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Raja Shahin

1. शुचिपर्यावरणम् (स्‍वच्‍छ पर्यावरण) पाठ का हिन्दी अर्थ | Shuchiparyavaranam Class 10

August 13, 2022 by Raja Shahin 1 Comment


प्रथम पाठ:

शुचिपर्यावरणम् (स्‍वच्‍छ पर्यावरण)

अयं पाठः आधुनिकसंस्कृतकवेः हरिदत्तशर्मणः “लसल्लतिका” इति रचनासङ्ग्रहात् सङ्कलितोऽस्ति। अत्र कविः महानगराणां यन्त्राधिक्येन प्रवर्धितप्रदूषणोपरि चिन्तितमनाः दृश्यते। सः कथयति यद् इदं लौहचक्रं शरीरस्य मनसश्च शोषकम् अस्ति। अस्मादेव वायुमण्डलं मलिनं भवति। कविः महानगरीयजीवनात् सुदूरं नदी-निर्झरं वृक्षसमूह लताकुञ्ज पक्षिकुलकलरवकूजितं वनप्रदेशं प्रति गमनाय अभिलषति।

अर्थ- यह पाठ आधुनिक संस्‍कृत कवि हरिदत्त शर्मा के रचना संग्रह “लसल्लतिका” से संकलित (लिया गया) है। यहाँ कवि ने महानगरों की यांत्रिक बहुलता यानी महानगरों में अधिक मशीनों के कारण बढ़ते प्रदुषण पर व्‍यक्‍त करते हैं। वह कहते हैं कि यह लौहचक्र शरीर और मन का शोषक है। इससे वायुमंडल दूषित (मलिन) हो गया है। कवि महानगरीय जीवन से दूर नदी, झरना, वृक्षों के समुह, लताकुंज (लताओं से छाया हुआ स्‍थान) और पक्षियों से गंजित वनप्रदेशों की ओर चलने की अभिलाषा व्‍यक्‍त करते हैं।

दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्।

शुचि-पर्यावरणम्॥

महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्।

मनः शोषयत् तनूः पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥

दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम्। शुचि…॥1 ॥

अन्‍वय- अत्र जीवितं दुर्वहं जातम्, प्रकृतिः एव शरणम् । शुचिपर्यावरणम् (स्यात्)। महानगर मध्ये कालायसचक्रम् मनः शोषयत् अनिशं चलत्, तनुः पेषयत् वक्र सदा भ्रमति। अमुना दुर्दान्तैः दशनैः जनग्रसनं एव न स्यात् ।

भावार्थ- यहाँ जीवन कठिन हो गया है। प्रकृति ही शरण है। पर्यावरण शुद्ध होना चाहिए। महानगरों में चलता हुआ लोहे का पहिया मन को सुखाता हुआ, शरीर को पीसता हुआ, सदा टेढ़ा घूमता है। इस भयानक दाँतों से मानव का विनाश न हो जाए।

कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्।

वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्॥

यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ताः कठिनं संसरणम्। शुचि…॥2॥

अन्‍वय- कज्जलमलिनं शतशकटीयानं धूमं मुंचति। वाष्पयानमाला ध्वानं सन्धावति वितरन्ती । यानानां अनन्ताः पंक्तयः, हि संसरणं कठिनम् ।

भावार्थ- सैकड़ों मोटरकार कागज-जैसा मलिन (काला) धुँआ छोड़ती है, कोलाहल (शोरगुल) करते हुए रेलगाड़ी पंक्ति पर दौड़ती है। गाड़ियों की अनंत पंक्तियों में चलना भी कठिन है।

वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्।

कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्॥

करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि…॥3॥

अन्‍वय- भृशं वायुमण्डलं दूषितम् । निर्मलं जलं हि न (अस्ति)। भक्ष्य कुत्सितवस्तुमिश्रितम्। धरातलं समलं जातम्। बहिः अन्तः जगति बहु शुद्धीकरणं तु करणीयम् ।

भावार्थ- निश्‍चय ही वायुमंडल बहुत ही दूषित है, जल भी स्‍वच्‍छ नहीं है। खाने के पदार्थों में रसायन (बुरी चीजें मिली हुई है।) मिले हुए हैं। गंदगी से पृथ्‍वी भरी हुई है। संसार में भीतरी और बाहरी अत्‍यधिक शुद्धि करनी चाहिए।

कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्।

प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरम्॥

एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि…॥4॥

अन्‍वय- माम् कंचित् कालं अस्मात् नगरात् बहुदूरं नय। (अहम्) ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पयःपूरं प्रपश्यामि। एकान्ते कान्तारे क्षणम् अपि मे संचरणं स्यात्।

भावार्थ- कुछ समय के लिए मुझे इस नगर से बहुत दूर ले चलो। मैं गाँव की सीमा पर झरने, नदी और जल से भरे तालाब को देखता हूँ। पल भर के लिए एकांत जंगल में मेरा भ्रमण हो जाए।

हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया।

कुसुमावलिः समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥

नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि…॥5॥

अन्‍वय- हरित-तरूणां ललित-लतानां माला रमणीया, समीरचालिता कुसुमावलिः मे वरणीया स्यात् । नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम् (स्यात्)।

भावार्थ- हरे-भरे वृक्षों और सुंदर लताओं की माला मन को मोहने वाली है। हवा से हिलती हुई फूलों की पंक्तियाँ मेरे लिए चुनने योग्‍य है। आम के पेड़ से नवमालिका का सुंदर संगम है।

अयि चल बन्धो! खगकुलकलरवगुञ्जितवनदेशम्।

पुर-कलरवसम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्॥

चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि…॥6॥

अन्‍वय- अयि बन्धो! खगकुल–कलरव-गुंजित-वनदेशं चल । पुर–कलरव-सम्भ्रमित जनेभ्यः धृत-सुखसन्देशम्। चाकचिक्य-जालं जीवित-रसहरणम् नो कुर्यात्।

भावार्थ- अरे बंधुओं (भाईयों) ! पक्षियों की समूह की आवाज से गुंजित वन प्रदेश में चलों। शहर के शोरगुल से भ्रमित लोगों के लिए सुख-संदेश को धारण करो। चकाचौंध भरी दुनिया को जीवन के आनन्‍द (रस) को चुराना नहीं चाहिए।

प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टाः।

पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा॥

मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि…॥7॥

अन्‍वय- प्रस्तरतले लता-तरु–गुल्माः पिष्टाः न भवन्तु। पाषाणी सभ्यता निसर्गे समाविष्टा न स्यात्। मानवाय जीवनं कामये। मरणं जीवन नो कामये ।

भावार्थ- लता, पेड़ और झाड़ी को पत्‍थरों के नीचे न पीसे। पाषाणी सभ्‍यता (पत्‍थर युग) प्रकृति में समावेश न हो। मानव के लिए जीवन का कामना करता हूँ। जीवित रहते हुए मैं मृत्‍यु का कामना नहीं करता हूँ।

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8. कन्यादान कविता की व्याख्या और भावार्थ | Kanyadan kavita ka bhavarth

August 13, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ आठ ‘कन्यादान कविता की व्याख्या और भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Kanyadan kavita ka bhavarth)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Kanyadan kavita ka bhavarth

8. कन्यादान
कवि- ऋतुराज

लेखक परिचय- ऋतुराज का जन्म 10 फरवरी 1940 को राजस्थान के भरतपुर में हुआ। इन्होंने जयपुर से अंग्रेजी में एम,ए करने पश्चात ये 40 सालो तक अध्यापक से जूड़े रहे। इन्होने तीन वर्षो तक चायना रेडियो इंटरनेशनल में विदेशी भाषा के विशेषज्ञ पद को संभाला। अबतक इनके दस काव्य संग्रह है। मै आंगिरस, पुल पर पानी, एक मरणधर्मा और अन्य, लीला मुखारविंद, सुरत, निरत, आशा नाम नदी, कितना थोड़ा वक्त, अबेकस प्रबोधचंद्रोदय एवं चुनी हुइ कविताएँ प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी आलोचनात्मक कविता की बात ,संपादित रचना है। इन्हे पहले सम्मान, बिहारी सम्मान, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, सोमदत्त सम्मान, सुब्रहनण्यम, भारती हिंदी सम्मान आदि से विभूषित किया जा चुका है।

कविता परिचय- प्रस्तुत कविता कन्यादान में स्त्री के जीवन के प्रति कवि की गहरी संवेदनशीलता बताई हुई है। कवि ने स्त्री के लिए कोमलता के गौरव में छिपी कमजोर का विरोध किया है। कविता में माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा को बताया है। माँ अपनी भोली-भाली निश्छल औैर अनुभव शन्य बेटी को स्त्री जीवन में आनेवाली कठिन परिस्थितियों के लिए संचेत करती हुई आदर्शीकरण करने की सीख दे रही है। और इस कविता में स्त्री को दुःखमय बननेवाली कुरीतियो को भी उजागर किया गया है।

8. कन्यादान

कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो
लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास तो होता था
लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

भावार्थ- प्रस्तुत कविता में कन्यादान के समय माँ अपनी बेटी को स्त्री आदेश से हटकर सीख दे रही है। जब माँ ने अपनी बेटी के विवाह के समय उसे विदा किया तो उसे लगा कि वह अपनी आखरी पूँजी किसी को दे रही है। उस समय उसका दुःख स्वभाविक था। वो इसलिए कि माँ से केवल बेटी अपनी सुख दुःख की बाते करती है। माँ इसलिए दुःखी थी क्योंकि उसकी पुत्री अभी बहुत सयानी नहीं हुई थी। उसे ससुराल पक्ष की कठोर सच्चाईयों और पति के बंधनों का ज्ञान नहीं था। उसमें इतनी भोलापन और सरलता थी कि उसे सुख क्या होता है यह तो पता था। लेकिन दुःख क्या होता है यह नही पता था वह केवल काल्पनिक सुखों में जीती थी। Kanyadan kavita ka bhavarth

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे पर मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री जीवन के
माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

भावार्थ- प्रस्तुत कविता में कन्यादान के समय माँ अपनी बेटी को स्त्री आदेश से हटकर सीख दे रही है कि बेटी जब तुम पानी में देखो तो अपने आप पर खुश मत होने लगना साथ हीं आग से भी बच के रहना। जीस आग में हम रोटियाँ सेंकतें है वही आग जलती भी है और जलाती भी है। इसलिए अपनी जीवन में हमेशा संभल के रहना और माँ बेटी को ये भी समझाती है कि तुम कपड़ो और जेवरों के मोह में मत पड़ना। ये तुम्हें दूसरों के प्रति स्नेह का आभाष दिलाकर तुम्हें बंधन में जकड़ लेंगें। ससुराल में रहकर तुम लड़की की मर्यादा भरा आचरण करना लेकिन और लड़कियों की तरह किसी के अत्याचार को सहकर कमजोर और दुर्बल मत बनना। तुम हमेशा अपने लिए होने वाले अत्याचार एवं शोषण का डटकर विरोध करना ताकि लड़कियों को कभी कमजोर न समझा जा सके। माँ ने अपनी बेटी को सलाह दी कि मन से लड़की की तरह भोली और सरल कथा निश्छल रहना लेकिन गलत व्यवहार में सावधान रहना। अपनी सरलता प्रकट न होने देना। नहीं तो लोग तुम्हें मुर्ख समझकर तेरा शोषण करेंगें। तेरे साथ गलत व्यवहार करेंगें। Kanyadan kavita ka bhavarth

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7. छाया मत छूना कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी | Chhaya mat chhuna class 10 explanation

August 12, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ सात ‘छाया मत छूना कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Chhaya mat chhuna class 10 explanation)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Chhaya mat chhuna class 10 explanation

7. छाया मत छूना

गिरिजाकुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1918 को मध्य प्रदेश के गुना नगर में हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा झाँसी, उत्तर प्रदेश से प्रारंभ कर लखनऊ में अंग्रेजी एम.ए. और वकालत की परीक्षा पास की। इनकी प्रसिद्ध काव्य संग्रह है। नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नई की यात्रा। इनकी मृत्यु 1994 में हुआ।
पाठ परिचय- प्रस्तुत कविता अतित की यादों को भूल कर वर्तमान का सामना कर भविष्य का चुनाव कर संदेश देती है। जीवन में हमारे सुख और दुःख दोनों की उपस्थिति रहती है। मनुष्य जितना यश, ऐश्वर्य-धन, सम्मान आदि पाने के विषय में सोचता है। वह उतना ही भ्रमित होता है और जीवन को सुखी बनाने के लिए मनुष्य को कर्म (संघर्ष) करने का उद्देश्य देती है। Chhaya mat chhuna class 10 explanation

छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी।
भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण-
छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना।

भावार्थ- कवि आशा के साथ संदेश देते हुए कहता है कि जीवन में कभी सुख तो कभी दुःख आता है। जीवन में जो बीत गया है वह सुखों और दुःखों को याद करके बढ़ाने से कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि उसे याद करने से हमारी समस्याएँ और बढती है। मानाकि हमारे बीते हुए दिन बहुत ही सुहावनी थी। रंग-बिरंगी सुहावनी यादें आस-पास के सुहावनी गंध भरें चित्र चारों ओर फैली हुई है, लेकिन अब उसे याद करने से क्या फायदा। वह सारी तारों भरी सुंदर रात बीत गई। उसकी सिर्फ सुंदर यादें रह गई है। उसी तरह प्रिया के बालों में लगे फुलों की खुश्बु भी यादें हीं शेष बच गई है। आज दुःख के इन पलों में वो भूली हुई सुख भरी यादें एक जीवित पल बनकर मन को छू जाती है, लेकिन तुम सिर्फ उन्हीं में मत खोया रह, जो कुछ जीवन में तेरे पास है। उसी से अपने भविष्य का निर्माण कर। उन छायाओं को याद करके मन को दुगुना दुःख मिलता है, लेकिन इससे बच।

यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया।
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन-
छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना।

भावार्थ- जीवन में आशावादी दृष्टिकोण अपनाने की सीख देते हुए कवि कहते हैं कि माना आज जीवन में न वैभव है और न यश। न धन-दौलत ना हिं मान-सम्मान। लेकिन इन्हीं सब चीजों के पिछे मनुष्य दौड़ता है। इन्हें पाने के लिए भटकता है। सम्मान पाने के लिए लोग रेगिस्तान में भटके हिरण की तरह ईधर-उधर भटकता रहता है। हर सुखी इंसान के पिछे दुःख भरी कहानी छिपी होती है। इसी तरह हर सुख भरी चाँदनी रात के पिछे दुःख भरी काली रात छिपी रहती है। इसलिए तुम सुख भरी दिनों को याद करके दुःख में मत डुबो। आज जो सामने दुःख भरी पल आ रही है, तुम उसका सामना कर, सच्चाई से अपना मुँह मत मोड़ो। क्योंकि बीते हुए सुख को याद करके दुःख और बढ़ेगी।

दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण,
छाया मत छूना मन, होगा दुख दूना।

भावार्थ- कवि कहते हैं कि हे मनुष्य ! साहस होते हुए भी तेरा मन दुविधाग्रस्त है। तुम्हें सफलता वाली रास्ता दिखाई हीं नहीं दे रहा है। और शरीर तो तुम्हारी पूरी तरह से स्वस्थ्य है, लेकिन फिर भी मन में जो दुःख है वो कभी खत्म नहीं हो रहा है। मन के दुःखों का अत ही नहीं है।
हमारे जीवन में दुःख ही दुख है। सुहावनी रात के आने पर भी सुख रूप में दिखे चाँद उदित नहीं हुआ है और बसंत ऋतु में जो फुल खिला है उससे भी दुःखी मत हो क्योंकि जो सुख तुम्हें जीवन में मिला ही नहीं, उसे भूल ही जाना बेहतर है। इसलिए जो कुछ भी मिल रहा है, उसे ही खुश होकर अपनाओं और वŸार्मान का सामना करके अपने भविष्य को आगे बढ़ाओं। Chhaya mat chhuna class 10 explanation

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12. लखनवी अंदाज कहानी का व्‍याख्‍या | Lakhnavi Andaaz Class 10 Summary & Notes

August 12, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के गद्य भाग के पाठ बारह ‘लखनवी अंदाज कहानी का व्‍याख्‍या का व्‍याख्‍या कक्षा 10 हिंदी’ (cbse Lakhnavi Andaaz Class 10 Summary & Notes)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Lakhnavi Andaaz Class 10

पाठ-12
लखनवी अंदाज
लेखक- यशपाल

पाठ का सारांश

लेखक कोई नई कहानी लिखने और उसके बारे में सोंचने के लिए अकेला रहना चाहता था। इसलिए लेखक सेकंड क्लास का टिकट ले आया और उनकी इच्छा यह भी थी कि वह रेल (ट्रेन) की खिड़की से दिखने वाले प्राकृतिक दृश्यों को देखकर कुछ सोंच सके।
जिस डिब्बे में लेखक चढ़ा, तो देखा की एक नवाब साहब पालथी मारे बैठे हुए थे। और वो अपने सामने दो खिरे तौलिए पर रखे हुए थे। तो लेखक को लगा कि नवाब साहब उसके इस डिब्बे में आने से इसलिए खुश नहीं है, क्योंकि कोई और आदमी के सामने खीरे जैसी साधारण चीजें खाने में उन्हें दिक्कत हो रहा था।
बहुत देर बीतने के बाद नवाब साहब को लगा कि वह खीरे कैसे खाएँ तब हारकर उन्होंने लेखक को खीरा खाने के लिए कहा, जिसे लेखक ने धन्यवाद कहकर ठुकरा दिया।
लेखक जब खिरा खाने के लिए मना किया तो नवाब साहब ने खीरों के नीचें रखे हुए तौलिए को झाड़कर सामने बिछाया, फिर खिरा को धोया और तौलिए से पोछ लिया। और चाकू निकालकर दोनों खिरों के सिर काटे, उन्हें घिसकर उनका झाग निकाला और बहुत ही अच्छे ढ़ग से छिलकर खीरों के उन फाँको को सलीके से तौलिए पर सजाया। सब करने के बाद उन्होंने फाँको पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी। यह सब देखकर लेखक और नवाब साहब दोनों के मुँह में पानी आ रहा था।
सब करने बाद नवाब साहब ने एक बार फिर से लेखक को खीरा खाने को कहा। लेकिन लेखक को खीरा खाने का मन होते हुए भी यह कहकर ठुकरा देता है कि उनका मेदा कमजोर है।
तब नवाब साहब ने खीरा के फाँको को सूँघा, स्वाद का आनंद लिया और सभी फाँकों को एक-एक करके खिड़की के बाहर फेंक दिया। इसके बाद नवाब साहब लेखक की ओर देखते हुए तौलिए से मुँह हाथ पोंछ लिए। यह सब देखकर लेखक को लगा जैसे वह उससे कह रहे हैं कि यह खानदानी रईसों का तरीका है। लेकिन फिर उसके बाद लेखक को नवाब साहब के मुँह से भरे पेट की ऊँची डकार की आवाज भी सुनाई दी।
सब देखने के बाद लेखक सोंचने लगता है कि बिना खीरा खाए सिर्फ सुगंध और स्वाद की कल्पना करने से पेट भर जाने का डकार आ सकता है, तो बिना विचार, बिना कोई घटना और पात्रों के, सिर्फ लेखक के इच्छा से नई कहानी क्यों नहीं बन सकती।

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6. ‘यह दंतुरित मुस्कान‘ तथा ‘फसल‘ कविता का भावार्थ | Yah danturit muskan tatha Fasal kavita ka bhavarth class 10

August 12, 2022 by Raja Shahin 6 Comments

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ छ: ‘यह दंतुरित मुस्कान’ तथा ‘फसल’ कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Yah danturit muskan tatha Fasal kavita ka bhavarth)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

yeh danturit muskan aur fasal kavita ka bhavarth

6. ‘यह दंतुरित मुस्कान’ तथा ‘फसल’
कवि- नागार्जुन

नागार्जुन का वास्तविक नाम वैधनाथ मिश्र था। साहित्य के क्षेत्र में वे नागार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए। इनका जन्म 1911 में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में हुआ था। 1936 में वे श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए और 1938 में स्वेदश लौट आए।
नागार्जुन धुमक्कड़ और फक्कड़ स्वभाव के कारण प्रसिद्ध थे। इन्होनें हिन्दी और मैथिली भाषा में लेखन कार्य किया । युगधारा ,सतरंगे पंखो वाली ,हजार हजार बाँहो वाली, तुमने कहा था ,पुरानी जूतियों का फोरस आदि। नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ हैं। मैथली भाषा के काव्य रचना के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनकी भाषा बहुत ही आसान और सहज व प्रवाहमयी है। इनकी मृत्यु 1998 में हुआ था।
’यह दंतुरित मुस्कान‘ को कवि ने एक छोटे बच्चे की मुसकान का वर्णन किया है। बच्चे की मुसकान को अमुल्य माना गया है। बच्चे की कोमल दंतुरित मुसकान कठोर ह्रदय को भी पिघला देती है। ‘फसल‘ कविता में कवि नें अनेक तत्वों का उल्लेख किया है। जिसकी मदद से फसल की उत्पति होता है। इसकी उत्पति में किसान की भूमिका और उसके मेहनत को बताने के साथ-साथ मिट्टी, जल, सूर्य, हवा आदि सभी के योगदान को भी बताया है। प्रकृति एवं मनुष्य के परस्पर सहयोग का ही परिणाम फसल है।

‘यह दंतुरित मुस्कान’

तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात…
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?

भावार्थ- कवि को बच्चे के नए-नए निकले दाँतो की मनमोहक मुसकान में जीवन का संदेश दिखाई देता हैं। वह कहते हैं कि हे बालक तुम्हारे नए-नए दाँतों की मनमोहक मुसकान को देखकर तो जिन्दगी से निराश और उदासीन लोगों के हृदय भी खुशी से खिल उठते हैं। कवि कहते हैं कि तुम्हारे इस शरीर को धुल से सने हुए देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कमल का सुंदर फूल तालाब को छोड़कर मेरी झोपड़ी में आकर खिल गया हो और तुम्हें पत्थर दिल वाले व्यक्ति ने जब तुम्हरा छुवा स्पर्श किया होगा तो वह भी पत्थर की तरह अपनी कठोरता को छोड़कर नर्म बन गया होगा। तुम्हारा स्पर्श त्वचा इतना कोमल है कि बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगे होंगे।

तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?
क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न सकता देख
मैं न पाता जान
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान

भावार्थ- कवि को बच्चे की मुसकान मनमोहक लगती है जब बच्चा पहली बार किसी को देखता है तो वह अंजान की तरह उसे घुरता है इसलिए कवि बच्चे से कहता है कि तुम मुझे पहचान नही पाए। इसलिए बिना पलक झपकाए अंजान की तरह मुझे देखे जा रहे हो। कवि कहते है ऐसे लगातार देखते-देखते तुम थक गए हो। इसलिए मैं ही तुम्हारी तरफ से नजर हटा लेता हूँ। अगर तुम मुझे पहली बार में नहीं पहचान सके तो क्या हुआ। अगर तुम्हारी माँ तुम्हारे और मेरे बीच का माध्यम का काम न करती तो तुम मुझे देखकर हँसते नहीं और मुझे तुम्हारे इन नए-नए निकले दाँतो वाली मुसकान को देखने का सौभाग्य नहीं मिल पाता।

धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होती जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

भावार्थ- कवि बच्चे की मधुर मुसकान देखकर कहता है कि तुम धन्य हो और तुम्हारी माँ भी धन्य है जो तुम्हे एक दुसरे का साथ मिला मैं तो हमेशा बाहर ही रहा इसलिए मेरा तुमसे कोई संपर्क नहीं रहा। तुम्हारे लिए तुम्हारे माँ के अंगुलियों में ही आत्मीयता है। जिसने तुम्हें पंचामृत पिलाया। इसलिए तुम उनका हाथ पकड़कर मुझे कनखी से नजारा देख रहे हो। औश्र जब हमारी नजरें तुम्हारी नजरों से मिल रही है। तुम मुसकुरा दे रहे हो। उस समय तुम्हारे नए-नए निकले दाँतों वाली मुसकान मुझे बहुत ही प्रिय लगती है।

Fasal kavita ka bhavarth

फसल कविता का भावार्थ

एक के नहीं,
दो के नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू :
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा :
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्मः

भावार्थ- कवि ने स्पष्ट बताया है कि लहलहाती फसल को पैदा करने में प्रकृति और किसान दोनों का ही बराबर सहयोग होता है। इसलिए फसल को पैदा करने में सिर्फ एक-दो नदियाँ ही नहीं, बल्कि अनेक नदियाँ अपना पानी देकर उसकी सिंचाई करते हैं। सिर्फ एक-दो मनुष्य का ही नहीं बल्कि लाखों करोड़ों मनुष्यों का मेहनत मिलता है और एक-दो खेती का हीं नहीं बल्कि हजारों खेतों की मिट्टी का गुण धर्म मिलता हे, तब खेतों में फसल होती है।

फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!

भावार्थ- कवि ने स्पष्ट बताया है कि फसल को ऊपजाने में प्रकृति और मनुष्य दोनों ही का सहयोग होता है। इसलिए कवि कहता है कि फसल का खुद कोई अस्तित्व नहीं है। वह तो नदियों द्वारा दिए गए उसका पानी का जादू है, वह तो लाखों-करोड़ों मनुष्यों के किए गए मेहनत का फल है। वह तो भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुणधर्म है। जिसमें फसल को बोया था और सुर्य के किरणों का बदला हुआ रूप है जिससे फसलों को रोशनी मिली। साथ ही हवा का समान सहयोग है। इस तरह इन सब के सहयोग और मेहनत से ही खेतों में लहलहाती फसल खड़ी होती है। Yah danturit muskan tatha Fasal kavita ka bhavarth

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10. नेताजी का चश्मा पाठ का व्‍याख्‍या | Neta ji ka chashma class 10 summary

August 12, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के गद्य भाग के पाठ दस ‘नेताजी का चश्मा पाठ का व्‍याख्‍या कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Neta ji ka chashma class 10 summary)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Neta ji ka chashma class 10 summary

8. नेताजी का चश्मा

प्रस्तुत पाठ हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार ‘स्वयं प्रकाश‘ के द्वारा लिखा गया है।इनका जन्म इन्दौर (मध्य प्रदेश) में 1947 में हुआ था। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त करके यह नौकरी के लिए राजस्थान आ गए। भोपाल के बहुत सारे पत्रिका के संपादन से जुड़े थे।
उनकी प्रमुख कहानी संग्रह ‘सुरज कब निकलेगा‘, ‘आएँगे अच्छे दिन भी‘, ‘आदमी जात का आदमी‘, ‘संधान‘ है।
बीच में विनय और ईंधन प्रमुख उपन्यास है।
पाठ का थीम प्रस्तुत पाठ देशभक्ति का संदेश देता है। इस पाठ के अनुसार देशभक्ति केवल किसी भू भाग से प्रेम करना नहीं, बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक, प्रकृति, जीव जन्तु, पशु पक्षी, पर्वत, पहाड़, झरने आदि सभी से प्रेम करना एवं उनकी रक्षा करना है। लेखक ने एक चश्मे बेचने वाले कैप्टन के माध्यम से एक ऐसे साधारण व्यक्ति के कार्य का वर्णन किया है, जो अभावग्रस्त जिंदगी बिताते हुए भी देशभक्ति की भावना रखता है, परन्तु हमारा समाज ऐसे व्यक्तियों को सम्मान देने के बजाय उस पर हँसता है।
पाठ का सारांश
हलदार साहब हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम से उस कस्बे से होकर गुजरते थे। कस्बे में कुछ पक्के मकान, एक छोटा सा बाजार, बालक बालिकाओं का दो विद्यालय, एक सीमेंट का कारखाना, दो खुली छतवाले सीनेमाघर तथा एक नगरपालिका थी। इस कस्बे के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुबाषचन्द्र बोस की मूर्ति लगी हुई, जिसे वह गुजरते हुए हमेशा देखा करते थे।
हालदार साहब ने जब पहली बार मूर्ति देखा, तो लगा कि इसे नगरपालिका के किसी उत्साही अधिकारी ने बनवाया होगा। मूर्ति को बनवाने में काफी समय पत्र व्यवहार में लग गया है। इस मूर्ति को जल्दीजल्दी में बनवाया होगा। लेखक कहते हैं कि इस मूर्ति की यह विशेषता थी कि उसका चश्मा सचमुच का था।
हालदार साहब जब अगली बार उस चौराहे से गुजरे तो उन्हें देखकर आश्चर्य हुआ कि इस बार मूर्ति का दूसरा चश्मा लगा हुआ था। हालदार साहब ने पान वाले से पूछा। पान वाले ने बताया कि कैप्टन इस चश्मे को बदलता रहता है। हालदार साहब ने सोचा कि कैप्टन कोई भूतपूर्व सैनिक होगा या आजाद हिंद फौज का सिपाही होगा।
जब हालदार साहब ने कैप्टन के बारे में पूछा तो पान वाले ने कैप्टन का मजाक उड़ाते हुए कहा कि वह लँगड़ा क्या जाएगा फौज में। उसी वक्त हालदार साहब ने देखा कि कैप्टन एक बेहद बुढ़ा मरियल सा लँगड़ा आदमी है, जो सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगा रखा है। वह घूमघूम कर चश्मा बेचता है।
अगर कोई ग्राहक मूर्ति के फ्रेम जैसा चश्मा माँगता, तो कैप्टन मूर्ति के चश्मे का फ्रेम उतारकर उसे दे देता और मूर्ति पर दूसरा फ्रेम लगा देता था।
पान वाले से हालदार साहब को यह जानकारी मिली कि मूर्तिकार समय कम होने के कारण मूर्ति पर चश्मा बनाना भूल गया था। जिसके कारण मूर्ति को बिना चश्मे के ही लगा दिया गया। कैप्टन को बिना चश्मे के मूर्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए वह मूर्ति पर चश्मा लगा दिया करता था। हालदार साहब लगभग दो साल तक मूर्ति पर लगे चश्मे को बदलते देखते रहे।
एक दिन जब हलदार साहब उसी कस्बे से होकर गुजरे, तो उन्होंने देखा कि मूर्ति पर चश्मे नहीं थी। अगली बार भी उसी रास्ते से गुजरे तो देखे कि मूर्ति पर कोई चश्मा नहीं था। इस बारे में पान वाले से पूछने पर पान वाल ने बताया कि कैप्टन मर गया। हालदार साहब का यह सोचकर बहुत दुःख हुआ कि अब नेता जी की मूर्ति बिना चश्मे के ही रहेगी
अगली बार हालदार साहब ने सोचा कि इस बार मूर्ति की तरफ नहीं देखेंगे। लेकिन उनकी नजर मूर्ति की तरफ पड़ ही गया। क्योंकि वह आदत से मजबूर थे। जब उन्होंने चौराहे पर लगी हुई नेताजी की मूर्ति को देखा तो उनकी आँखें भर आई। मूर्ति पर किसी बच्चे ने सरकंडे का बना हुआ चश्मा लगा दिया था। हालदार साहब भावुक हो गए कि बड़ों के साथ बच्चों में भी देशभक्ति भरा हुआ है। Neta ji ka chashma class 10 summary

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11. बालगोबिन्द भगत | Balgobin Bhagat Class 10 Explanation

August 11, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के गद्य भाग के पाठ चार ‘बालगोबिन्द भगत कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Balgobin Bhagat Class 10 Explanation)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Balgobin Bhagat Class 10 Explanation

4. बालगोबिन्द भगत
लेखक-  रामबृक्ष बेनीपुरी

प्रस्तुत पाठ ‘बालगोबिन्द भगत‘ एक बहुत ही रोचक रेखाचित्र है। इस रेखाचित्र के रचनाकार रामबृक्ष बेनीपुरी है। यह एक महान लेखक है। रामबृक्ष बेनिपूरी को कलम का जादूगर भी कहा जाता है। रामबृक्ष बेनिपूरी के द्वारा लिखित रेखाचित्र बालगोबिन्द भगत पाठ में बालगोबिन्द भगत के रोजमर्रा के बारे में लेखक बताते हैं। बालगोबिन्द भगत के जीवनी के बारे में बताते हुए लेखक यह सिद्ध करते हैं कि धर्मपाल, पूजा-पाठ आदि करने से नहीं होती है। बल्कि आचरण की पवित्रता और शुद्धता में होती है। बालगोबिन्द भगत की वेशभूषा भी साधुओं जैसी नहीं है। लेकिन उनकी दिनचर्या और निर्णय मनुष्य की सच्ची और सही परिभाषा रचने में सहायक है।

बालगोबिन्द भगत मझौले कद यानि (मिडियम साइज के) गोरे चिट्टे आदमी थे। वे 60 साल के ऊपर के ही थे। उनकी बालें पक गई थी। लम्बी दाढ़ी या जटा आदि नहीं रखते थे। किन्तु हमेशा उनका चेहरा सफेद बालों से ही जगमग किए रहता। कपड़े बिल्कुल कम पहनते थे। कमर में एक लंगुटी मात्र और सिर में कबीरपंथीयों की सी कनफटी टोपी, जाड़ा में एक काली कंबर ऊपर से ओढ़े रहते थे। वह मस्तक पर हमेशा रामानंदी चंदन और गले में तुलसी के माला बंधे रखते थे।

भगत साधु एवं गृहस्थ दोनों थे। पत्नी मर गई थी। उनका एक बेटा-बहु तथा थोड़ी खेती-बारी भी थी। परिवार वाले होते हुए भी वह साधु थे। कबीर को ‘साहब‘ मानते थे। और उन्हीं के गीतों को गाते थे। वह कभी झूठ नहीं बालते और खरा व्यवहार रखते थे। वह किसी से दो टूक बात करने में संकोच नहीं रखते। वह दूसरों के खेत में शौच के लिए नहीं बैठते। जो कुछ खेत में पैदा होता, उसे सिर पर लाद कर चार कोश की दूरी पर अवस्थित कबीरपंथी मठ में भेंट स्वरूप पहुँचा आते। प्रसाद रूप में जो कुछ वहाँ मिलता, उसी से गुजारा करते। वे संगीत के अलौकिक गायक थे। उनके मधुर गान पर लेखक मुग्ध थे। क्योंकि कबीर के पद उनके मुख से निकलकर सजीव हो उठते।आसाढ़ के रीमझीम फुहारे में समुचा गाँव धान की रोपाई कर रहा है। ऐसा समय में एक स्वर तरंग झंकार सी कर उठती है। सभी लोग गाना सुनकर झुम उठते हैं।

भारत की वह अंधेरी अधरतिया, थोड़ी देर पहले मुसलाधार वर्षा खत्म हुई थी कि भगत की खंजरी की आवाज सुनाई पड़ती है। वे गीत गा रहे हैं। ‘‘गोदी में पीउवा चमक उठे, सखीया चिहुक उठ ना‘‘ पिया गोद में ही, किन्तु वह समझती है कि वह अकेली है। उनका यह गीत अकस्मात कौंध उठने वाली बिजली की तरह चौंका देता है। सारा संसार गहरी नींद में सोया है। भगत का संगीत जाग तथा जगा रहा है। ‘‘तेरी गठरी में लगा चोर, मुसाफिर जाग जरा‘‘ कार्तिक आते ही भगत की परभातियां शुरू हो जाती, जो फाल्गुन तक चलती। वह सुबह होते ही नदी स्नान करके लौटते और पोखरे के भिंडे पर बैठ कर खँजरी बजाते हुए गाना गाने लगते।

एक दिन की बात है उनका इकलौता बेटा की मृत्यु हो गई। वह बेटा की मृत्यु से दुःखी नहीं बल्कि खुश थे। वह कहते थे कि परमात्मा से आत्मा की मिलन हो गई। इससे अधिक खुशी की बात क्या हो सकती है। बेटे के मृत्यु के बाद वह अपने पुत्र वधु को उनके भाई के साथ उसके घर भेज दिए।

भगत जी हर वर्ष तीस कोस दूर गंगा स्नान करने के लिए पैदल ही चल पड़ते। रास्ते भर खँजरी बजाते, गीत गाते और प्यास लगने पर पानी पीते थे। इस यात्रा की अवधि में भूखे रहते, लेकिन इस लंबी उपवास में भी वह मस्त रहते। एक समय उनकी तबीयत खराब हो गई और वह मर गए। जब भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना, जाकर देखे तो बालगोबिन्द भगत नहीं रहे। उनका मृत शरीर पड़ा था।

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5. उत्साह, अट नहीं रही है कविता का भावार्थ | Utsah aur at nahi rahi hai bhavarth

August 11, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ पॉंच ‘उत्साह, अट नहीं रही है कविता का भावार्थ कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Utsah aur at nahi rahi hai bhavarth)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Utsah aur at nahi rahi hai bhavarth

5. ‘उत्साह‘ तथा ‘अट नहीं रही है‘

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 1899 ई़ में बंगाल के महिषा दल में हुआ। इन्होंने अपनी शिक्षा कि प्राप्ति घर पर हीं कि। उन्होंने संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी आदि भाषाओं का अध्ययन घर पर ही किया। इनका पारिवारिक जीवन कष्ट और संघर्षो से भरा था। इनके पिता, चाचा, पत्नि के अलावा उनकि पुत्री सरोज कि भी मुत्यु हो गई। उनकि प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं। अनामिका, परिमल, गितिका, कुकुमुत्ता, नए पत्ते आदि। निराला कि मृत्यु 1961 में हुआ। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला नें उत्साह कविता के अंतर्गत बादलों को एक ओर तो लागों की इच्छाओं को पुरा करने वाला बताया है। निराल इस कविता के माध्यम से सामाजिक क्राति और बदलाव लाना चाहतें हैं। यह कविता एक आहान गित है। इनसे निराला ने फागून के सौदर्य और उल्लास को बताया है । कवि बादलों को कहतें हैं कि एै लोगो के मन को सुख से भर देने वाले बादलों, आकाश को घेर-घेर कर खुब गरजो तुम्हारे काले बाल सुंदर घुँघराले हैं। ये कल्पना के विस्तार से समान घने है। निराला बादलो को कवि के रूप में समझाते हुए कहतें हैं कि तुम्हारे हृदय में बिजली कि चमक है। वर्षा दुःखी और प्यासे लोगो कि इच्छा पुरी करतें है उसी प्रकार कवि भी संसार को नया जीवन देनेवाले है। जिस प्रकार बादलों में वज्र छिपा है उसी तरह कवि भी अपनी नई कविता के भावनाओं में वज्र छिपाकर नवीन सृष्टि का निर्माण करतें है और पुरे संसार को जोश से भर देते हैं।

उत्साह कविता का भावार्थ

बादल, गरजो!-
घेर घेर घोर गगन, धाराधर ओ!
ललित ललित, काले घुघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता

फिर भर दो-
बादल, गरजो!

भावार्थ- कवि बादलों को कहते है कि ऐ लोगों के मन को सुख से भर देने वाले बादलो , आकाश को घेर कर खुब गरजो। तुम्हारे काले बाल घने सुन्दर धुँधराले है। ये कल्पना के विस्तार से समान है। निराला बादलों के कवि के रूप में समझाते हुए कहते हैं। कि तुम्हारे ह्रदय में बिजली की चमक है। वर्षा दुःखी और प्यासे लोगो की इच्छा पुरी करते है, उसी प्रकार कवी भी संसार को नया जीवन देने वाले है। जिस प्रकार बादलों में वज्र छिपा है, उसी तरह कवि भी अपनी नइ कविता के भावनाओं में वज्र छिपाकर नवीन सृष्टि का निर्माण करतें है और पुरे संसार को जोश से भर देते हैं।

विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो-
बादल, गरजो!

भावार्थ- कवि कहते है कि सभी तरफ वातावरण में बेचैनी थी लोगो के मन दु;खी थें , इसलिए बादलों से कहते है कि आकाश को घेर-घेर कर गरजो और लोगो के मन को सुख से भर दों। दुनिया के सभी प्राणी इस भयंकर गर्मी के कारण बेचैन और उदास हो रहे है। अंजान दिशा से आए हुए घने बादलों तुम बरसकर गर्मी से तपती इस धरती को ठंडा करके लोगो को सुखी और खुश कर दो।

अट नहीं रही है कविता का भावार्थ
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।

कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
पत्तों से लदी डाल कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद-गंध-पुष्प-माल,
पाट-पाट शोभा-श्री
पट नहीं रही है।

भावार्थ- कवि फागुन के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते है कि चारो तरफ फागुन की शोभा समा नहीं पा रही है। फागुन की सोभा तन-मन में नहीं समा पा रही है। इस समय चारो ओर फूल खिलते है और तुम साँस लेते हो, उस साँस से तुम पुरे प्रकृति को खुशबू से भर देती है। यह सब देखकर मन खुश हो जाता है। और खुले आसमान में उडना चाहता है। इस वातावरन में पक्षी भी पंख फैलाकर उडना चाहते है। इस फागुन की नजारा इतना अदभुत और सुहाना होता है कि अगर हम इससे नजरे हटाना भी चाहे तो नहीं हटा पाते है। इस समय में पेंडो की डालियाँ कही लाल फुलो से तो कही हरी पत्तियों से लदी रहती है। इस सबको देखकर ऐसा लगता है कि फागून के गले में सुगंध फैलाने वाली फूलो की माला पडी हुइ है। इस प्रकार फागुन का यह सौंदर्य बिखरा हुआ है कि वह सौंदर्य समा नही पा रहा है। Utsah aur at nahi rahi hai bhavarth NCERT Class 10

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1. सूरदास के पद कक्षा 10 हिंदी | cbse class 10 Hindi Surdas ke pad

August 10, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ एक ‘सूरदास के पद कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Surdas ke pad)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। Cbse class 10 Hindi Surdas ke pad Chapter 1

cbse class 10 Hindi Surdas ke pad

1. सूरदास

सूरदास का जन्म 1478 में हुआ था।
इनका जन्म मथुरा के रूनकता रेणुका जगह पर हुआ था। इनका जन्म दिल्ली के पास सिही माना जाता है। वे मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर रहते थें।
इनकी मृत्यु 1583 में परसौली में हुआ था। उनके तीन ग्रंथ थे- सूरसागर, साहित्य लहरी और सूर सारावाली। जिसमें सबसे लोकप्रिय सूरसागर ही हुआ।
सूरदास ‘वात्सल्य‘ और ‘श्रृंगार‘ के श्रेष्ट कवि माने जाते हैं।
उनकी कविता ब्रजभाषा में लिखी हुई है। यहाँ सूरसागर के भ्रमरगीत से चार पद लिए गए हैं।
मथुरा जाने के बाद स्वयं न लौटकर उद्धव के जरिए गोपियों के पास श्रीकृष्ण ने संदेश भेजा था। उद्धव निगुर्ण ब्रहम एवं योग का उपदेश देकर गोपियों के विरह वेदना को शांत करने का प्रयास किया लेकिन गोपियाँ नहीं मानी। वह ज्ञान मार्ग के बजाय प्रेम मार्ग को पसंद करती थी। इसलिए उन्हे उद्धव का संदेश पसंद नहीं आया। तभी वहाँ एक भौंरा यानी भ्रमर उड़ता हुआ आ गया, गोपियों ने व्यंग्य के द्वारा उद्धव से अपने मन की बातें कहीं। अर्थात तभी गोपियाँ ने भ्रमर के बहाने उद्धव पर व्यंग वाण छोड़ें। इसलिए उद्धव और गोपियों का संवाद ‘भ्रमरगीत’ नाम से प्रसिद्ध है।
पहले पद में गोपियों कि यह शिकायत वाजिब लगती है कि जब उद्धव स्नेह के धागे से बंधे रहते तो वो विरह के वेदना को अनुभव नही कर पाते। उद्धव, श्रीकृष्ण के पास रहने के बावजूद भी उन्हें प्रेम की पीड़ा का एहसास नहीं होता है।
दूसरे पद में गोपियाँ यह स्वीकार करती है कि उनके मन की अभिलाषाएँ मन में हीं रह गई। कृष्ण के लिए उनके प्रेम की गहराई को प्रकट करती है। तीसरे पद में वे उद्धव की योग साधना को कड़वी-ककड़ी जैसा बताकर अपने एकता वाले प्रेम के विश्वास को प्रकट करती हैं। चौथे पद में उद्धव को ताना मारती है कि कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है और अंत में गोपियों द्वारा उद्धव को प्रजा की हित याद दिलाया जाना सूरदास की लोकधार्मिता को दर्शाता हैं।

Cbse class 10 Hindi Surdas ke pad Kavya Khand

पद

(1)
ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा तैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोरयौ, दृष्टि न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।

भावार्थ- इस पद में गोपियाँ श्री कृष्ण के मित्र से कहती है कि तुम बहुत भाग्यशाली हो जो अपने मित्र श्री कृष्ण के पास रहकर भी उसके प्रेम को नहीं जान पाए। उनसे प्रेम नहीं कर पाए। नही तो आपको भी उनसे दूर होने की दर्द सहन करना होता। आप बिल्कुल पानी में खिले कमल के पत्ते की तरह है जो पानी के भितर रहकर भी अछुते रहते हैं। जिस तरह तेल की गगरी को अगर पानी में डालकर निकाले फिर भी कुछ न हो पाए यानी तब भी वह गीला न हो। बिल्कुल आप वैसे ही है। जो श्री कृष्ण के इतने पास होकर भी उनके प्रेम से अंजान है। उनका प्रेम आपको छु नहीं पाया है। प्रेम की नदी में आप अपने पैर भी नही डुबोया और नही उन पर नजर डाली। लेकिन हम गोपियाँ तो अबला है। श्री कृष्ण के प्रेम में इस तरह चिपट गए। जैसे गुड़ से चिटियाँ लिपट जाती है और प्राण खो देती है।

(2)
मन की मन ही माँझ रही।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नाहीं परत कही।
अवधि अधार आस आवन की, तन मन बिथा सही।
अब इन जोग सँदेसनि सुनि सुनि, बिरहिनि बिरह दही।
चाहति हुतीं गुहारि जितहिं तैं, उत तैं धार बही।
‘सूरदास’ अब धीर धरहिं क्यौं, मरजादा न लही।।

भावार्थ- इस पद में गोपियाँ कहती है कि हमने अपने मन की बात मन में ही रख लिए। लेकिन उद्धव आप जो संदेश लेकर आए हैं वह तो ठीक है पर अपनी मन की बात से नहीं कह पाएँगे। क्योंकि अपनी मन की बात आपको कहना उचित नहीं मानतें। हम गोपियाँ ये सोंचकर अपने मन में बातें रखी थी कि कभी श्री कृष्ण वापस लौटकर आऐंगें तो हम उन्हें अपनी मन की बात बताएँ। लेकिन इतना समय बित गया वो नहीं आए और श्री कृष्ण ने जो संदेश भेजा, उससे हम गोपियाँ और दुःखी हो गए। उन्होंने ये संदेश भेजकर आग में घी डालने का काम किया है। ऐसे परिस्थति में हम अपने रक्षक को बुलातें है सहायता के लिए लेकिन यहाँ तो हमारे रक्षक ही हमारे दुःख का कारण बनें हैं। हम गोपियाँ चाहते हैं कि हमें प्रेम के बदले प्रेम मिले। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब हम अपनी मरयादा पार कर रहें हैं। हम अपने दिल कि बात नहीं बताना चाहतें हैं लेकिन अब हम बतातें हैं कि हमें कितना तकलीफ हो रही है।

(3)
हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह कान्ह जकरी।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी।
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपो, जिनके मन चकरी।।

भावार्थ- इस पद में गोपियाँ कहती है कि श्री कृष्ण हमारे लिए हारिल कि लकड़ी है। जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पैरों में दबाई लकड़ी को नहीं छोड़ता, उसी प्रकार हमने मन, क्रर्म, वचन, नंद सभी से श्री कृष्ण को अपना माना है। हमने जागते, सोते, सपने में, दिन में, रात में हर समयय में मेरे रोम-रोम में कान्हा ही कान्हा है सिर्फ कान्हा यानी श्रीकृष्ण। इसलिए जो आप हमारे लिए संदेश लाए हैं वो कड़वी ककड़ी के समान है। हमें कृष्ण के प्रेम का लत लग चुका है उनका प्रेम का रोग इसलिए आपका कुछ भी कहने से हम अपने प्रेम पर रोक नहीं लगा सकतें। इसलिए आप ये संदेश उन्हें जाकर दिजिए जो चंचल है। यानी जिन्हे अलग-अलग चीजें पसंद आ जाती है।

(4)
हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।
समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।
इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।
अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।
ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।
राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।।

भावार्थ- इस पद में गोपियाँ कहती है कि श्री कृष्ण वहां जाकर राजनीति पढ़ ली है। इसलिए वह अपना फायदा नुकसान देखकर कोई कार्य करते हैं। क्योंकि वो तो पहले से ही चालाक थे और वो वहाँ मथुरा जाकर बहुत से ग्रंथ पढ़ लिए हैं। गोपियाँ सारी बातें तो भौंरा से कह रही है पर सभी अपने आसपास के लोगों को सुनाकर कह रही हैं। अब श्री कुष्ण की बुद्धि बहुत बढ़ गई है। अब तो चालाक हो गए हैं इसलिए अपना फायदा नुकसान देखकर हीं कोई काम करतें हैं। इसलिए वो हमारे लिए ये संदेश भेजा है पर आप मथुरा जाकर श्री कृष्ण को कहिएगा कि वो साथ में हमारा मन भी ले गए। जिसे वापस कर दें। अब श्री कृष्ण तो मथुरा के राजा हैं और राजा का कार्य होता है। अन्याय न करें पर वो तो हमारे साथ हीं अन्याय कर रहें हैं। इसलिए कि वो हमें न चाहकर किसी और को चाह रहें हैं।

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श्वसन कक्षा 10 विज्ञान | Swasan class 10 notes in hindi

August 9, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग कक्षा 10 विज्ञान के पाठ  श्वसन (Swasan class 10 notes in hindi) के प्रत्‍येक टॉपिक के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

swasan class 10 notes in hindi

2. श्वसन

श्वसन-श्वसन उन सभी प्रक्रियाओं का सम्मिलित रूप है जिनके द्वारा शरीर में ऊर्जा का उत्पादन होता है।
यह ऊर्जा ए.टी.पी. जैसे विशेष रासायनिक बंधन में संगृहीत हो जाती है। संगृहीत ऊर्जा का उपयोग सभी जीव ए.टी.पी. के जलीय विघटन के द्वारा करते हैं।
श्वसन क्रिया में ग्लूकोज-अणुओं का ऑक्सीकरण कोशिकाओं में होता है। इसीलिए, इसे कोशिकीय श्वसन कहते हैं।
कोशिकीय श्वसन- यह मानव कोशिका के अंदर होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसके द्वारा पाचन के फलस्वरूप बना ग्लूकोज कोशिका के अंदर टूट जाता है और हमें ऊर्जा प्राप्त होता है।
संपूर्ण कोशिकीय श्वसन का दो अवस्थाओं में विभाजित किया गया है-
1. अवायवीय श्वसन- यह कोशिकाद्रव्य में पूर्ण होता है। यह ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है। अतः इसे अनॉक्सी श्वसनन कहते हैं।
2. वायवीय श्वसन- यह माइटोकोण्ड्रिया में होता है। यह ऑक्सीजन के उपस्थिति में होता है। अतः इसे ऑक्सी श्वसन कहते हैं।
वायवीय श्वसन और अवायवीय श्वसन में क्या अंतर है ?
वायवीय श्वसन और अवायवीय श्वसन में मुख्य अंतर निम्नलिखित है-
1. वायवीय श्वसन ऑक्सीजन की उपस्थिति में होता है जबकि अवायवीय श्वसन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।
2. वायवीय श्वसन का प्रथम चरण कोशिकाद्रव्य में तथा द्वितीय चरण माइटोकॉण्ड्रिया में पूरा होता है जबकि अवायवीय श्वसन की पूरी क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है।
3. वायवीय श्वसन में अवायवीय श्वसन की तुलना में बहुत ज्यादा ऊर्जा मुक्त होती है।
पौधों में श्वसन- पौधों में श्वसन श्वसन-गैसों का आदान-प्रदान शरीर की सतह द्वारा विसरण विधि से होता है।
पेड़-पौधों में गैसों का आदान-प्रदान पत्तियों के रंध्रों के द्वारा होता है।
पौधों में श्वसन की क्रिया जंतुओं के श्वसन से किस प्रकार भिन्न है-
पोधों में श्वसन की क्रिया जंतुओं के श्वसन से निम्नलिखित प्रकार से भिन्न है-
1. पौधों के प्रत्येक भाग, अर्थात जड़, तना तथा पत्तियों में अलग-अलग होता है।
2. जंतुओं की तरह पौधों में श्वसन गैसों का परिवहन नहीं होता है।
3. पौधों में जंतुओं की अपेक्षा श्वसन की गति धीमी हेती है।

जंतुओं में श्वसन

एककोशिकीय जीव जैसे अमीबा, पैरामीशियम में श्वसन कोशिका झिल्ली से विसरण विधि द्वारा होता है।
बहुकोशिकीय जीव हाइड्रा में श्वसन गैसों का आदान-प्रदान शरीर की सतह से विसरण के द्वारा होता है।
उच्च श्रेणी के जंतुओं में समान्यतः तीन प्रकार के श्वसन अंग होते हैं-
1. श्वासनली या ट्रैकिया 2. गिल्स तथा 3. फेफड़े
1. श्वासनली या ट्रैकिया- ट्रैकिया द्वारा श्वसन किटों, जैसे टिड्डा तथा तिलचट्टा में होता है।
2. गिल्स- गिल्स विशेष प्रकार के श्वसन अंग हैं जो जल में घुलित ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं। श्वसन के लिए गिल्स का होना मछलियों के विशेष लक्षण है। मछलीयों में गिल्स द्वारा श्वसन होता है।
3. फेफड़ा- वर्ग एंफीबिया (जैसे मेढ़क) में फेफड़े के अतिरिक्त त्वचा तथा गिल्स से भी श्वसन होता है।
रेप्टीलिया (जैसे सर्प, लिजर्ड, कछुआ तथा मगरमच्छ) तथा उच्चतम श्रेणी के वर्टिब्रेटा जैसे एवीज (पक्षी) तथा मैमेलिया (जैसे मनुष्य) में श्वसन सिर्फ फेफड़ों से होता है।
श्वसन अंग- मनुष्य में नासिका छिद्र, स्वरयंत्र या लैरिंक्स, श्वासनली या ट्रैकिया तथा फेफड़ा मिलकर श्वसन अंग कहलाते हैं।
मानव का श्वसन मार्ग- मानव जब श्वसन करता है तो वायु जिस मार्ग का अनुसरण करती है तो उस मार्ग को ही श्वसन मार्ग कहा जाता है।
श्वसन मार्ग निम्नलिखित है-
1. नासिका छिद्र
2. ग्रसनी
3. स्वरयंत्र
4. श्वासनली
5. ब्रोंकाई (श्वसनिय)
6. ब्रोंकीयोलस (श्वसनिका)
7. वायुकोष
8. रूधिर
9. कोशिका
डायफ्राम- यह वक्ष गुहा के नीचे तथा उदर गुहा के ऊपर पाया जाता है। यह संयोजी ऊतक का बना होता है। निःश्वसन में यह 75 प्रतिशत योगदान करता है।
डायफ्राम टूट जाने पर व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है।
1. नासिका छिद्र- नाक का भाग होता है, इसी भाग से वायु अन्दर जाती है।
2. ग्रसनी- यह नासिका छिद्र के नीचे और मुखगुहा के पीछे पाया जाता है। इस मार्ग से भोजन और वायु दोनों जाते हैं।
3. स्वरयंत्र- ग्रसनी कंठद्वार के ठीक नीचे एक छोटी रचना स्वरयंत्र में खुलती है। यह ग्रसनी के ठीक नीचे पाया जाता है। यह आवाज निकालने में सहायक होता है।
फेफड़ा- यह मानव के वक्षगुहा में पाया जाता है। यह मानव का मुख्य श्वसन अंग है। इसकी संख्या दो होती है। यह प्लूरल मेम्ब्रेन नामक झिल्ली द्वारा ढ़का होता है। फेफड़ा का कार्य रक्त को शुद्ध करना होता है अर्थात फेफड़ा रक्त में ऑक्सीजन मिलाकर उसे शुद्ध करता है।
4. श्वासनली- इसके द्वारा वायु फेफड़े के अंदर जाती है। ट्रैकिया या श्वासनली आगे चलकर दो भागों में विभाजित हो जाती है, जिसे ब्रोंकाई कहते हैं। ब्रोंकाई आगे जाकर कई शाखाओं में विभाजित हो जाती है, जिसे ब्रोंकियोलस या श्वसनिका कहते हैं।
7. वायुकोष- श्वसनिका फेफड़े के अंदर पतली शाखाओं में बँट जाती है। ये शाखाएँ छोटी-छोटी गोल संरचना में विभाजित होती है। जिसे वायुकोष कहते हैं।
वायुकोष की संख्या 300,000,000 होती है।
श्वसन क्रिया- श्वसन दो क्रियाओं का सम्मिलित रूप है। पहली क्रिया में हवा नासिका से फेफड़े तक पहुँचती है जहाँ इसका ऑक्सीजन फेफड़े की दीवार में स्थित रक्त कोशिकाओं के रक्त में चला जाता है। इस क्रिया को प्रश्वास कहते हैं।
इसके विपरित, दूसरी क्रिया उच्छ्वास कहलाती है जिसके अंतर्गत रक्त से फेफड़े में आया कार्बन डाइऑक्साइड बची हवा के साथ नासिका से बाहर निकल जाता है।
श्वसन की दो अवस्थाएँ प्रश्वास तथा उच्छ्वास मिलकर श्वासोच्छ्वास कहलाती है।
फेफड़े में श्वसन गैसों का आदान-प्रदान- शरीर के विभिन्न भागों से ऑक्सीजनरहित रक्त फेफड़ा में पहुँचता है। रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से संयोग करके ऑक्सीहीमोग्लोबिन में परिवर्तित हो जाता है जो रूधिर परिसंचरण के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों तक कोशिकाओं में पहुँच जाता है। हीमोग्लोबीन ऑक्सीजन कोशिकाओं के दे देता है और कार्बनडाइऑक्साइड को अपने साथ बाँध लेता है। जो कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन कहलाता है। कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन परिसंचन के माध्यम से फेफड़े में पहुँच जाता है। कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन अर्थात रक्त में घुला हुआ कार्बनडाइऑक्साइड फेफड़े के द्वारा नासिका से बाहर निकल जाता है। Swasan class 10 notes in Hindi

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