आत्मसम्मान के लिए अनिवार्य है। इसके साथ यह रचना पत्रकारिता जगत के लोगों पर भी व्यंग्य करती है एवं सफल पत्रकार की सार्थकता को भी उजागर करती है। इसमें सरकारी तंत्र का लोगों द्वारा रानी के सम्मान में की गई तैयारियों का वर्णन किया गया है।

पाठ का सार

इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान आने वाली थी। चर्चा अख़बारों में हो रही थी। उनका सेक्रेटरी और जासूस उनसे पहले इस महाती तूफानी दौरा करने वाले थे। इंग्लैंड के अख़बारों की कतरनें हिंदुस्तानी अख़बारों में दूसरे दिन चिपकी नज़र आती थीं, जिनमें रानी एलिज़ाबेथ एवं उनसे जुड़े लोगों के समाचार छपते। इस प्रकार की खबरों से भारत की राजधानी में तहलका मचा हुआ जिसके बावरची पहले महायुद्ध में जान हथेली पर लेकर लड़ चुके हैं, उसकी शान के क्या कहने और वही रानी दिल्ली आ रही है। उसका स्वागत भी ज़ोरदार होना चाहिए।

नई दिल्ली में एक बड़ी मुश्किल जो सामने आ रही थी, वह थी जॉर्ज पंचम की नाक किसी समय इस नाक के लिए बड़े तहलके मचे थे। अख़बारों के पन्ने रंग गए थे। राजनीतिक पार्टियाँ इस बात पर बहस कर रही थीं कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए। कुछ पक्ष में थे, तो कुछ विरोध कर रहे थे। आंदोलन चल रहा था। जॉर्ज पंचम की नाक के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे, किंतु एक दिन इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट (मूर्ति) की नाक एकाएक गायब हो गई। बावजूद इसके कि हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात थे और गश्त लगती रही फिर भी लाट की नाक चली गई। रानी के आने की बात सुनकर नाक की समस्या बढ़ गई। देश के शुभचिंतकों की एक बैठक हुई, जिसमें हर व्यक्ति इस बात पर सहमत था कि अगर यह नाक नहीं रही, तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी। इसलिए एक मूर्तिकार को फ़ौरन दिल्ली बुलाकर मूर्ति की नाक लगाने का आदेश दिया गया। मूर्तिकार ने जवाब दिया कि नाक तो लग जाएगा।

पहले मुझे इस लाट के निर्माण का समय और जिस स्थान से यह पत्थर लाया गया, उसका पता चलना चाहिए। एक क्लर्क को इसकी पूरी छानबीन करने का काम सौपा गया। क्लर्क ने बताया कि फाइलों में कहीं भी नहीं है।

नाक लगाने के लिए एक कमेटी बनाई गई और उसे काम सौंपा गया कि किसी भी कीमत पर नाक लगनी चाहिए। मूर्तिकार को फिर बुलाया गया। उसने कहा कि पत्थर की किस्म का पता नहीं चला, तो कोई बात नहीं। मैं हिंदुस्तान के हर पहाड़ पर जाकर ऐसा ही पत्थर खोजकर लाऊँगा।

मूर्तिकार ने हिंदुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे किए, लेकिन असफल रहा। उसने बताया कि इस किस्म का पत्थर कहीं नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है। सभापति ने कहा कि विदेशों की सभी चीजें हम अपना चुके हैं दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन। जब हिंदस्तान में ‘बाल डांस’ तक मिल जाता है, तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता?

मूर्तिकार ने इसका हल निकालते हुए कहा कि यदि यह बात अखबार वालों तक न पहुँचे तो मैं बताना चाहूँगा कि हमारे देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं। यदि आप लोग ठीक समझें तो जिस मूर्ति की नाक इस लाट पर ठीक बैठे, उसे लगा दिया जाए। सभी को लगा कि समस्या का असली हल मिल गया। मूर्तिकार फिर देश-दौरे पर निकल पड़ा। उसने पूरे भारत का भ्रमण करके दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, गांधीजी, सरदार पटेल, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय, चद्रशेखर आज़ाद, मोतीलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपतराय, भगत सिंह आदि की लाटों को देखा, किंतु वे सब उससे बड़ा थी। मूर्तिकार ने बिहार सेक्रेटरिएट के सामने सन् बयालीस में शहीद होने वाले बच्चों की मूर्तियों की नाक भी देखी, किंतु वे भी उससे बड़ी थीं।

रानी के लिए सब तैयारियाँ पूरी हो गई, मूर्ति कोमलमलकर नहलाया गया था। रोगन लगाया गया था,लेकिन सबसे बड़ी समस्‍या नाक थी।

अचानक मर्तिकार ने एक हैरतअंगेज करने वाला विचार व्यक्त किया कि चालीस करोड़लोगों में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी जाए। इसकी जिम्मेदारी मूर्तिकार को सौंपी गई। अखबारों में सिर्फ इतनाछापा गयाकि नाक का मसला हल हो गया है। इंडिया गेटपर बड़ा वाली जॉर्ज पंचम की लाट को नाक लग रही है। नाक लगाने से पहले हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई। मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ किया गया और ताजा पानी डाला गया ताकि मूर्ति को लगने वाली जिंदा नाक सुख न पाए। इस बात की ख़बर जनता को नहीं थी। यह तैयारियाँ भीतर-भीतर चल रही थीं। रानी के आने का दिन नजदीक आता जा रहा था। आखिर एक दिन जॉर्ज पंचम की नाक लग गई।

अगले दिन अखबारों में ख़बरें छापी गई कि जॉर्ज पंचम की लाट को जो नाक लगाई गई है, वह बिलकुल असली सी लगती है। उस दिन के अख़बारों में एक बात और गौर करने की थी-उस दिन देश में कहीं भी किसी उद्घाटन की ख़बर नहीं थी। किसी ने कोई फीता नहीं काटा था। कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई थी। किसी का अभिनंदन नहीं हुआ था, कोई मानपत्र भेंट नहीं किया गया था। किसी हवाईअड्डे या स्टेशन पर स्वागत-समारोह नहीं हुआ था। किसी का चित्र भी नहीं छपा था।

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2. बुद्धिर्बलवती सदा का हिंदी व्‍याख्‍या | Budhirbalavati Sada Hindi Explanation

August 15, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

2. बुद्धिर्बलवती सदा (बुद्ध‍ि सदा बलवती होती है।)

प्रस्तुतः पाठः “शुकसप्ततिः“ इति कथाग्रन्थन्यात् सम्पादनं कृत्वा संगृहीतोऽस्ति। अत्र पाठांशे स्वलघुपुत्राभ्यां सह काननमार्गेण पितृगृहं प्रति गच्छन्त्याः बुद्धिमतीतिनाम्न्याः महिलायाःमतिकौशलं प्रदर्शितं वर्तते। सा पुरतः समागतं सिंहमपि भीतिमुत्पाद्य ततः निवारयति। इयं कथा नीतिनिपुणयोः शुकसारिकयोः संवादमाध्यमेन सद्वृत्तेः विकासार्थं प्रेरयति।

पाठ परिचय— प्रस्‍तुत पाठ शुकसप्‍तति: नामक प्रसिद्ध कथा ग्रंथ का संपादित अंश है। इस पाठ में एक नारी बुद्ध‍िमति के बुदि्धकौशल को दिखाया गया है, जो अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्‍ते अपने पिता के घर जाती है। यह नारी अपने बुद्धि कौशल के दिखाकर सामने आए बाघ को भगा अपने दोनों पुत्रों की रक्षा करती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का विकास कराया गया है।

अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाषात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद-“कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथः? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते।”
देउल नाम का गाँव था। वहाँ राजसिंह नाम का राजपुत्र रहता था। एक बार किसी आवश्‍यक कार्य के लिए उसकी पत्‍नी बुद्ध‍िमति अपने दो पुत्रों के साथ पिता के घर की तरफ चल चल पड़ी। रास्‍ते में घने जंगल में उसने एक बाघ को देखा। बाघ को आते हुए देखकर उसने ढिठाई से दोनों पुत्रों को एक-एक थप्पड़ मारकर कहा- ‘एक ही बाघ को खाने के लिए तुम दोनों क्यों झगड़ रहे हो? इस (बाघ) एक को ही बाँटकर खा लो। बाद में अन्य दूसरा कोई ढूँढा जाएगा।”

इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः।
यह सुनकर यह कोई बाघ मारने वाली है, यह सोचकर वह बाघ डर से व्‍याकुल होकर भाग गया।

निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी।
अन्योऽपि बुद्धिमाँल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥

अन्‍वय:- सा भामिनी व्‍याघ्रस्‍य भयाद् निजबुद्ध्‍या विमुक्‍ता। अन्‍योऽपि बुद्धिमान महतो भयात् मुच्‍यते।
वह रूपवति स्त्री अपने बुद्धि द्वारा भाग के भय से बच गई। संसार में दूसरे ब‍ुद्धिमान लोग भी बड़े-से-बड़े भय से मुक्‍त हो जाते हैं।

भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः शृगालः हसन्नाह-“भवान् कुतः भयात् पलायितः?”
भय से व्‍याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त्त सियार हँसते हुए बोला- ‘आप कहाँ से डर कर भाग रहे हो?’

व्याघ्रः- गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तदग्रतः।
बाघ-  “जाओ. जाओ सियार! तुम भी किसी गुप्त प्रदेश में छिप जाओ, क्योंकि हमने जिस व्याघ्रमारी के संबंध में बातें शास्त्रों में सुनी हैं उसी ने मुझे मारने का प्रयास किया, परन्तु अपने प्राण हथेली पर रखकर मैं उसके आगे से भाग गया।”

शृगालः-व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि?
सियार- “बाघ! तुमने बहुत आश्चर्यजनक बात बताई कि तुम मनुष्यों से भी डरते हो?”

व्याघ्रः-प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा।
बाघ-“मेरे सामने ही अपने दोनों पुत्र मुझे अकेले-अकेले खाने के लिए झगड़ा कर रहे थे और उसने दोनों को एक-एक चाँटा मारती हुई देखी गई।

जम्बुक: – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्य इति।
सियार-  हे स्‍वामी! जहाँ पर वह दुष्‍ट स्‍त्री है, वहाँ चलिए। हे बाघ ! यदि तुम्‍हारे वहाँ जाने पर वह फिर से दिखाई देती है, तो मैं तुम्‍हारे द्वारा मारने योग्‍य हूँ। (अर्थात सियार बाघ से बोला कि वह स्त्री अगर फिर से वहाँ दिखाई दे, तो तुम मुझे मार देना।)

व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि सदा वेलाप्यवेला स्यात्।
बाघ- हे सियार यदि तुम मुझे छोड़कर भाग जाओगे, तो सही समय भी कुसमय हो जाएगा।

जम्बुक:- यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथा कृत्वा काननं ययौ। शृगालेन सहितं।
सियार- यदि ऐसा है तो तुम मुझे अपने गले से बाँधकर चलो। वैसा ही वह बाघ करके जंगल की तरफ चल दिया।

पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहान् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? परं प्रत्युत्पन्नमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या तर्जयन्त्युवाच-
बाघ को सियार के साथ फिर से आते हुए दूर से देखकर बुद्धिमती ने सोचा-‘सियार के द्वारा उत्साहित बाघ से कैसे छूटकारा पाया जाए?’ परन्तु जल्दी से सोचने वाली उस स्त्री ने सियार को धमकाते हुए कही-

रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा।
विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना।।

अर्थ- रे रे धूर्त्त सियार ! पहले तुम्‍हारे द्वारा मुझे तीन बाघ दिए थे। विश्‍वास दिलाकर आज एक ही बाघ लाकर कैसे जाते हो ? अब बोलो।

इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा।
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्टः गलबद्धशृगालकः॥

अर्थ- ऐसा कहकर भयंकर बाघ मारनेवाली महिला (बाघ की तरफ) दौड़ी। अचानक व्याघ्र भी गले में बँधे हुए सियार को लेकर भाग गया।

एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्। अत एव उच्यते-
इस प्रकार वह बुद्ध‍िमति नामक स्त्री बाघ के भय से फिर से मुक्‍त हो गई।  अत: कहा जाता है—

‘बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा।।’
‘सभी कार्यों में हमेशा बुदि्ध बलवान होती है।’

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1. माता का अँचल | कृतिका भाग 2 | Mata ka Aanchal summary class 10

August 14, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग झारखण्‍ड बोर्ड के हिन्‍दी कृतिका भाग 2 के पाठ एक ‘माता का अँचल’ (JAC board class 10 Hindi Mata ka Anchal  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

 

पाठ-01
माता का अँचल

आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार शिवपूजन सहाय का जन्म 1893 ई. में उनवाँस गाँव जिला भोजपुर (बिहार) में हुआ था। उनके बचपन का नाम भोलानाथ था। दसवी के परीक्षा के बाद उन्होंने बनारस की अदालत में नौकरी की उसके बाद वे अध्यापक कार्य में लग गए। यही सब कार्यो को करने के लिए इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी।
इन्होंने जागरण, हिमालय, माधुरी बालक आदि पत्रिकाओं का संपादन किया। उनकी प्रमुख कृतियाँ-देहाती दुनिया, वे दिन वे लोग, ग्राम सुधार, स्मृतिशेष आदि हैं। उन्होंने शोषण के प्रति आवाज उठाई है। शिवपूजन सहाय का निधन वर्ष 1963 में हुआ था।
पाठ परिचय- प्रस्तुत पाठ शिवपूजन सहाय की उपन्यास ‘देहाती दुनिया‘ से ली गई है, जिसमें ग्रामीण संस्कृति के बारे में बताया गया है। इस पाठ में भोलानाथ के चरित्र के माध्यम से माता-पिता के प्यार और दुलार, बालकों के विभिन्न ग्रामीण खेल, लोकगीत, बच्चों की मस्ती और शैतानियों का वर्णन विस्तार से किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि भले बच्चे अपने बाप के पास अधिक समय बिताए, लेकिन परेशानी के समय उसे माँ का आँचल ही शांति देता है।

पाठ का सारांश

लेखक का नाम ‘तारकेश्वर‘ था, लेकिन पिताजी उसे लाड़-प्यार से ‘भोलानाथ‘ कहते थे। भोलानाथ का अपने माँ के साथ सिर्फ खाना खाने और दूध पिने तक का ही नाता था। वह अपने पिता के साथ ही बाहर की बैठक में सोया करता था। वह जब सुबह उठता तो उसे उसके पिता ही नहला धूलाकर पूजा पाठ पर बैठाते थें। कभी-कभी बाबूजी और भोलानाथ के बीच कुश्ती भी होती। पिताजी पीठ के बल लेट जाते और भोलानाथ उनके छाती पर चढ़कर उनके मूछें उखाड़ने लगता, तो पिताजी हँसकर अपनी मूछों को छुड़ाकर उसे चुम लेते थे। भोलानाथ को उसके पिताजी एक धातु के कटोरें में दूध और भात सानकर अपने हाथों से खिलाते थे।
जब भोलानाथ का पेट भर जाता था तो उसके बाद भी माँ उसे अलग-अलग पक्षीयों का नाम जैसे तोता, मैना, कबुतर, हंस, मोर आदि के बनावटी नाम से कौर बनाकर खिलाती थी। माँ कहती थी कि जल्दी खा लो नहीं तो उड़ ये सभी पक्षीयाँ उड़ जाएगी। तब भोलानाथ बनावटी पक्षियों को चट कर जाता था।
भोलानाथ घर पर बच्चे तरह-तरह के नाटक खेला करते थे, जिसमें चबुतरे के एक कोने को नाटक घर की तरह प्रयोग किया जाता था। बाबूजी की नहाने की छोटी चौकी को रंगमंच बनाया जाता था। उसी पर मिठाइयों की दुकान, चिलम के खोंचे पर कपड़े के थालों में ढेले के लड्डू, पŸां की पूरी-कचौरियाँ, गीली मिट्टी के जलेबी, फूटे घड़े के टूकड़ों के बताशे आदि मिठाइयाँ सजाई जाती थी। दूकानदार और खरीदार सभी बच्चे होते थे। थोड़ी देर में मिठाई की दूकान हटाकर बच्चे दातून के खंभे से घरौंदा बनाते थे। उसे घरौंदा पर धूल की मेड़ से दीवार और तिनकों के छप्पर होते थे। इसी प्रकार बच्चे अन्य समानों से दावत तैयार करते थे।
जब सभी एक पंक्ति में बैठ जाते, तो बाबूजी भी उसी पंक्ति में आकर बैठ जाते थे। उनको बैठते देख सभी बच्चे घरौंदा बिगाड़कर भाग जाते थे।
कभी-कभी बच्चे बारात का जुलूस निकालते थे। जब बारात वापस लौट आने पर बाबूजी ज्योंहि दुल्हन का मुखौटा देखने जाते थे, त्यों ही बच्चे हँसकर भाग जाते थे।
थोड़ी देर बार बच्चों की मंडली खेती करने में जुट जाती थी। इनका फसल बहुत जल्दी तैयार भी हो जाता था। बड़ी मेहनत से खेत बोये और पटाए जाते थे। तुरंत ही फसल काटकर उसे पैरों से रौंद देते थे। इसी बीच जब बाबूजी बच्चों से पूछते थे कि इस बार फसल कैसी रही ? तब बच्चे खेत-खलिहान छोड़कर भाग जाते थे।
आम के फसल के समय खुब आँधी आती थी। आँधी समाप्त होते ही बच्चे आम के लिए बाग में दौड़ पड़ते थे। एक दिन आँधी आने पर आकाश काले बादलों से ढ़क गया। डर के मारे बच्चे भागने लग। इसी बीच रास्ते में गुरू मूसन तिवारी मिल गए। बच्चों की झूंड में एक ढीठ लड़का बैजू मूसन तिवारी को चिढ़ाते हुए बोला- ‘बुढ़वा मेइमान माँगे करैला का चोखा‘ शेष बच्चों ने बैजू के सूर में सूर मिलाकर यहीं चिल्लाने लगा।
तिवारी जी ने पाठशाला जाकर वहाँ से बैजू और भोलानाथ को पकड़ लाने के लिए चार लड़कों को भेजा। बैजू तो नौ दो ग्यारह हो गया और भोलानाथ पकड़ा गया। गुरु जी ने उसकी खुब पिटाई की। बाबूजी ने जब यह हाल सुना, तो पाठशाला जाकर भोलानाथ को अपने गोद में उठाकर पुचकारा। वह गुरुजी का खुशामद करके भोलानाथ को अपने साथ घर ले आए। रास्ते में बहुत बच्चे नाचते गाते बच्चों को देखकर भोलानाथ अपने पिता की गोद से उतरकर अपना रोना-धोना भूलाकर बच्चों की मंडली में शामिल होकर सुर में सुर मिलाने गया।
एक समय एक टिले पर जाकर बच्चे चूहों के बिल में पानी डालने लग। कुछ ही देर में जब सब थक गए। तब तक बिल में से एक साँप निकल आया, जिसे देखकर रोते-चिल्लाते बच्चे बेतहाशा भागे। भोलानाथ का सारा शरीर लहूलुहान हो गई। पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए थे। वह दौड़ता हुआ आया और सीधे घर में घुस गया। बाबूजी कमरे में हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उन्होंने भोलानाथ को बहुत पुकारा, लेकिन भोलानाथ ने उनकी आवाज अनसुनी करके माँ के पास जाकर उसके आँचल में छिप गया।
भोलानाथ के काँपते देखकर माँ जोर से रोने लगी और सब काम छोड़ बैठी। तुरंत हल्दी पीसकर भोलानाथ के घावों पर लेप लगाई। भोलानाथ इतना डर गया था कि उससे साँप तक नहीं कहा जा रहा था। भोलेनाथ की स्थिति देखकर माँ का चिंता से बुरा हाल हो गया था। इसी बीच बाबूजी ने आकर भोलानाथ को अपने गोद में लेना चाहा, लेकिन भोलानाथ माँ के आँचल को नहीं छोड़ा।

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9. संगतकार कविता का भावार्थ | Sangatkar Class 10 Explanation

August 13, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ आठ ‘संगतकार कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse board Sangatkar Class 10 Explanation)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।Sangatkar Class 10 Explanation

 

9. संगतकार

कवि- मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल का जन्‍म 16 मई, 1948 को उत्तराखंड में स्थित टिहरी गढ़वाल के काफलपानी में हुआ था। देहरादून से शिक्षा प्राप्‍त करने के बाद ये दिल्‍ली आकर हिंदी पेट्रियट, प्रतिपक्ष तथा आसपास से जुड़ गए। अमृत प्रभात,, जनसत्ता और सहारा समय में संपादन के पश्‍चात इन दिनों ये नेशनल बुक ट्रस्‍ट में अपनी सेवा दे रहे हैं।

इनके प्रमुख काव्‍य संग्रह पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्‍ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है तथा नए युग में शत्रु। इनके प्रमुख गद्य संग्रह लेखक की रोटी तथा कवि का अकेलापन है। इनकी कविताएँ विदेशी भाषा में भी अनुवादित है। डबराल भी एक ख्‍याति प्राप्‍त अनुवादक हैं। इन्‍हें साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार, साहित्‍यकार सम्‍मान, पहल सम्‍मान, कुमार विमल स्‍मृति पुरस्‍कार, श्रीकांत वर्मा पुरस्‍कार आदि से सम्‍मानित किया गया है।

मुख्य गायक के चट्टान जैसे भारी स्वर का साथ देती

वह आवाज़ सुंदर कमज़ोर काँपती हुई थी

वह मुख्य गायक का छोटा भाई है

या उसका शिष्य

या पैदल चलकर सीखने आने वाला दूर का कोई

भावार्थ- प्रस्‍तुत कविता में मुख्‍य गायक के साथ देने वाले सगंतकार की भूमिका के महत्‍व पर विचार किया गया है। नाटक, फिल्‍म, संगीत आदि के अलावा समाज और इतिहास में ऐसे बहुत से प्रसंग हुए हैं, जहाँ नायक की सफलता में अनेक लोगों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इसलिए कवि कहता है कि मुख्‍य गायक के चट्टान जैसी दमदार और भारी स्‍वर का साथ देती हुई एक मधुर, कमजोर और काँपती हुई आवाज सुनाई देती है। कवि यह अनुमान लगाता है कि जो आवाज मुख्‍य गायक का साथ दे रही है, वह मुख्‍य गायक का छोटा भाई या उसका शिष्‍य या पैदल चलकर सीखने आने वाले दूर के किसी रिश्‍तेदार की होगी। Sangatkar Class 10 Explanation

रिश्तेदार मुख्य गायक की गरज़ में |

वह अपनी गूंज मिलाता आया है प्राचीन काल से

गायक जब अंतरे की जटिल तानों के जंगल में

खो चुका होता है या अपने ही सरगम को लाँघकर

चला जाता है भटकता हुआ एक अनहद में

तब संगतकार ही स्थायी को सँभाले रहता है जैसे

समेटता हो मुख्य गायक का पीछे छूटा हुआ सामान

जैसे उसे याद दिलाता हो उसका बचपन

जब वह नौसिखिया था।

भावार्थ- प्राचीन काल से संगतकार मुख्‍य गायक की आवाज में अपनी गूँज मिलाता आया है। वह मुख्‍य गायक को आधार प्रदान करता है। उसके गायन के खालीपन को भरता है।

कवि कहते हैं कि जब मुख्‍य गायक गाते-गाते अलौकिक आनंद में डूब जाता है और उसे पास बैठे श्रोताओं की एहसास ही नहीं रहती। उस समय संगतकार मुख्‍य गायक और श्रोतागण के बीच सेतु का कार्य करते हुए कार्यक्रम में सुंदरता भर देता है। उस समय ऐसा लगता है जैसे मुख्‍य गायक का पिछा छूटा हुआ सामान को वह समेट रहा हो और वह उसे बचपन का याद दिला रहा हो, जब वह संगीत सीख रहा था।

तारसप्तक में जब बैठने लगता है उसका गला

प्रेरणा साथ छोड़ती हुई उत्साह अस्त होता हुआ

आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ

तभी मुख्य गायक को ढाँढस बँधाता

कहीं से चला आता है संगतकार का स्वर

कभी-कभी वह यों ही दे देता है उसका साथ

यह बताने के लिए कि वह अकेला नहीं है

और यह कि फिर से गाया जा सकता है

गाया जा चुका राग

और उसकी आवाज़ में जो एक हिचक साफ़ सुनाई देती है

या अपने स्वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है

उसे विफलता नहीं

उसकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए।

भावार्थ- जब मुख्‍य गायक का गला ऊँचे स्‍वर में गाते समय बैठने लगता है, प्रेरणा उसका साथ छोड़ने लगती है या उत्‍साह कम होने लगता है। आवाज बुझने लगती है, तभी मुख्‍य गायक को ढाँढ़स बढ़ाता हुआ संगतकार कहीं से आकर गीत गाने लगता है। कभी-कभी वह मुख्‍य गायक को यह बताने के लिए साथ देता है कि वह अकेला नहीं है। अर्थात् मुख्‍य गायक के साथ संगतकार है और जिस राग को गाया जा चूका है, उसे फिर से गाया जा सकता है। संगतकार अपने स्‍वर से उसका साथ देता है।

यह सब करते समय उसकी आवाज में एक हिटकिचाहट साफ सुनाई देती हैा यह संगतकार की अपने स्‍वर को ऊँचा न उठाने की जो कोशिश है, उसे विफलता नहीं मानी जानी चाहिए, वह तो उसकी मानवीयता है।

अत: कवि कहता है कि किसी भी क्षेत्र में नायक का साथ देने वाले ऐसे व्‍यक्तियों को कमजोर नहीं समझना चाहिए। ऐसे ही व्‍यक्तियों के बल पर दूसरे लोग सफलता प्राप्‍त करते हैं। Sangatkar Class 10 Explanation

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