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2. राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद (सूरदास के पद) | cbse class 10 Hindi Ram laxman parshuram samvad (tulsidas ke pad)

November 20, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के पद्य भाग के पाठ दो ‘तुलसीदास के पद (राम लक्ष्‍मण परशुराम संवाद) कक्षा 10 हिंदी’ (cbse class 10 Hindi Ram laxman parshuram samvad (tulsidas ke pad class 10)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। cbse class 10 Hindi Ram laxman parshuram samvad

cbse class 10 Hindi Ram laxman parshuram samvad

राम-लक्ष्मण परशुराम संवाद
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा!।
आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही।।
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरिकरनी करि करिअ लराई।।
सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा। सहसबाहु सम सो रिपु मोरा!।
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा।।

अर्थ- परशुराम के गुस्सा को देखकर श्री राम बोलते है-हे नाथ। शिवजी के धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा, क्या आज्ञा है। यह सुनकर मुनी गुस्सा होकर बोलते है सेवक वह होगा है जो सेवा करे। दुश्मन से तो लड़ाई ही होगी। हे राम सुनो जो भी शिवजी के धनुष को तोड़ा है वह मेरा दुश्मन (शत्रु) है जिस तरह सहस्त्र बाहु मेरा दुश्मन था वो कहते है जिसने भी धनुष तोड़ा है वह सामने आ जाए नहीं तो सभी राजा को मार दिया जाएगा।

सुनि मुनिबचन लखन मुसुकाने। बोले परसुधरहि अवमाने।।
बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिस कीन्हि गझाई।।
येहि धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू।।
रे नृपबालक कालबस बोलत तोहि न सँभार।
धनुही सम त्रिपुरारिधनु बिदित सकल संसार।।

अर्थ- परशुराम के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराते हुए उनका अपमान करते हुए कहते हैं कि हमने बचपन से बहुत सी धनुहियाँ तोड़ डाली है ,लेकिन आपने ऐसा गुस्सा कभी नहीं किया आपका इसी धनुष पर इतनी ममता क्यों है ? यह सुनकर परशुराम जी क्रोधित (गुस्सा) होकर कहते है ओ रे राजपत्रु ,काल के वश में होकर भी तुम्हे बोलने कुछ होश है कि नहीं। सारे संसार मे विख्यात शिवजी का यह धनुष क्या धनुहीं के समान है।

लखन कहा हँसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।।
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के भोरें।।
छ अत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू।।
बोले चितै परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा।।

अर्थ- लक्ष्मणजी हँसकर कहते है हे देव। सुनिए हम तो जानते थे कि सभी धनुष तो एक ही जैसे है इसमे से पुराने धनुष को तोड़ने में क्या हानि लाभ। श्री रामचन्द्र जी ने तो इसे सिर्फ इसे उठाया लेकिन यह तो श्रीराम के छुते ही टुट गया इसमे इनका कोई दोष नहीं है । इसलिए  मुनी आप बिना कारण क्यों गुस्सा हो रहें है ? परशुरामजी अपने फरसे की ओर देखते हुए कहते है ओरे दुष्ट तुने स्वभाव नहीं देखा है ।

बालक बोलि बधौं नहि तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही।।
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।।
भजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।।
सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।

अर्थ- मैं तुम्हे बालक समझकर नहीं मारता हुँ। ओरे मूर्ख। क्या तुम मेरा गुस्सा नहीं जनता हैं मै बाल ब्रह्राचारी और बहुत ही गुस्सा में हुँ/ बहुत गुस्सा वाला हुँ। मै तो क्षत्रियकुल का शत्रु हूँ मैनें अपने भुजाओ के बल पर सारे राजाओ को मार दिया था। मैनेज पृथ्वी के सारे राजाओ को मारकर ऋषियों यानी उसके बाद पृथ्वी पर ब्रहामणेां का राज हुआ करता था। मैने उसे भी मार डाला जिसके हजार बाँहे थी। मेरे पास जो फरसा है उसी फरसे से मैने सभी को मार डाला। हे राजकुमार तुम अपने माता-पिता के बारे में सोंचो वो इस दुःख को नहीं झेल पाऐंगे कि मेरा पुत्र मारा गया मेरा फरसा इतना भयानक है कि माँ के पेट में पल रहे बच्चा भी मर जाता है।

बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।।
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं ।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहौं रिस रोकी।।
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई।।

अर्थ- लक्ष्‍मणजी हँसकर बोलते हैं मुनी जी आप अपने आप को बहुत बड़ा योद्धा बता रहे हैं। हमे बार-बार अपना कुल्‍हारी दिखा रहे हैं। आप फूँक से पहाड़ को उड़ाना चाह रहे हैं। यहाँ पर कोई भी कुम्‍हड़े की फूल की बतिया नहीं है जो बिचली उंगली को देखकर मर जाता है।
मैं आपके धनुष, कटाल, कुल्हारी से नहीं डरता जो आप बार-बार इसे हमें दिखा रहे हैं। मैने आपका धनुषबान ये सब देखकर ही बोला है। आपको भृगवंशी समझकर और जनेउ धारण कर आपने किया है। इसलिए हमने अपने क्रोध को रोककर रखा है। हमारे वंश में सूर,असूर हरिजन और गायें पर वार नहीं करे। ऐसा करने पे हमारे कुल की बदनामी होती है।

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बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहू पा परिअ तुम्हारें।।
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि बोले गिरा गंभीर।।

अर्थ- क्योंकि इन्हे मारने से पाप लगता है। और इनसे हार जाने पर ही भला है। अगर वो मारे भी, तो भी अपमान होगा। उनका एक-एक वचन ही कड़ो विशाल शक्तियों के समान है। धनुष-वाण तो आप बिना कारण ही पकड़ते है। और इन्हे देखकर मैने कुछ कह ही दिया तो क्या हुआ। कृप्या मझे महामुनी! माफ कर दीजीए। यह सुनकर भृगुवंशमणि परशुराम गुस्सा होने के साथ गंभीर वाणी में बोले।

कौसिक सुनहु मंद येहु बालकु। कुटिलु कालबस निज कुल घालकु।।
भानुबंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुसु अबुधु असंकू।।
कालकवलु होइहि छन माहीं। कहौं पुकारि खोरि मोहि नाहीं।।
तुम्ह हटकहु जौ चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा।।
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा।।

अर्थ- हे विश्वामित्र! सुनो, यह बच्चा को अकल नहीं है। ये अपने बुद्धी न होने के कारण अपने ऊपर काल को बुला रहा है यह अपने वंश का भी नाश करेगा। ये सुशंखी होते हुए चंदा में लगे दाग के समान है। यह बिल्कुल शरारती, मुर्ख और निडर है। यह  क्षण भर में मारा जाएगा हमसे, मैं पुकारकर कह देता हुँ कि ये इतना बोल रहा है तो मैं इसे क्षण भर में मार दुँगा तो मुझे दोष मत देना। अगर तुम इसे बचाना चाहते हो तो तुम इसको बताओ कि मेरा प्रताप, बल (शक्ति) और गुस्सा कितना है। लक्ष्मणजी बोलते है हे मुनि आपके अलावा आपके बारे में कोई बता नहीं सकता आपके यश को कोई और नहीं बता सकता आपके अलावा।

अपने मुह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।
नहि संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू।।
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा।।
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।

अर्थ- परशुरामजी से लक्ष्मणजी कहते हैं आप अपने मुँह से अपनी हीं बड़ाई कर रहे हैं। बार-बार अपने कर्म अपनी करनी को बता रहे है। इतने पर भी आपको संतोष नही मिल पा रहा है तो आप और कहिए जितना भी कहना है वो कह डालिए। मैं आपका क्रोध को जान रहा हूँ। आप अपने क्रोध को मत रोकिए अपने अंदर ही अंदर मन में दुःख मत सहिए। आप विरता का व्रत धारण करते है। लेकिन आप किसी को माफ भी तो नहीं करते। आपको गाली देना शोभा नहीं देता है। शुरवीर को शुरता युद्ध के मैदान में शोभा देती है। आप शुरवीर है तो युद्ध के मैदान में जाइए और वहाँ वीरता दिखाइए। शत्रु को युद्ध के के मैदान में देखकर कायर ही अपना बखान करता है। मै आपसे युद्ध करने के लिए तैयार हुँ और आप अपना बखान करने के लिए तैयार है जब शत्रु सामने है तो लडाई करिए ये बात लखन जी बोलते हैं। शत्रु जब सामने हो तो युद्ध करिए लेकिन आप तो यहाँ बाते कर रहे हैं।

तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोग।।
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साध।।

अर्थ- आप तो मानो बार बार काल को हाँककर मेरे पास बुला रहे है के आओ और उसके पिछे लगो लक्ष्मणजी के कठोर वचन को सुनकर परशुरामजी ने फरसे को सुधारकर अपने हाथ में ले लिया अब लोग मुझे दोष दे इस कड़वे बोलने वालक को अगर मैने मार दिया तो लोग मुझे दोष नही देना इस बच्चा को देखकर मैने बहुत बचाया मै बच्चा समझक इसे छोड़ता जा रहा हूँ लेकिन ये तो सचसुच मरने के लिए आ गया है विश्वामित्र जी कहते है अपराध क्षमा किजिए साधु लोग छोटे बच्चो के दोष और गुण यानी अच्छे काम और गलतियों को नहीं गिनतें। और साधु उसे राजा (दंड) नहीं देते है।

खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
उतर देत छोडौं बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे।।
गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।

अर्थ- परशुरामजी बोलते है तीखी धार का कुठार दिखाते हुए मैं दयारहित और क्रोधी यह गुरूद्रोही और अपराधी मेरे सामने जवाब दे रहा है। इतना सब करने पर भी मैं इसे बिना मारे ही छोड़ दे रहा हुँ। हे विश्रृमित्र सिर्फ तुम्हारे प्रेम (प्यारे) से, नही तो इसे इस कठोर (मजबुत) कुठार से काटकर थोड़े परिश्रम से गुरू से उक्रण हो जाता। फिर विश्रृमित्रजी हँसकर कहते है और क्षमा माँगते हैं। ये जो बच्चा है अब ये बेसमझ बच्चा है इसके कही बात से आप इतना गुस्सा मत होइए।

कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा।।
माता पितहि उरिन भये नीकें। गुररिनु रहा सोचु बड़ जी के।।
सो जनु हमरेहि माथें काढ़ा। दिन चलि गये ब्याज बड़ बाढ़ा।।
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा।।

अर्थ- लक्ष्मणजी कहते है, हे मुनी आपके प्रेम प्यार को सभी जानते है कौन नहीं जानता है ये तो दुनियाभर में मशहुर है। आप अपनी माता-पिता के सभी अच्छे कामो को करके उक्रण (उनके ऋण को चुका दिए है ) हो गए है। अब आपके पास गुरू का ऋण चुकाना बाकि है। जिसके बारे में आप सोंच रहे है वो आपके माथे पर चढ़ा हुआ है कि कैसे चुकाए। जैसे-जैसे दिन बढ़ रहा है वैसे-वैसे ब्याज भी बढ़त ही जा रहा है। अब आप हिसाब-किताब पर आ गए है। आप अभी हिसाब किजिए मै अभी थैली खोलकर दे देता हूँ। लक्ष्मणजी के कड़वे शब्द मे वचन सुनकर परशुरामजी अपने कुठार को संभाल लेते है। यह सुनकर सभा के सभी लोग हाय-हाय पुकारने लगते है।

भृगुबर परसु देखाबहु मोही। बिप्र बिचारि बचौं नृपद्रोही।।
मिले न कबहूँ सुभट रन गाढ़े। द्विजदेवता घरहि के बाढ़े।।
अनुचित कहि सबु लोगु पुकारे। रघुपति सयनहि लखनु नेवारे।।
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।

अर्थ- लक्ष्मणजी कहते है-हे भृगुश्रेष्ट आप मुझे अपना फरसा (वार करने का सामान) दिखा रहे है पर हे राजाओं के दुश्मन। मैं आपको व्राह्ममण समझकर बचा रहा हूँ। आपको आजतक कभी भी कोई वीर नहीं मिला है। ब्रह्ममण देवता आप घर के बड़े होंगे। यह सुनकर सभी अनुचित है, कह कहकर सब लोग पुकारने लगते हैं। तब श्री रघुनाथजी इशारे से लक्ष्मणजी को रोक देते है। लक्ष्मणजी के जवाब से जो आहुति के तरह, परशुरामजी के गुस्सा के रूप में बढ़ते देखकर रघुकुल के सूर्य श्री रामचंद्रजी पानी के समान शांत करने वाले एक वचन बोले।cbse class 10 Hindi Ram laxman parshuram samvad

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Class 10 Hindi Ek Kahani Yah bhi Summary Notes Solutions | एक कहानी यह भी का हिंदी व्‍याख्‍या और सारांश

October 31, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में हमलोग सीबीएसई बोर्ड के हिन्‍दी के गद्य भाग के पाठ चौदह ‘एक कहानी यह भी’ (cbse class 10 Hindi Ek Kahani Yah bhi Summary Notes Solutions)  के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Ek Kahani Yah bhi Summary

पाठ-12
एक कहानी यह भी
लेखक – मन्‍नू भंडारी

पाठ का सारांश

लेखिक ने अपने जन्म स्थान भानपुरा गाँव, जिला मध्यप्रदेश के राजस्थान में अजमेर के ब्रहमपुरी मोहल्ले के दो मंजिले मकान से जुड़ी हर बातों को याद किया है। इन्हीं मकानों में किताबों और अखबारों के बीच उनके पिता कुछ लिखते रहते थे या डिक्टेशन देते रहते थे। और बाकी के नीचे की कमरे में उनकी माँ, भाई-बहन बाकि घर के और लोग रहते थे।

लेखिका के पिता अजमेर आने से पहले मघ्य प्रदेश के इंदौर में रहते थे। वह बहुत से सामाजिक संगठनों से भी जुड़े थे। उन्होंने शिक्षा का केवल उपदेश ही नहीं दिया बल्कि बहुत से बच्चों को अपने घर पर बुलाकर पढ़ाया लिखाया भी। जिसमें से कई बच्चें ऊँचे-ऊँचे पद पर पहुँचे। लेखिका ने यह सब बाते तब सुनी थी जब उनके खुशी के दिनों की बात है।

लेखिका का यह मानना था कि उनके पिताजी एक अंदर से टूटे हुए व्यक्ति थे। जो कि बड़े आर्थिक झटके की वजह से इंदौर से अजमेर आ गए। उन्होंने अपने बलबुते पर अधुरे अंग्रेजी शब्दकोश को पुरा कर रहे थे। लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।

NCERT/CBSE Class 10th Hindi Ek Kahani Yah bhi Summary Notes

लेखिका को यह पता चलता है कि उनकी व्यक्तित्व में उनकी पिता कि कुछ कमियाँ ओर खुबियाँ तो जरूर आ गई होंगी। लेखिका का रंग काला है और बचपन में वह दुबली और मरियली सी थी। उनके पिता को गोरा रंग बहुत पसंद था। इसी के वजह से लेखिका से दो की बड़ी उसकी बहन थी जिसके साथ उसका तुलना किया जाता था। जिस वजह से लेखिका के मन में हीन भावना उत्पन्न हो गई जा आज तक है। उसी कारण आज जब भी लेखिका की प्रसंसा होती है, उनको मान सम्मान प्रतिष्ठा मिलती है तो लेखिका संकोच से सिमटने और गड़ने लगती है।

लेखिका की माँ एक अनपढ़ महिला थी। लेखिका की माँ का स्वभाव अपने पति जैसा नहीं था। वो अपने पति के क्रोध को चुपचान सहते हुए खुद को घर के कामों में व्यस्थ रखती थी। अनपढ़ होने के बाद भी लेखिका की माँ बहुत ही सहनशील थी। इसलिए वह अपने पति के हर अत्याचार को अपना भाग्य समझकर सहती थी। उन्होंने अपने परिवार से कभी कुछ नहीं माँगा, बल्कि जहाँ तक हो सके सिर्फ दिया हीं दिया है। उसी कारण से लेखिका आज तक उन्हें आदर्श के रूप में स्वीेकार न कर सकी।

लेखिका पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। जब उनकी बड़ी बहन सुशीला की शादी हुई तो लेखिका लगभग सात साल की थी। उन्होंने अपनी बड़ी बहन के साथ लड़कियों के सारे खेल खेले, उन्होंने लड़को के भी कुछ खेल खेले है। घर पर भाईयों के रहने के वजह से वह ज्यादा लड़को वाले खेल नहीं खेल पाई। उस समय आज की तरह पास-पड़ोस की दायरा आज की तरह नहीं थी। आज तो हर व्यक्ति अपने आप में ही सिमट के रह जाते है। पास-पड़ोस की कई यादे कई बार पात्रों के रूप में लेखिका की आरंभिक रचनाओं में आ गई हैं।

1944 में लेखिका की बड़ी बहन की शादी हो गई और वह कोलकŸाा चली गई। उसके दोनों भाई भी पढ़ने के लिए कोलकता चले गए। उसके बाद लेखिका के पिताजी का ध्यान लेखिका पर गया।

लेखिका के पिताजी ने उनसे घर के काम-काज में दूर रहने को कहा जाता है। क्योंकि वह मानते थे कि रसोई के काम का अर्थ अपनी प्रतिभा को भट्टी में झोकना था। इनके पिताजी के पास कई लोग मिलने के लिए आते थे। लेखिका जब चाय लेकर जाती थी तो उनके पिताजी उन्हें अपने पास बैठा लेते थे ताकि उन्हें भी पता चले कि देश दुनिया में क्या हो रहा है।

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1945 में लेखिका हाई स्कुल पास करके सावित्री गल्र्स हाईस्कूल में फस्र्ट इयर में प्रवेश लिया। वहाँ उनका परिचय शीला अग्रवाल से हुआ। जो काॅलेज की प्राध्यापिका थी। प्राध्यापिका ने उन्हें साहित्य से परिचय कराया तथा साहित्य में रूचि जगाई। लेखिका ने साहित्य के माध्यम से देश की स्थितियों को जानने-समझने लगी। जिस कारण वह स्वाधीनता आंदोलन में भी हिस्सा लेने लगी।

1947 के मई माह में प्राध्यापिका शीला अग्रवाल को काॅलेज प्रशासन ने अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर नोटिस दिया, जिनमें लड़कीयों को भड़काने और अनुशासन भंग करने में सहयोग करने का आरोप लगाया गया था। इसके अलावा थर्ड ईयर की क्लासेज बंद करके लेखिका और एक दो अन्य लड़कीयों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई। इस को लेकर लड़कीयों ने काॅलेज के बाहर खुब प्रदर्शन किया। बाद में काॅलेज को थर्ड ईयर की क्लासेज फिर से शुरू करनी पड़ी। उस समय इस खुशी से भी बड़ी खुशी लेखिका को देश को स्वाधीनता मिल जाने की हुई थी।

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Haar Jeet class 12 bhawarth & Objective | हार-जीत कविता का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ

October 13, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ बारह हार-जीत (Haar Jeet class 12 bhawarth & Objective)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Haar Jeet class 12 bhawarth & Objectivevvvv

12. हार-जीत
कवि- अशोक वाजपेयी

लेखक-परिचय
जन्म : 16 जनवरी 1941
जन्मस्थान : दुर्ग, छतीसगढ़
माता-पिता : निर्मला देवी और परमानंद वाजपेयी
शिक्षा: गवर्नमेंट हायर सेकेंडी स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा, सागर विश्वविद्यालय से बी.ए। सेंट स्टीफेंस कॉलेज दिल्ली से अंग्रेजी में एम.ए।

वृति :- भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी
सम्मान- साहित्य अकादमी पुरस्कार, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान
कृतियाँ : कहीं नहीं वहीं, एक पतंग अनंत में, शहर अब भी संभावना है, थोड़ी सी जगह, आविन्यों, फिलहाल तीसरा साक्ष्य, बहुरि अकेला।

12.  हार-जीत

वे उत्सव मना रहे हैं | सारे शहर में रोशनी की जा रही है | उन्हें बताया गया है कि
उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं |

प्रस्तुत पंक्तियाँ हार-जीत शीर्षक गद्य कविता से ली गई है जिसके रचनाकार अशोक वाजपेयी है। इन पंक्तियों में कवि ने राजनीतिक झूठ को उजागर किया है। कवि कहते है नेता जनता को दिग्भ्रमित करते है और उन्हे वास्तविकता से दूर करते है। वाजपेयी जी ने इस कविता में जनता और शासक का सही चित्रण प्रस्तुत किया है। शासक वर्ग भोली-भाली जनता को गुमराह करके खुद सुख भोगती है। कवि ने जनता को जागरूक करने का प्रयास किया है ।

नागरिकों में से ज़्यादातर को पता नहीं है कि किस युद्ध में उनकी सेना और शासक गए थे, युदध किस बात पर था | यह भी नहीं कि शत्रु कौन था पर वे विजयपर्व मनाने की तैयारी में व्यस्त है | उन्हे सिर्फ इतना पता है कि उनकी विजय हई | उनकी से आशय क्या है यह भी स्पष्ट नहीं है।

प्रस्तुत पंक्तियाँ हार-जीत शीर्षक गद्य कविता से ली गई है जिसके रचनाकार अशोक वाजपेयी है। इन पंक्तियों में कवि ने राजनीतिक झूठ को उजागर किया है। कवि कहते हैं कि भोली-भाली जनता को बताया जाता है कि युद्ध में उनकी सेना विजयी होकर लौट रही है जबकि शहर के नागरिकों को ये भी पता नहीं कि ये युद्ध किनके बीच हो रहा है। युद्ध के होने का कारण क्या था। कवि कहना चाहते हैं कि सत्ताधारी लोग जनता को वास्तविकता से दूर रखते हैं लोगो को तो पता ही नहीं कि आखिर युद्ध किससे हो रहा है। जनता को यहीं बताया जाता है कि उनकी विजय हुई है।

किसकी विजय हुई सेना की, कि शासक की, कि नागरिकों की ? किसी के पास पूछने का अवकाश नहीं है | नागरिकों को नहीं पता कि कितने सैनिक गए थे और कितने विजयी वापस आ रहे हैं।

प्रस्तुत पंक्तियाँ हार-जीत शीर्षक गद्य कविता से ली गई है जिसके रचनाकार अशोक वाजपेयी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने राजनीतिक झूठ को उजागर किया है। कवि कहते हैं कि भोली-भाली जनता को बताया जाता है कि युद्ध में उनकी सेना विजयी हुई है। लेकिन जनता को यह भी पता नहीं कि विजय सेना कि है या शासक की या नागरिकों की। यह बात पूछने के लिए किसी के पास समय भी नहीं है। नागरिकों को यह भी नहीं पता की कितने सैनिक गए थे और कितने वापस आ रहे हैं।

खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है | सिर्फ एक बूढ़ा मशकवाला है जो सड़कों को सींचते हए कह रहा है कि हम एक बार फिर हार गए हैं और गाजे-बाजे के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। उस पर कोई ध्यान नहीं देता है और अच्छा यह है कि उस पर सड़कें सींचने भर की जिम्मेवारी है, सच को दर्ज करने या बोलने की नहीं।

प्रस्तत पंक्तियाँ हार-जीत शीर्षक गद्य कविता से ली गई है जिसके रचनाकार अशोक वाजपेयी हैं। इन पंक्तियों में कवि ने राजनीतिक झूठ को उजागर किया है। कवि कहते हैं कि खेतों में रहने वाले अर्थात श्रमिक,मजदूर जिन्होंने आजादी में अपना योगदान दिया उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। बूढ़ा मशकवाला सड़कों को सींचते हुए देश के बुद्धिजीवी वर्ग की ओर से कहता है कि हमलोग एक बार फिर हार गए हैं और गाने-बाजे के साथ जीत नहीं हार लौट रही है। लेकिन उस पर कोई ध्यान नहीं देता और अच्छा है क्योंकि वह राजनीति की ज़िम्मेदारी से मुक्त है।

जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे है |

Haar Jeet class 12 bhawarth & Objective

प्रस्तुत पंक्तियाँ हार-जीत शीर्षक गदय कविता से ली गई है जिसके रचनाकार अशोक वाजपेयी है। इन पंक्तियों में कवि ने राजनीतिक झूठ को उजागर किया है। लेखक के अनुसार शासक और सत्ताधारी वर्ग कभी भी अपनी हार की घोषणा नहीं करता है। वह अपनी हार को भी विजय के रूप में प्रस्तुत करता है तथा जनता को यह स्वीकार करने के लिए विवश करता है कि वह उसे बलवान और समर्थवान समझे।

12. हार-जीत : अशोक वाजपेयी

प्रश्न1. कवि अशोक वाजपेयी का कब जन्‍म हुआ था?
(क)   14 जनवरी, 1939
(ख)   15 जनवरी, 1940
(ग)   16 जनवरी, 1941
(घ)   17 जनवरी, 1942

उत्तर- (ग)   16 जनवरी, 1941   

प्रश्न 2. कवि अशोक वाजपेयी का जन्‍म-स्‍थान कहाँ है?
(क)   लघु दुर्ग, गुजरात
(ख)   दीर्घ दुर्ग, उड़ीसा
(ग)   महादुर्ग, उत्तराखंड
(घ)   दुर्ग, छतीसगढ़

उत्तर- (घ)   दुर्ग, छतीसगढ़   

प्रश्न 3. कवि अशोक वाजपेयी के माता-पिता का नाम लिखें- 
(क)   पर्मला देवी एवं आनन्‍द वाजपेयी
(ख)   निर्मला देवी एवं परमानंद वाजपेयी
(ग)   ललनी देवी एवं नन्‍द वाजपेयी
(घ)   छलनी देवी एवं सुनन्‍द वाजपेयी

उत्तर-  (ख)   निर्मला देवी एवं परमानंद वाजपेयी 

प्रश्न 4. ‘हार-जीत‘ कविता के कवि का नाम बताएँ-
(क)   अरूण कमल
(ख)   अशोक वाजपेयी
(ग)   विनोद कुमार शुक्‍ल ज्ञानेन्‍द्रपति
(घ)   ज्ञानेन्‍द्रपति

उत्तर-  (ख)   अशोक वाजपेयी 

Haar Jeet class 12 bhawarth & Objective

प्रश्न 5. अशोक वाजपेयी किस काल के कवि हैं?
(क)   भक्तिकाल
(ख)   छायावाद काल के
(ग)   रीतिकाल के
(घ)   आधुनिक काल के

उत्तर-  (घ)   आधुनिक काल के 

प्रश्न 6. ‘हार-जीत‘ गद्य-कविता किस पुस्‍तक से उदृधृत है?
(क)   विवक्षा
(ख)   उम्‍मीद का दूसरा नाम
(ग)   समय के पास समय
(घ)   ‘कही नहीं वहीं’

उत्तर- (घ)   ‘कही नहीं वहीं’   

प्रश्न 7. किस कवि ने लिखा है-‘खेत रहने वालों की सूची अप्रकाशित है ।‘
(क)   गजानन माधव मुक्तिबोध
(ख)   अशोक वाजपेयी
(ग)   नागार्जुन
(घ)   निराला

उत्तर- (ख)   अशोक वाजपेयी   

प्रश्न 8. ‘खेत रहना शब्‍द का अर्थ है?
(क)   खेत में रात्रि विश्राम
(ख)   मारा जाना
(ग)   खेत में निवास करना
(घ)   खेत की हेंगाई-जोताई करना

उत्तर-  (ख)   मारा जाना 

प्रश्न 9. कवि अशोक वाजपेयी ने कौन-सा स्‍तंभ-लेखन का कार्य किया था?
(क)   ‘कभी-कभार’
(ख)   ‘बेखटक दास का चिट्ठा’
(ग)   ‘चुटकुला नन्‍द की चिट्ठी’
(घ)   इनमें से कोई नहीं

उत्तर- (क)   ‘कभी-कभार’   

प्रश्न 10. कवि अशोक वाजपेयी ने कौन साहित्‍य पत्र सम्‍पादन किया था?
(क)   ‘समवेत’, ‘पहचान’
(ख)   ‘पूर्वग्रह’, ‘बहुवचन’, ‘कविता एशिया’
(ग)   ‘समास’
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर- (घ)   उपर्युक्‍त सभी  

प्रश्न 11. किस पाठ में आया है-”किसकी विजय हुई सेना की, कि नागरिकों की?‘
(क)   हार-जीत
(ख)   अधिनायक
(ग)   गाँव का घर
(घ)   जन-जन का चेहरा एक

उत्तर- (क)   हार-जीत

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Pyare Nanhe Bete ko class 12 bhawarth & Objective | प्‍यारे नन्‍हें बेटे को कविता का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ

October 13, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ ग्‍यारह ‘प्‍यारे नन्‍हें बेटे को (Pyare Nanhe Bete ko class 12 bhawarth & Objective)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Pyare Nanhe Bete ko class 12 bhawarth & Objective

11. प्‍यारे नन्‍हें बेटे को
कवि- विनोद कुमार शुक्‍ल

लेखक-परिचय
जन्म : 1 जनवरी 1937
जन्मस्थान : राजनांदगाँव (छतीसगढ़)
वृति : इन्दिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर।
सम्मान : रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992), दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (1997), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999)
कृतियाँ : लगभग जयहिंद (प्रथम कविता संग्रह), वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह (1981), सबकुछ होना बचा रहेगा (1992), अतिरिक्त नहीं (2001), नौकर का कमीज, पेड़ पर कमरा

प्यारे नन्हें बेटे को
कंधे पर बैठा
मैं दादा से बड़ा हो गया
सुनना यह |
प्यारी बिटिया से पूछंगा–
बतलाओ आसपास
कहाँ-कहाँ लोहा है
चिमटा,करकुल सिगड़ी
समसी दरवाजे की साँकल कब्जे
खिला दरवाजे में फँसा हआ
वह बोलेगी झटपट

प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ‘प्यारे नन्हें बेटो को’ से ली गई है जिसमें कवि ने अपने नन्हें बेटे को कंधे पर बैठाया है। बेटा कहता है कि वह अब दादा से भी बड़ा हो गया है।
कवि प्यारी बिटिया से पूछता है कि बताओ हमारे आसपास लोहा कहाँ है ? बिटिया झटपट बोलेगी लोहा चिमटा, करछुल, लोहे की कड़ाही, सँड़सी, दरवाजे की जंजीर और दरवाजे में लगे कब्जे में है लोहा दरवाजे में लगी मोटी कांटी में भी है।

Pyare Nanhe Bete ko class 12 bhawarth & Objective

रुककर वह फिर याद करेगी।
एक तार लोहे का लंबा
लकड़ी के दो खंबों पर
तना बधा हआ बाहर
सुख रही जिस पर
भैय्या की गीली चडडी !
फिर-एक सैफटी पिन साइकिल पूरी |
आसपास वह ध्यान करेगी
सोचेगी
दुबली पतली पर
हरकत में तेजी कि
कितनी जल्दी
जान जाए वह
आसपास कहाँ-कहाँ लोहा है |

प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई है जिसमें कवि अपनी प्यारी बेटी से पूछता कि आसपास लोहा कहाँ है और वह कुछ सोचकर जवाब देती है लकड़ी के दो खंभो पर तना बंधा तार लोहे का है जिसपर नन्हें भाई के गीले कपड़े सूख रहे हैं। इसके अलावा सेफ़्टी पिन और पूरी साईकिल लोहे की बनी है।
पुनः वह अपने आसपास ध्यान करेगी सोचेगी। वह शरीर से भले ही दुबली-पतली हो लेकिन वह सजग है। वह बहुत जल्द जान लेती है कि आसपास लोहा कहाँ हैं।

मैं याद दिलाऊँगा
जैसे सिखलाऊँगा बिटिया को
फावड़ा, कुदाली
टँगिया, बसुला, खुरपी
पास खड़ी बैलगाड़ी के
चक्‍के का पट्टा,
बैलों की गले में
काँसे की घंटी के अंदर
लोहे की गोली।
पत्नी याद दिलाएगी
जैसे समझाएगी बिटिया को
बाल्टी सामने कुएं में लगी लोहे की घिर्री
छत्ते की काड़ी-डंडी और घमेला
हँसिया चाकू और
भिलाई बलाडिला
जगह जगह लोहे के टीले |

प्रस्तत पंक्तियाँ विनोद कमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई है जिसमें कवि अपनी प्यारी बेटी को याद दिलाता है कि फावड़ा, कुदाल, टंगीया, बसुला और खुरपी सब लोहा है। पास खड़ी बैलगाड़ी के चक्के का पट्टा और बैलों के गले में काँसे की घंटी के अंदर लोहे की गोली है।
पुनः लेखक की पत्नी याद दिलाती है जैसे अपनी प्यारी बेटी को समझाती हो कि बाल्टी और सामने के कुएँ में लगी लोहे की घिरनी, छते की काड़ी, डंडी और घमेला, हंसियाँ, चाकू सब लोहा है। भिलाई और बलाडिला में जगह-जगह लोहे के टीले है।

Pyare Nanhe Bete ko class 12 bhawarth & Objective

इसी तरह
घर भर मिलकर
धीरे धीरे सोच सोचकर
एक साथ ढूँढेंगे
कहाँ-कहाँ लोहा है-
इस घटना से
उस घटना तक
कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश
लोहा है

प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई है जिसमें कवि अपनी प्यारी बेटी से कहते हैं कि घर के सभी लोग मिलकर सोचेंगे और एक साथ ढूँढ़ेंगे कि लोहा कहाँ-कहाँ है। कवि को महसुस होता है लोहा कदम-कदम पर व्याप्त है। कवि महसूस करता है कि हर वो व्यक्ति जो परिश्रम के सहारे अपनी जीविका चलता है लोहा है।

हर वो औरत
दबी सतायी
बोझ उठाने वाली, लोहा !
जल्दी जल्दी मेरे कंधे से
ऊंचा हो लड़का
लड़की का हो दुल्हा प्यारा
उस घटना तक
कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश
लोहा है
हर वो औरत
दबी सतायी
बोझ उठाने वाली लोहा |

प्रस्तुत पंक्तियाँ विनोद कुमार शुक्ल द्वारा रचित कविता ”प्यारे नन्हें बेटो को” से ली गई है जिसमें कवि अपनी प्यारी बेटी से कहते हैं कि वो प्रत्येक औरत जो अत्याचार सह रही है जो दुखों का बोझ उठा रही है लोहा है।

प्यारी बिटिया का पिता सोचता है कि उसका बेटा जल्दी से बड़ा हो जाए और उसकी लड़की को प्यारा-सा दूल्हा मिल जाए, जिसके साथ उसकी शादी हो सके। इस प्रकार कवि महसूस करता है कि हर वो व्यक्ति जो परिश्रम के सहारे अपनी जीविका चलता है लोहा है। जो सतायी जा रही है लोहा है।

11. प्‍यारे नन्‍हे बेटे को : विनोद कुमार शुक्‍ल

प्रश्र 1. क‍वि विनोद कुमार शुक्‍ल का कब जन्‍म हुआ था?
(क)   04 जनवरी, 1940
(ख)   01 जनवरी, 1937
(ग)   02 जनवरी, 1938
(घ)   03 जनवरी, 1939

उत्तर- (ख)   01 जनवरी, 1937   

प्रश्न 2. कवि विनोद कुमार शुक्‍ल का कहाँ जन्‍म हुआ था?
(क)   इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
(ख) इटारसी, मध्‍यप्रदेश  
(ग)   राजनादगाँव, छत्तीसगढ़
(घ)   लमही, उत्तर प्रदेश

उत्तर- (ग)   राजनादगाँव, छत्तीसगढ़   

प्रश्न 3. ‘प्‍यारे नन्‍हें बेटे को‘ शीर्षक कविता के कवि का नाम बताएँ-
(क)   विनोद कुमार शुक्‍ल
(ख)   ज्ञानेन्‍द्रपति
(ग)   अशोक वाजपेयी
(घ)   रघुवीर सहाय

उत्तर- (क)   विनोद कुमार शुक्‍ल   

Pyare Nanhe Bete ko class 12 bhawarth & Objective

प्रश्न 4. ‘प्‍यारे नन्‍हें बेटे को‘ कविता में लोहा किसका प्रतीक है?
(क)   धर्म का
(ख)   कर्म का
(ग)   मशीन का
(घ)   युद्ध का

उत्तर- (ख)   कर्म का   

प्रश्न 5. कवि प्‍यारे नन्‍हें बेटे से क्‍या प्रश्‍न करता है?
(क)   ‘बतलाओ आसपास कहाँ-कहाँ हीरा है ।’
(ख)  ‘बतलाओ आसपास कहाँ-कहाँ सोना है ।’
(ग)   ‘बतलाओ आसपास कहाँ-कहाँ लोहा है ।’
(घ)   ‘बतलाओ आसपास कहाँ-कहाँ लकड़ी ह।’

उत्तर- (ग)   ‘बतलाओ आसपास कहाँ-कहाँ लोहा है ।’   

प्रश्न 6. कवि विनोद कुमार शुक्‍ल को कौन-सा सम्‍मान मिला था?
(क)   रघुवीर सहाय स्‍मृति पुरस्‍कार (1992)
(ख)   दयावती मोदी कवि शेखर सम्‍मान (1997)
(ग)   साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार (1999)
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर-  (घ)   उपर्युक्‍त सभी 

प्रश्न 7. कवि विनोद कुमार शुक्‍ल के कविता-संग्रह का नाम बताएँ –
(क)   ‘लगभग जयहिंद’ (1971)
(ख)   चला गया विचार की तरह’ (1981)
(ग)   ‘सब कुछ होना बचा, रहेगा’ (1992) ‘अतिरिक्‍त नहीं (2001)
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर-  (घ)   उपर्युक्‍त सभी 

प्रश्न 8. ‘प्‍यारे नन्‍हें बेटे को‘ कविता किस संग्रह से ली गयी है?
(क)   ‘वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह’
(ख)   ‘सबकुछ होना बचा रहेगा’
(ग)   ‘अतिरिक्‍त नहीं’
(घ)   इनमें से कोई नहीं

उत्तर-(क)   ‘वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह’    

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Adhinayak class 12 bhawarth & Objective | अधिनायक कविता का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ

October 13, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ दस अधिनायक (Adhinayak class 12 bhawarth & Objective)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

10. अधिनायक
राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहने
जिसका गुन हरचरना गाता है

प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुबीर सहाय द्वारा लिखित कविता अधिनायक से ली गई है जिसके माध्यम से कवि कहते हैं कि पता नहीं राष्ट्रगीत में वह भाग्य विधाता कौन है जिसका गुणगान फटा सुथन्ना पहने हरचरना कर रहा है। इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी पता नहीं किसका गुणगान किया जा रहा है।

मखमल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चँवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है

प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुवीर सहाय द्वारा लिखित कविता अधिनायक से ली गई है जिसके माध्यम से कवि पूछते हैं कि मखमल के वस्त्र धारण किए हुए, टमटम पर सवार बल्लम, तुरही आदि राजसी प्रतिकों के साथ पगड़ी धारण किए हए सिर के ऊपर छाता और जिसके आगे-पीछे लोग चँवर हिला रहे है जो अपने स्वागत में तोपों की सलामी दिलवाता है और जो ढ़ोल-नगाड़े बजवाकर अपनी जय-जयकार करवा रहा है वह कौन है।

पूरब-पश्चिम से आते है
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है

प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुवीर सहाय द्वारा लिखित कविता अधिनायक से ली गई है जिसके माध्यम से कवि कहते हैं कि राष्ट्रीय त्योहारों पर सभी दिशाओ से जनता नंगे पाँव आती है। गरीबी के कारण वे कंकाल की तरह प्रतीत होते है। गरीब किसानों की कमाई जन प्रतिनिधियों द्वारा हड़प लिया जाता है और उनके अधिकारों का मेडल भी इनके द्वारा लिया जाता है। कवि पूछते हैं कि आखिर ये तमगे लगवाने वाला कौन है।

कौन-कौन है वह जन-गण-मन
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है |

प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुवीर सहाय द्वारा लिखित कविता अधिनायक से ली गई है जिसके माध्यम से कवि कहते हैं कि इस लोकतान्त्रिक देश में वह महाबली कौन है जो गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों के मन पर अपना अधिकार जमा रहा है। लोग ना चाहते हुए भी विवश मन से उसका गुणगान कर रहे है वह महाबली कौन है।

10. अधिनायक : रघुवीर स‍हाय

प्रश्न 1. कवि रघुवीर सहाय के पिता का नाम क्‍या था?
(क)   हरदेव सहाय
(ख)   हरहरदेव सहाय
(ग)   हरेराम सहाय
(घ)   राम प्‍यारे सहाय

उत्तर-   (क)   हरदेव सहाय

प्रश्न 2. ‘अशोक वाजपेयी‘ का मूल निवास कहाँ है?
(क)   सागर, मध्‍यप्रदेश
(ख)   महासागर, मद्रास
(ग)   हिन्‍द, हिन्‍द महासागर
(घ)   वाराणसी, उत्तर प्रदेश

उत्तर-   (ख)   महासागर, मद्रास

प्रश्न 3. ‘अधिनायक‘ शीर्षक कविता के कवि का नाम बताएँ-
(क)   रघुवीर सहाय
(ख)   ज्ञानन्‍द्रपति
(ग)   अशोक वाजपेयी
(घ)   विनोद कुमार शुक्‍ल

उत्तर- (क)   रघुवीर सहाय

Adhinayak class 12 bhawarth & Objective

प्रश्न 4. कवि रघुवीर सहाय का कहाँ जन्‍म हुआ था?
(क)   इटारसी, मध्‍यप्रदेश
(ख)   पटना, बिहार
(ग)   वाराणसी’ उत्तर प्रदेश
(घ)   लखनउ,उत्तर प्रदेश

उत्तर- (घ)   लखनउ,उत्तर प्रदेश

प्रश्र 5. कवि रघुवीर सहाय का कब जन्‍म हुआ था?
(क)   12 दिसम्‍बर, 1932
(ख)   09 दिसम्‍बर, 1929
(ग)   10 दिसम्‍बर, 1930
(घ)   11 दिसम्‍बर, 1931

उत्तर- (ख)   09 दिसम्‍बर, 1929

प्रश्न 6. कवि रघुवीर सहाय का मृत्‍यु कब हुआ था?
(क)   28 दिसम्‍बर, 1988
(ख)   29 दिसम्‍बर, 1989
(ग)   30 दिसम्‍बर, 1990
(घ)   31 दिसम्‍बर, 1991

उत्तर- (ग)   30 दिसम्‍बर, 1990

प्रश्न 7. ‘अधिनायक‘-कैसी कविता है?
(क) श्रृंगारिक
(ख)   व्‍यंग्‍यात्‍मक
(ग)   ऐतिहासिक
(घ)   उपदेशात्‍मक

उत्तर- (ख)   व्‍यंग्‍यात्‍मक

प्रश्न 8. ‘लोग भूल गए है‘– किसकी रचना है?
(क)   ज्ञानेंद्रपति
(ख)   भूषण
(ग)   सुरदास
(घ)   रघुवीर सहाय

उत्तर- (घ)   रघुवीर सहाय

प्रश्न 9. किस पत्रिका के सम्‍पादन के कारण रघुवीर स‍हाय का नाम हुआ था?
(क)   धर्मयुग
(ख)   दिनमान
(ग)   साप्‍ताहिक हिन्‍दुस्‍तान
(घ)   वागर्थ

उत्तर- (ख)   दिनमान

Adhinayak class 12 bhawarth & Objective

प्रश्न 10. किस कविता-संग्रह पर रघुवीर सहाय को साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार मिला था?
(क)   हँसो-हँसो जल्‍दी हँसो
(ख)   आत्‍महत्‍या के विरूद्ध
(ग)   ‘लोग भूल गए है’
(घ)   ‘सीढि़यों पर धूप में’

उत्तर-  (ग)   ‘लोग भूल गए है’

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Jan Jan Ka Chehra Ek class 12 bhawarth & Objective | जन-जन का चेहरा एक का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ

October 13, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ नौ ‘जन-जन का चेहरा एक (Jan Jan Ka Chehra Ek class 12 bhawarth & Objective)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

9. जन-जन का चेहरा एक
कवि- गजानन माधव मुक्तिबोध

लेखक-परिचय
जीवनकाल : 13 नवंबर 1917-11 सितंबर 1964
जन्मस्थान : श्योपुर, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
माता-पिता : पार्वती बाई और माधवराज मुक्तिबोध
शिक्षा : उज्जैन, विदिशा, अमझरा, सरदारपुर में प्रारम्भिक शिक्षा।

1930 में उज्‍जैन के माधव कॉलेज से ग्वालियर बोर्ड की मिडिल परीक्षा में असफल। 1931 में सफलता प्राप्‍त,1935 में माधव कॉलेज से इंटरमीडीएट। 1937 में बी.ए में असफल, 1938 में सफलता, 1953 में नागपुर में हिन्दी से एम.ए. किए।

अभिरुचि : अध्ययन-अध्यापन, लेखन, पत्रकारिता, राजनीति।

कृतियाँ : चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल (कविता संग्रह), काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी, नई कविता का आत्मसंघर्ष, मुक्तिबोध रचनावली, (6 खंडों में)

9. जन-जन का चेहरा एक
चाहे जिस देश प्रांत पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे किसी भी देश या प्रांत का निवासी हो उन सबमें समानता पाई जाती है।

एशिया की, यूरोप की अमरीका की

गलियों की धूप एक |

कष्ट-दुख संताप की

चेहरों पर पड़ी हई झरियों का रूप एक !

जोश में यों ताकत से बंधी हुई
मुठियों का एक लक्ष्य !

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। कवि कहते हैं कि कोई व्यक्ति चाहे किसी भी देश या प्रांत का निवासी हो उन सबमें समानता पाई जाती है। एशिया यूरोप अमेरिका सभी जगह सूर्य अपनी किरणें समान रूप से बिखेरता है। कष्ट अथवा दु:ख में व्यक्ति के चेहरे पर पड़ने वाली रेखाएँ, झुर्रियाँ एक समान होती है। जोश में अथवा ताकत में बंधी मुठियाँ एक समान होती है और उनका लक्ष्य भी एक होता है।

पृथ्वी के गोल चारों ओर के धरातल पर
है जनता का दल एक, एक पक्ष |
जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक
उद्दीपित उसका विकराल सा इशारा एक |

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्राणियों की समस्याओं की चर्चा की है। कवि कहते हैं कि सभी प्राणियों की समस्याएँ, भावनाएं समान है लेकिन इस संसार में विभिन्नता है। कवि कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार सारे संसार में सूर्य एक है और अपनी रौशनी सभी चीजों पर समान रूप से बिखेरता है।

Jan Jan Ka Chehra Ek class 12 bhawarth

गंगा में, इरावती में, मिनाम में
अपार अकुलाती हुई,
नील नदी, आमेजन, मिसौरी में वेदना से गति हुई
बहती-बहाती हुई जिंदगी की धारा एक;
प्यार का इशारा एक, क्रोध का दुद्धारा एक।

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध हैं। कवि कहते हैं कि गंगा, इरावती, मिनाम, नील, आमेजन, मिसौरी इन सब में अपार जल प्रवाहित होता रहता है। इनके जलों में कोई मौलिक अंतर नहीं है। ये नदियाँ मनुष्य को निरंतर बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है। ये नदियाँ प्यार और क्रोध दोनों का संदेश देती है।

पृथ्वी का प्रसार
अपनी सेनाओं से किए हुए गिरफ्तार,
गहरी काली छायाएँ पसारकर,
खड़े हुए शत्रु का काले से पहाड़ पर
काला-काला दुर्ग एक,
जन शोषक शत्रु एक |

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि इस संसार में दुष्ट लोग अनेक अत्याचार करते हैं। वे अपनी काली छाया सम्पूर्ण पृथ्वी पर फैला रहे हैं। ये लोग मानवता के दुश्मन है और इन्होंने अपनी अमानवीय कार्यों तथा शोषण का किला खड़ा कर दिया है। जनता का शोषण करने वाले ये सभी शत्रु एक है।

आशामयी लाल-लाल किरणों से अंधकार
चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक;
जन-जन का मित्र एक।

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि आज दुनिया में आर्थिक विषमता और शोषण का अंधकार छाया हुआ है। इस अंधकार को आशामयी लाल किरणें अर्थात समाजवाद द्वारा ही दूर किया जा सकता है। कवि कहते हैं कि इस अंधकार के समाप्त होते ही सर्वत्र स्वर्ग की तरह शांति हो जाएगी।

विराट प्रकाश एक क्रांति की ज्वाला एक
धड़कते वृक्षों में है सत्य का उजाला एक
लाख-लाख पैरों की मोच में है वेदना का तार एक,
हिये में हिम्मत का सितारा एक |
चाहे जिस देश प्रांत पर का हो
जन-जन का चेहरा एक |

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि प्रकाश का रूप एक है। सभी जगह होने वाली क्रांति की ज्वाला एक है। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में एक ही प्रकार के सत्य का संचार हो रहा है। लाखों लोगों के पैरो में एक ही प्रकार के मोच का अनुभव हो रहा है। शोषण के खिलाफ सभी के हृदय में एक ही प्रकार का साहस है।

Jan Jan Ka Chehra Ek class 12 bhawarth

एशिया के, यूरोप के, अमरीका के
भिन्न-भिन्न वास स्थान
भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनो के बावजूद,
सभी ओर हिंदुस्तान सभी ओर हिंदुस्तान |

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाले एशिया, यूरोप तथा अमेरिका में भौगोलिक और ऐतिहासिक विशिष्टता के बावजूद वे भारत की जीवन शैली से प्रभावित है।

सभी ओर बहनें है सभी ओर भाई है
सभी ओर कन्हैया ने गायें चराई है
जिंदगी की मस्ती की अकुलाती भोर एक
बंसी की धुन सभी ओर एक।

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि भारत की संस्कृति में प्रत्येक स्थान पर भाई-बहन सा प्रेम है। यहाँ भगवान कृष्ण की छवि चारों ओर व्याप्त है। यहाँ हर जगह कृष्ण ने गाय चराई है। यहाँ जिंदगी में मस्ती भरी पड़ी है। सभी ओर कृष्ण के बंसी की धुन व्याप्त है।

दानव दुरात्मा एक,
मानव की आत्मा एक
शोषक और खूनी और चोर एक
जन-जन के शीर्ष पर,
शोषण का खड्ग अति घोर एक
दुनिया के हिस्सों में चारों ओर
जन-जन का युद्ध एक

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि पूरे विश्व में दानव और दुष्‍ट आत्मा एक है। शोषक, खूनी और चोर एक है तथा दुनिया के हरेक हिस्से में दुरात्माओं, चोरों के खिलाफ युद्ध भी एक है।

मस्तक की महिमा
व अंतर की ऊष्मा से उठती है ज्वाला अति क्रुद्ध एक।
संग्राम का घोष एक,
जीवन का संतोष एक |

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि सभी जन समूह के मस्तिष्क की चिंता एक है और उनके हृदय की प्रबलता भी एक सी है। उनके भीतर क्रोध की ज्वाला भी एक सी है।

क्रांति का, निर्माण का, विजय का चेहरा एक,
चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक !

प्रस्तुत पंक्तियाँ जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता से ली गई है जिसके रचयिता मार्क्सवादी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध है। कवि कहते हैं कि क्रांति निर्माण और विजय का सेहरा एक जैसा होता है। चाहे वह किसी देश, किसी भी प्रांत और किसी भी गाँव का क्यों न हो ! आम आदमी का शोषण के खिलाफ जो संघर्ष है उसका मूल स्वर एक ही होता है।  

9. जन-जन का चेहरा एक : गजानन माधव मुक्तिबोध

प्रश्न 1. कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का कहाँ जन्‍म हुआ था?
(क)   सिमरिया, बेगूसराय, बिहार
(ख)   वाराणसी, उ. प्र.
(ग)   इटारसी, म. प्र.
(घ)   श्‍योपुर, ग्‍वालियर, मध्‍य प्रदेश

उत्तर- (घ)   श्‍योपुर, ग्‍वालियर, मध्‍य प्रदेश   

प्रश्न 2. कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का कब जन्‍म हुआ था?
(क)   12 नवम्‍बर, 1916
(ख)   13 नवम्‍बर, 1917
(ग)   14 नवम्‍बर, 1918
(घ)   15 नवम्‍बर, 1919

उत्तर-   (ख)   13 नवम्‍बर, 1917

प्रश्न 3. कवि मुक्तिबोध के माता-पिता का नाम क्‍या था?
(क)   पार्वती बाई एवं माधवराज मुक्तिबोध
(ख)   लक्ष्‍मीबाई एवं माधवराज मुक्तिबोध
(ग)   सरस्‍वतीबाई एवं माधवराज मुक्तिबोध
(घ)   सहजोबाई एवं माधवराज मुक्तिबोध

उत्तर- (क)   पार्वती बाई एवं माधवराज मुक्तिबोध  

Jan Jan Ka Chehra Ek class 12 bhawarth 

प्रश्न 4. कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का मृत्‍यु कब हुआ था?
(क)   09 सितम्‍बर, 1962
(ख)   10 सितम्‍बर, 1963
(ग)   11 सितम्‍बर, 1964
(घ)   12 सितम्‍बर, 1965

उत्तर- (ग)   11 सितम्‍बर, 1964   

प्रश्न 5. ‘जन-जन का चेहरा एक‘ शीर्षक कविता के रचयिता कौन है?
(क)   गजानन माधव मुक्तिबोध
(ख)   शमशेर बहादुर सिंह
(ग)   रघुवीर स‍हाय
(घ)   अशोक वाजपेयी

उत्तर-  (क)   गजानन माधव मुक्तिबोध 

प्रश्न 6. ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है‘ कविता-संग्रह के रचयिता कौन है?
(क)   गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’
(ख)   सच्चिदानंद हीरानंद वात्‍स्‍यायन ‘अज्ञेय’
(ग)   रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(घ)   रघुवीर स‍हाय

उत्तर-  (क)   गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’  

प्रश्न 7. मुक्तिबोध के कविता-संग्रह का नाम बताएँ-
(क)   ‘तार सप्‍तक’
(ख)   ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’
(ग)   ‘भूरी-भूरी खाक धूल’
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर-   (घ)   उपर्युक्‍त सभी

प्रश्न 8. मुक्तिबोध क कथा-साहित्‍य का नाम लिखें-
(क)  ‘काठ का सपना’
(ख)   ‘विपात्र’
(ग)   ‘सतह से उठता आदमी’
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर-   (क)  ‘काठ का सपना’

प्रश्न 9. मुक्तिबोध की आलोचना पुस्‍तकों के नाम लिखें ।
(क)   कामायनी : एक पुनर्विचार नई कविता का आत्‍मसंघर्ष
(ख)   नए साहित्‍य का सौन्‍दर्यशास्‍त्र आखिर रचना क्‍यों?
(ग)   समीक्षा की समस्‍याएँ एक साहित्यिक की डायरी
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर-   (घ)   उपर्युक्‍त सभी

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Usha class 12 bhawarth & Objective | उषा कविता का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ

October 13, 2022 by Raja Shahin 1 Comment

इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ आठ ‘उषा (Usha class 12 bhawarth & Objective)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। जिसके लेखक शमशेर बहादुर सिंह है।

8. उषा
कवि – शमशेर बहादुर सिंह

लेखक-परिचय
जन्म : 13 जनवरी 1911
मृत्यु- 1993
जन्म-स्थान : देहारादून, उत्तराखंड
माता-पिता : प्रभुदेई और तारीफ सिंह
शिक्षा : 1928 में हाई स्कूल, 1931 में इंटर, 1933 में बी.ए, 1938 में एम.ए
कृतियाँ : चुका भी नहीं हूँ मैं (1975), इतने पास अपने (1980), उदिता (1980) बात बोलेगी (1981), काल तुझसे होड़ है मेरी (1982)

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हआ चौका
[अभी गीला पड़ा है ]

प्रस्तुत पंक्तियाँ शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित उषा शीर्षक कविता से ली गई है जिसमें कवि ने प्रातः कालीन दृश्य की चर्चा की है। कवि कहते हैं कि सूर्योदय से पूर्व का आसमान नीले शंख की तरह होता है। भोर का आसमान राख से लीपे हए चौके की तरह होता है जो अभी गीला ही है। कवि कहते हैं कि प्रभात कालीन वेला सौंदर्य की साम्राज्ञी होती है।

बहत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धूल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने

प्रस्तुत पंक्तियाँ शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित उषा शीर्षक कविता से ली गई है जिसमें कवि ने प्रातः कालीन दृश्य की चर्चा की है1 कवि कहते हैं कि भोर का आसमान राख से लीपे हुए चौके की तरह होता है। ऐसा लगता है जैसे किसी ने लाल केसर वाली सिल को धो दिया गया है लेकिन उस पर केसर की आभा दिखाई दे रही है। कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दिया गया हो।

नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।

प्रस्तुत पंक्तियाँ शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित उषा शीर्षक कविता से ली गई है जिसमें कवि ने प्रातः कालीन दृश्य की चर्चा की है। कवि कहते हैं कि नीला आकाश मानो नीले जल की भांति प्रतीत हो रहा है और सूर्य आकाश में ऐसा प्रतीत होता है जैसे कोई सुंदरी नीले जल से बाहर आ रही हो और उसके गोरे रंग की आभा चारों तरफ फैल रहा हो।

और …..
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है |

प्रस्तुत पंक्तियाँ शमशेर बहादुर द्वारा रचिर उषा शीर्षक कविता से ली गई है जिसमें कवि ने प्रातः कालीन दृश्य की चर्चा की है। कवि कहते हैं कि प्रातः कालीन समय सतरंगी होता है और आकाश राख से लिपे हए चौके की तरह प्रतीत होता है लेकिन सूर्योदय के बाद उषा रूपी सुंदरी की लालिमा और नीलिमा वाली शोभा नष्ट हो जाती है अर्थात उषा का जादू खत्म हो जाता है।

Usha class 12 bhawarth & Objective

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Gaon ka Ghar Kavita ka bhavarth & Objective | गाँव का घर कविता का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ

October 13, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ तेरह ‘गाँव का घर (Gaon ka Ghar Kavita ka bhavarth & Objective)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Gaon ka Ghar Kavita ka bhavarth & Objective

13. गाँव का घर
कवि- ज्ञानेंद्रपति

लेखक- ज्ञानेंद्रपति
जन्म – 1 जनवरी 1950
जन्म स्थान – पथरगामा, गोड्डा, झारखंड
निवास स्थान- वाराणसी, उत्तर प्रदेश
माता- सरला देवी
पिता- देवेंद्र प्रसाद चौबे
शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल मे ; बी०ए० और एम०ए० अंग्रेजी विषय में पटना विश्वविद्यालय से। फिर हिन्दी मे भी एम०ए० बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से
वृत्ति- बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित होकर कारा अधिक्षक के रूप मे कार्य करते हुए कैदियों के लिए अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम।

गाँव का घर कविता का भावार्थ
गाँव के घर के
अंत:पुर की वह चौखट
टिकुली साटने के लिए सहजन के पेड़ से छुडाई गई गोंद का गेह वह
वह सीमा
जिसके भीतर आने से पहले खाँस कर आना पडता था बुजुर्गों को
खड़ाऊँ खटकानी पड़ती थी खबरदार की
और प्राय: तो उसके उधर ही रूकना पड़ता था
एक अदृश्य पर्दे के पार से पुकारना पडता था
किसी को, बगैर नाम लिए
जिसकी तर्जनी की नोक धारण किए रहती थी, सारे काम सहज,
शंख के चिन्‍ह की तरह
गाँव के घर की
उस चौखट की बगल में
गेरू लिपी भीत पर
दूध-डूबे अँगूठे के छापे
उठौना दूध लाने वाले बूढ़े ग्‍वाला दादा के-
हमारे बचपन के भाल पर दुग्‍ध-तिलक-
महीने के अंत तक गिने जाते एक-एक कर

Gaon ka Ghar Kavita ka bhavarth & Objective

व्‍याख्‍या- प्रस्‍तुत पाठ ज्ञानेन्‍द्रपति द्वारा रचित कविता संग्रह ‘संशयात्‍मा’ से ली गई है। इसमें प्राचीन गाँव की विशेषता को बताया गया है। कवि कहते हैं कि गाँव के घर में महिलाएँ अपनी टिकुली साटने के लिए सहजन के पेड़ की गोद का उपयोग करती थी। जिस घर में महिलाएँ रहती है, वहाँ बुजुर्ग लोग खाँस कर आते थे तथा महिलाओं को अपनी खड़ाऊ की आवाज से खबरदार करते थे तथा चौखट से बाहर ही उनलोगों को रूकना पड़ता था। पर्दे के पीछे से ही महिलाओं को पुकारना पड़ता था। किसी को बगैर नाम लिए पुकारना पड़ता था। शंख की चिन्‍ह की तरह तर्जनी अंगुली के इशारे पर महिलाएँ घर की सारे काम बहुत आसानी से करनी पड़ती थी। गाँव की घर की चौखट के बगल की दीवार लाल रंग की खड़िया मिट्टी से लिपी हुई है। उस पर दूध में डूबे अँगूठे के छापे बनाए गए हैं। ये छाप उस ग्‍वाल दादा के हैं जो हमारे बचपन में प्रतिदिन दुध लाया करते थे। ये चिन्‍ह हमारे बचपन के मस्‍तक पर दुगध तिलक के होते थे और इन चिन्‍हों को महिने के अंत में गिने जाते थे। अर्थात कवि के कहने का अर्थ है कि दुध का हिसाब उन चिन्‍हों से किया जाता था।

गाँव का वह घर अपना गाँव खो चका है
पंचायती राज में जैसे खो गए पंच परमेश्वर
बिजली-बत्ती आ गई कब की, बनी रहने से अधिक गई रहनेवाली
अबके बिटौआ के दहेज मे टी०वी० भी
लालटेनें है अब भी, दिन-भर आलो मे कैलेंडरो से ढंकी-
रात उजाले से अधिक अँधेरा उगलतीं
अँधेरे मे छोड़ दिए जाने के भाव से भरतीं
जबकि चकाचौंध रोशनी मे मदमस्त आर्केस्ट्रा बज रहा है कहीं, बहुत दूर,
पट भिड़काए
कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी,
न रोशनी की आवाज
होरी-चैती बिरहा-आल्हा गुँगे
लोकगीतों की जन्मभूमि में भटकता है
एक शोकगीत अनगाया अनसुना
आकाश और अँधेरे को काटते
दस कोस दूर शहर से आने वाला सर्कस का प्रयास-बुलौआ
तो कब का मर चुका है
कि जैसे गिर गया हो गजदंतो को गँवाकर कोई हाथी
रेते गए उन दाँतो की जरा-सी धवल धूल पर
छीज रहे जंगल मे,
लीलने वाले मुँह खोले, शहर मे बुलाते हैं बस
अदालतों और अस्पतालों क फैले-फैले भी रुँधते-गँधाते अमित्र परिसर
कि जिन बुलौओं से
गाँव के घर की रीढ़ झुरझुराती है

व्‍याख्‍या- प्रस्‍तुत पाठ में कवि ने ग्रामीण सभ्‍यता को खो देने से दुखी होकर गाँव की संस्‍कृति की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं, वह प्राचीन गाँव की परंपरा आधुनिक गाँव से करते हैं। वे कहते हैं कि हमलोगों के जमाने का गाँव अब अपना गाँव खो चुका है। पंचायती राज में पंच परमेश्‍वर अब खो चुके हैं। अर्थात अब लोग पंचों की फैसलों को नहीं मान रहे हैं यानी पंचायती राज में पंचपरमेश्‍वर की परंपरा समाप्‍त हो गई है। गाँव में अब बि‍जली बत्ती आ गई है, लेकिन वह बहुत कम समय तक रहती है। अब बेटों के दहेज में टी.वी भी मिल रही है। घर में लालटेनें भी है, लेकिन वह दिन-भर कहीं अलमीरा के कोनों में कलेंडरों से ढ़की रहती है। रात अब उजाले से अधिक अंधेरा रहती है। अधिकतर समय अंधेरा ही रहता है। जबकि घर से बहुत दूर चकाचौंध रोशनी में कहीं आर्केस्‍टा बजता है। उसका न आवाज आती है और न ही उसका रौशनी पहुँच पाता है।
अब गाँवों में पुराने लोकगीत होरी, चैती, बिरहा और आल्‍हा भी कहीं नहीं गाया जाता है। गाँव लोकगीतों की जन्‍मभूमि होती है, लेकिन यहाँ से लोकगीत खत्‍म हो गए हैं। लोकगीतों की जगह पर अनगाया अनसुना शोकगीत अँधेरे में कहीं बजता है।
दस कोस दूर से शहर से सर्कस का प्रकाश लोागों को सर्कस दिखाने के लिए आता था, जिस प्रकाश की परंपरा समाप्‍त हो गई। ऐसा हो गया है जैसे हाथी अपनी दाँतों को गँवाकर कहीं गीर गया है। उनके दाँतों को रेतने से निकलती जो सफेद धुल (दंत के अवशेष) पूरे जंगल मेंनष्‍ट हो रहें हैं। जंगल को नष्‍ट करने वाले लोग शहरों की ओर बुला रहे हैं।शहर सिर्फ शोषण करने के लिए बुलाते हैं‍
अदालतों और अस्‍पतालों का वातावरण भी बिल्‍कुल बदल चुका है, जिनके बारे में में सोचकर गाँव की घरों की परंपरा झुरझुरा रही है।
इस कविता में कवि ने गाँवों की परंपरा के बारे में बताए हैं कि कैसे शहर हमारी परंपरा को नष्‍ट कर रहे हैं।

Gaon ka Ghar Kavita ka bhavarth & Objective

13. गाँव का घर : ज्ञानेन्‍द्रपति

प्रश्न 1. ज्ञानेन्‍द्रपति किस प्रशासनिक पद पर थे?
(क)   जिलाधिकारी
(ख)   पुलिस अधिकारी
(ग)   कारा अधीक्षक
(घ)   सेना अधिकारी

उत्तर- (ग)   कारा अधीक्षक   

प्रश्न 2. ‘ज्ञानेन्‍द्रपति‘ की कविता कौन है?
(क) गाँव का घर  
(ख)   हार-जीत
(ग)   अधिनायक
(घ)   प्‍यारे नन्‍हें बेटे को

उत्तर-  (क) गाँव का घर    

प्रश्न 3. ‘पंचायती राज‘ में क्‍या खो गया है?
(क)   ईमान
(ख)   धर्म
(ग)   पच परमेश्‍वर
(घ)   विश्‍व बंधुत्‍व

उत्तर-   (ग)   पच परमेश्‍वर

प्रश्न 4. ‘गाँव का घर‘ शीर्षक कविता के कवि का नाम बताएँ ।
(क)   ज्ञानेन्‍द्रपति
(ख)   अशोक वाजपेयी
(ग)   विनोद कुमार शुक्‍ल
(घ)   रघुवीर सहाय

उत्तर- (क)   ज्ञानेन्‍द्रपति   

प्रश्न 5. ज्ञानेन्‍द्रपति का कब जन्‍म हुआ था?
(क)   04 जनवरी, 1953
(ख)   01 जनवरी, 1950
(ग)   02 जनवरी, 1951
(घ)   03 जनवरी, 1952

उत्तर-   (ख)   01 जनवरी, 1950

प्रश्न 6. कवि ज्ञानेन्‍द्रपति का कहाँ जन्‍म हुआ था?
(क)   स्‍वर्णगामा, गोंडा, छत्तीसगढ़
(ख)   मिट्टीगामा, गोंडा झारखंड
(ग)   पथरगामा, गोड्डा, झारखंड
(घ)   लौहगामा, गोंडा, झारखंड

उत्तर- (ग)   पथरगामा, गोड्डा, झारखंड   

प्रश्न 7. कवि ज्ञानेन्‍द्रपति का निवास कहाँ है?
(क)   वाराणसी, उत्तर प्रदेश
(ख)   कदमकुआँ, पटना, बिहार
(ग)   इटारसी, मध्‍यप्रदेश
(घ)   लमही, वाराणसी

उत्तर-  (क)   वाराणसी, उत्तर प्रदेश 

प्रश्न 8. ‘कवि ने कहा-क्‍या है?
(क)   कहानी-संग्रह
(ख)   नाटय-संग्रह
(ग)   कविता-संग्रह
(घ)   निबंध-संग्रह

उत्तर- (ग)   कविता-संग्रह  

Gaon ka Ghar Kavita ka bhavarth & Objective 

प्रश्न 9. ‘पहल सम्‍मान‘ ज्ञानेन्‍द्रप‍ति को कब दिया गया था?
(क)   2005
(ख)   2006
(ग)   2007
(घ)   2008

उत्तर- (ख)   2006   

प्रश्न 10. ‘संशयात्‍मा‘ के लिए साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार ज्ञानेन्‍द्रपति को कब मिला था?
(क)   2004
(ख)   2005
(ग)   2006
(घ)   2007

उत्तर-  (ग)   2006

प्रश्न 11. ज्ञानेन्‍द्रपति की पुस्‍तकें कौन-कौनन है?
(क)   निम्‍न सभी
(ख)   एकचक्रा नगरी (काव्‍य नाटक)
(ग)   पढ़ते-गढ़ते (कथेतर गद्य)
(घ)   संशयात्‍मा (कविता)

उत्तर- (क)   निम्‍न सभी   

प्रश्न किस पाठ में आया है-” कि जैसे गिर गया हो गजदंतों को गवाँकर कोई हाथी ।”
(क)   अधिनायक
(ख)   हार-जीत
(ग)   जन-जन का चेहरा एक
(घ)   गाँव का घर

उत्तर-  (घ)   गाँव का घर

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Putra Viyog class 12 Hindi bhawarth & Objective | पुत्र वियोग का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ

October 12, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ सात ‘पुत्र वियोग (Putra Viyog class 12 Hindi bhawarth & Objective)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

7. पुत्र वियोग
कवियित्री-  सुभद्रा कुमारी चौहान

कवयित्री परिचय
जीवनकाल : 16 अगस्त 1904- 15 फरवरी 1948
जन्मस्थान : निहालपुर, इलाहाबाद उत्तरप्रदेश
माता-पिता : धिराज कुँवर और ठाकुर रामनाथ सिंह
शिक्षा : क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल, इलाहाबाद में प्रारम्भिक शिक्षा। इसी स्‍कूल में प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ पढ़ी थी।
9वीं तक पढ़ाई के बाद असहयोग आंदोलन में भाग
कर्म क्षेत्र : समाज सेवा, राजनीति, स्‍वाधीनता संघर्ष में सक्रिय भागीदारी, अनेक बार कारावास, मध्‍य प्रदेश में काँग्रेस पार्टी की एम. एल. ए.।
कृतियाँ : मुकुल (कविता संग्रह, 1930) त्रिधारा, बिखरे मोती (कहानी संग्रह), सभा के खेल (कहानी संग्रह)
पुरस्कार :- मुकुल पर 1930 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ‘सेकसरिया पुरस्कार’
प्रस्तुत कविता मुकुल से ली गई है।

7. पुत्र वियोग
आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास विश्व पर छाया
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया|

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री कहती है कि आज चारों ओर खुशी का वातावरण है और सारे संसार में खुशियाँ छाई है लेकिन ये खुशियाँ मेरे लिए व्यर्थ है क्योंकि मेरा खोया हुआ पुत्र अब तक मुझे प्राप्त नहीं हुआ। अर्थात कवयित्री के पुत्र का निधन हो गया है।

शीत न लग जाए, इस भय से
नहीं गोद से जिसे उतारा
छोड़ काम दौड़ कर आई
‘मा’ कहकर जिस समय पुकारा

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मैंने शीत लगने के भय से उसे अपनी गोद से नहीं उतारा। उसने जब भी माँ कहके आवाज लगाई मैं अपना सारा काम-काज छोड़कर उसके पास दौड़कर आई ताकि उसकी जरूरतों को पूरा कर सकूँ।

थपकी दे दे जिसे सुलाया
जिसके लिए लोरियाँ गाईं,
जिसके मुख पर जरा मलिनता
देख आँखें में रात बिताई।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मैंने जिसके हरेक सुख का ध्यान रखा। जिसे थपकी दे कर सुलाया और जिसके लिए लोरियाँ गाई। उसके चेहरे पर छाई उदासी को महसूस करके जिसका रात भर जाग कर ख्याल रखा। 

Putra Viyog class 12 Hindi bhawarth & Objective

जिसके लिए भूल अपनापन
पत्थर को भी देव बनाया
कहीं नारियल दूध, बताशे
कहीं चढ़ाकर शीश नवाया।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मैंने जिसके लिए अपने सारे सुखों को भूला दिया। पत्थर को देवता मानकर जिसे नारियल दूध और बताशे चढ़ाएँ। जिसके लिए मैंने देवालयों में शीश नवाया। वो आज मेरे पास नहीं है।

फिर भी कोई कुछ न कर सका
छिन ही गया खिलौना मेरा
मैं असहाय विवश बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मेरे द्वारा की गई पूजा अर्चना दुआएँ कोई भी काम नहीं आई। कोई भी मेरा कुछ नहीं कर सका और मेरा हृदय का टुकड़ा मुझसे छिन ही गया। मैं आज असहाय और विवश बैठी हूँ और मेरा नन्हा बच्चा मेरे आँखों के सामने ही भगवान को प्यारा हो गया।

तड़प रहे हैं विकल प्राण ये
मुझको पल भर शांति नहीं है
वह खोया धन पा न सकूँगी
इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मेरे प्राण तड़प रहे है और मुझे एक पल की भी शांति नहीं है। मैंने जो अनमोल धन खो दिया है उसे मैं अब वापस नहीं पा सकूँगी। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

फिर भी रोता ही रहता है
नहीं मानता है मन मेरा
बड़ा जटिल नीरस लगता है
सूना सूना जीवन मेरा।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवि‍यित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मैं जानती हूँ कि मैं अपने पुत्र को प्राप्त नहीं कर सकती। फिर भी मेरा हृदय मेरा मन इस बात को मानने को तैयार नहीं है। मेरा जीवन अब कठिन और नीरस सा हो गया है।

यह लगता है एक बार यदि
पल भर को उसको पा जाती
जी से लगा प्यार से सर
सहला सहला उसको समझाती।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि यदि मैं अपने पुत्र को एक पल के लिए भी पा लेती तो उसे जी भर कर प्यार करती और उसे समझती कि वह अपनी माँ को यूं छोड़ कर ना जाए। लेकिन अब उसको पाना संभव नहीं है।

मेरे भैया मेरे बेटे अब
माँ को यों छोड़ न जाना
बड़ा कठिन है बेटा खोकर
माँ को अपना मन समझाना।

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मैं अपने पुत्र को अगर एक पल के लिए भी पा लेती तो उसे समझाती कि वह मझे छोड़कर न जाए। माँ के लिए अपने बेटे को खोकर अपने मन को सांत्वना देना बड़ा ही कठिन होता है।

Putra Viyog class 12 Hindi bhawarth & Objective

भाई-बहिन भूल सकते हैं
पिता भले ही तुम्हें भुलावे
किन्तु रात-दिन की साथिन माँ
कैसे अपना मन समझावे |

प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता पुत्र वियोग से ली गई है जिसमें उन्होंने एक माता के पुत्र खो जाने के बाद उसके मन की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है। कवयित्री अपने पुत्र को याद करती हुई कहती है कि भाई-बहन तुम्हें भूल सकते हैं। तुम्हारे पिता भले ही तम्हें भूल जाएँ लेकिन एक माँ जो दिन-रात अपने बच्चे के साथ रही हो वो कैसे अपने मन को समझा सकती है | कवयित्री कहना चाहती है कि माँ का हृदय बच्चे को कभी भी नहीं भूल सकता।

7. पुत्र-वियोग : सुभद्रा कुमारी चौहान
प्रश्न 1. सुभद्रा कुमारी चौहान का कब जन्‍म हुआ था?
(क)   1904 ई.
(ख)   1900 ई.
(ग)   1901 ई.
(घ)   1899 ई.

उत्तर-  (क)   1904 ई. 

प्रश्न 2. ‘पुत्र-वियोग‘ शीर्षक कविता की कवयित्री कौन हैं?
(क)   महादेवी वर्मा
(ख)   जयंती
(ग)   सुभद्रा कुमारी चौहान
(घ)   मीराबाई

उत्तर- (ग)   सुभद्रा कुमारी चौहान   

प्रश्न 3. ‘पुत्र वियोग‘ शीर्षक कविता सुभद्रा कुमारी चौहान की किस पुस्‍तक से ली गयी है?
(क)   सुकुल
(ख)   फुकुल
(ग)   मु‍कुल
(घ)   कुकुल

उत्तर-  (ग)   मु‍कुल

प्रश्न 4. कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का कब जन्‍म हुआ था?
(क) 19 अगस्‍त, 1907  
(ख)  16 अगस्‍त, 1904
(ग)   17 अगस्‍त, 1905
(घ)   18 अगस्‍त, 1906

उत्तर- (ख)  16 अगस्‍त, 1904   

Putra Viyog class 12 Hindi bhawarth & Objective

प्रश्न 5. कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान का कहाँ जन्‍म हुआ था?
(क)   निहालपुर, इलाबाद, उत्तर प्रदेश
(ख)   नौनिहालपुर, इलाबाद, उत्तर प्रदेश
(ग)   ससुरालपुर, इलाबाद, उत्तर प्रदेश
(घ)   कहीं नहीं

उत्तर- (क)   निहालपुर, इलाबाद, उत्तर प्रदेश   

प्रश्न 6. सुभद्रा कुमारी चौहान के माता-पिता का नाम बताएँ ।
(क)   श्रीमती कुसुम देवी एवं ठाकुर कृष्‍णनाथ सिंह
(ख)   श्रीमती पुष्‍पा देवी एवं ठाकुर विष्‍णु सिंह
(ग)   श्रीमती सोनाली देवी एवं ठाकुर राम कुमार सिंह
(घ)   श्रीमती धिराज कुँवर एवं ठाकुर रामनाथ सिंह

उत्तर-   (घ)   श्रीमती धिराज कुँवर एवं ठाकुर रामनाथ सिंह

प्रश्न 7. सुभद्रा कुमारी चौहान के पिता का क्‍या नाम था?
(क)   ठाकुर रामनाथ सिंह
(ख)   ठाकुर हरिनाथ सिंह
(ग)   ठाकुर राजनाथ सिंह
(घ)   ठाकुर जगमोहन सिंह

उत्तर- (क)   ठाकुर रामनाथ सिंह   

प्रश्न 8. कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की कृतियों के नाम लिखे-
(क) ‘सुकुल’
(ख)   ‘त्रिधारा’
(ग)   बिखरे मोती, सभा के खेल
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर-  (घ)   उपर्युक्‍त सभी 

8. उषा : शमशेर बहादुर सिंह
प्रश्न 1. ‘कवियों का कवि किस कवि को कहा जाता है?
(क)   शमशेर बहादुर सिंह
(ख)   निराला
(ग)   प्रसाद
(घ)   पंत

उत्तर- (क)   शमशेर बहादुर सिंह   

प्रश्न 2. ‘प्रकृति-वर्णन‘ से संबंधित कविता है?
(क)   गाँव का घर
(ख)   हार-जीत
(ग)   उषा
(घ)   साकेत

उत्तर- (ग)   उषा   

प्रश्न 3. ‘उषा‘ शीर्षक कविता के रचयिता कौन हैं?
(क)   शमशेर बहादुर सिंह
(ख)   गजानन माधव मुक्तिबोध
(ग)   रघुवीर सहाय
(घ)   अशोक वाजपेयी

उत्तर- (क)   शमशेर बहादुर सिंह   

Putra Viyog class 12 Hindi bhawarth & Objective

प्रश्न 4. शमशेर बहादुर सिंह का कहाँ जन्‍म हुआ था?
(क)   वाराणसी, उत्तर प्रदेश
(ख)   इटारसी, मध्‍य प्रदेश
(ग)   देहरादून, उत्तराखंड
(घ)   जबलपुर, मध्‍यप्रदेश

उत्तर-  (ग)   देहरादून, उत्तराखंड 

प्रश्न 5. कवि शमशेर बहादुर सिंह का कब जन्‍म हुआ था?
(क)   12 जनवरी, 1910
(ख)   13 जनवरी, 1911
(ग)   14 जनवरी, 1912
(घ)   15 जनवरी, 1913

उत्तर- (ख)   13 जनवरी, 1911   

प्रश्न 6. कवि शमशेर बहादुर सिंह के माता-पिता  का नाम बताएँ-
(क)   प्रगति देवी एवं तरीक सिंह
(ख)   प्रेमदेई एवं तरीक सिंह
(ग)   प्रेमदेई एवं तारीफ सिंह
(घ)   समदेई एवं तरीक सिंह

उत्तर-(ग)   प्रेमदेई एवं तारीफ सिंह    

प्रश्न 7. ‘कवियों का कवि‘ किस कवि को कहा जाता है?
(क)   शमशेर बहादुर सिंह
(ख)   पंत
(ग)   प्रसाद
(घ)   निराला

उत्तर(क)   शमशेर बहादुर सिंह   

प्रश्न 8. ‘दूसरा सप्‍तक‘ का प्रकाशन वर्ष हैं-
(क)   1950
(ख)   1951
(ग)   1952
(घ)   1954

उत्तर- (ख)   1951   

प्रश्न 9. ‘सुकून की तलाश‘ किसकीरचना है?
(क)   इकबाल की
(ख)   शमशेर बहादुर सिंह की
(ग)   गालिब की
(घ)   ज्ञानेंद्रपति की

उत्तर-  (ख)   शमशेर बहादुर सिंह की 

प्रश्न 10. किसने लिखा है-
(क)   ‘जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है’
(ख)   शमशेर बहादुर सिंह
(ग)   रघुवीर सहाय
(घ)   अशोक वाजपेयी

उत्तर-   ज्ञानन्‍द्रपति

प्रश्न 11. किसने लिखा है-‘बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धूल गई हो ।‘
(क) अशोक वाजपेयी
(ख) शमशेर बहादुर सिंह
(ग)   ज्ञानन्‍द्रपति
(घ) रघुवीर स‍हाय

उत्तर- (ख) शमशेर बहादुर सिंह   

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Tumul Kolahal Kalah Mein class 12 bhawarth & Objective | तुमुल कोलाहल कहल में का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ

October 12, 2022 by Raja Shahin Leave a Comment

इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ छ: ‘तुमुल कोलाहल कहल में (Tumul Kolahal Kalah Mein class 12)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

6. तुमुल कोलाहल कहल में

तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कामायनी के निर्वेद सर्ग से ली गई है। जिसमें श्रद्धा मन को पाकर कहती है कि इस अत्यंत कोलाहल में मैं हृदय के बात की तरह हूँ।

विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल
चेतना थक सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कामायनी के निर्वेद सर्ग से ली गई है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है ।

पुरुष जब दिनभर की भाग-दौर और मन की चंचलता के कारण थक जाता है और व्याकुल होकर आराम करना चाहता है तो ऐसी स्थिति में श्रद्धा (नारी का हृदय) मलय पर्वत से चलने वाली सुगंधित हवा की तरह शांति और विश्राम देती है। कवि कहना चाहते हैं कि मन चंचल है और मन की चंचलता के कारण शरीर थक कर आराम खोजता है ऐसी स्थिति में व्यक्ति का हृदय ही उसको आराम देता है।

चिर-विषाद विलीन मन की
इस व्यथा के तिमिर वन की
मैं उषा सी ज्योति रेखा,
कुसुम विकसित प्रात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कामायनी के निर्वेद सर्ग से ली गई है | इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है।

मन अंधकाररूपी दुख के वन में दीर्घ काल के लिए दबा हुआ है। मैं उसमें सुबह की किरणों की तरह हुँ। मैं इस अंधकार से पूर्ण वन में पुष्प से भरे हुए सुबह के समान हूँ।

जहां मरु ज्वाला धधकती
चातकी कन को तरसती
उन्हीं जीवन घाटियों की
मैं सरस बरसात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कामायनी के निर्वेद सर्ग से ली गई है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है।

हे मन् ! उस धधकते हए मरुस्थल में जहां चातकी पानी के बुंदों के लिए तरसती है। मैं जीवन की घाटी में सरस बरसात की तरह हूँ। कवि कहते हैं कि जब मानव जीवन कष्ट की अग्नि में मरुस्थल की तरह धधकता है तब आनंद रूपी बारिश ही उसके चित रूपी चातकी को सुख प्रदान करती है।

पवन की प्राचीर में रुक
जला जीवन जा रहा झुक
इस झुलसते विश्व-वन की
मैं कुसुम ऋतु रात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कामायनी के निर्वेद सर्ग से ली गई है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है।
Tumul Kolahal Kalah Mein class 12
हे मन ! जब जीवन पवन की ऊँची चहारदीवारी में बंद होकर झुक जाता है। जब मानव जीवन झुलस जाता है। ऐसी स्थिति में मैं वसंत की रात की तरह हूँ। जो इस झुलसे हुए मन को हरा-भरा कर सकती है।

चिर निराशा नीरधर से
प्रतिच्छायित अश्रु सर में
मधुप मुखर मरंद मकुलित
मैं सजल जलजात रे मन !

प्रस्तुत पंक्तियाँ छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य कामायनी के निर्वेद सर्ग से ली गई है। इन पंक्तियों में श्रद्धा पुरुष के जीवन में नारी के महत्व को रेखांकित करती हुई कहती है।

हे मन ! गहरी निराशा के बादलों से घिरे हुए आँसुओं के तालाब में मैं करुणा से भरी हुई कमल के समान हूँ जिसपर भौंरे गुजते रहते है।

6. तुमुल कोलाहल कलह में : जयशंकर प्रसाद

प्रश्न 1. जयशंकर प्रसाद का महाकाव्‍य है
(क)   कामायनी
(ख)   साकेत
(ग)   उर्वशी
(घ)   मुकुल

उत्तर-  (क)   कामायनी 

प्रश्न 2. जयशंकर प्रसाद का कहाँजन्‍म हुआ था?
(क)   आगरा
(ख)   लखनउ
(ग)   इलाहाबाद
(घ)   वाराणसी

उत्तर- (घ)   वाराणसी   

प्रश्न 3. जयशंकर प्रसाद का कब जन्‍म हुआ था?
(क)  1888
(ख)   1889
(ग)   1890
(घ)   1891

उत्तर- (ख)   1889   

प्रश्न 4. जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम क्‍या था?
(क)   देवता प्रसाद साहु
(ख)   राम प्रसाद साहु
(ग)   कृष्‍णदेव साहु
(घ)   देवी प्रसाद साहु

उत्तर-  (घ)   देवी प्रसाद साहु 
Tumul Kolahal Kalah Mein class 12
प्रश्न 5. जयशंकर प्रसाद का मृत्‍यु कब हुआ था?
(क)   13 नवम्‍बर, 1935
(ख)   14 नवम्‍बर, 1936
(ग)   15 नवम्‍बर, 1937
(घ)   16 नवम्‍बर, 1938

उत्तर- (ग)   15 नवम्‍बर, 1937   

प्रश्न 6. जयशंकर प्रसाद की नाट्टयकृति है
(क)   ध्रुवस्‍वामिनी
(ख)   आषाढ़ एक दिन
(ग)   लहरों के राजहंस
(घ)   कोर्णाक

उत्तर- (क)   ध्रुवस्‍वामिनी   

प्रश्न 7. जयशंकर प्रसाद की भाषा कौन-सी थी?
(क)   ब्रजभाषा
(ख)   अवधी
(ग)   खड़ी बोली हिन्‍दी
(घ)   मगही

उत्तर- (ग)   खड़ी बोली हिन्‍दी   

प्रश्न 8. जयशंकर प्रसाद किस वाद से जुड़े थे?
(क)   रहस्‍यवाद
(ख)   प्रयोगवाद
(ग)   प्रगतिवाद
(घ)   छायावाद

उत्तर- (घ)   छायावाद   

प्रश्न 9. ‘चन्‍द्रगुप्‍त‘ नाटक के नाटककार कौन है?
(क)   जयशंकर प्रसाद
(ख)   मोहन राकेश
(ग)   देवेन्‍द्रनाथ शर्मा
(घ)   भार‍तेन्‍दु हरिश्‍चन्‍द्र

उत्तर-  (क)   जयशंकर प्रसाद 

प्रश्न 10. जयशंकर प्रसाद के काव्‍य-संकलन का नाम लिखें-
(क)   झरना
(ख)   आँसू
(ग)   लहर
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर- (घ)   उपर्युक्‍त सभी 

प्रश्र 11. जयशंकर प्रसाद के प्रबंधकाव्‍य का नाम लिखें-
(क)   कामायनी
(ख)   द्वापर
(ग)   यशोधरा
(घ)   रामचरितमानस

उत्तर- (क)   कामायनी   

प्रश्न 12. जयशंकर प्रसाद की अतुकांत रचनाएँ कौन-कौन है?
(क)   महाराणा का महत्‍व
(ख)   करूणालय
(ग)   प्रेम पथिक
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर- (घ)   उपर्युक्‍त सभी

प्रश्न13. ‘कामायनी‘ की नायिका कौन है?
(क)   मनु
(ख)   श्रद्धा
(ग)   नीति
(घ)   नीतू

उत्तर-  (ख)   श्रद्धा 

प्रश्न 14. जयशंकर प्रसाद किस काल के कवि है?
(क)   आदिकाल
(ख)   आधूनिक काल
(ग)   भक्ति काल
(घ)   रीतिकाल

उत्तर-  (ख)   आधूनिक काल 

प्रश्न 15. ‘तुमुल कोलाहल का अर्थ होता है
(क)   हो हल्‍ला नहीं
(ख)   बिल्‍कुल शांत
(ग)   अ‍त्‍यधिक हो हल्‍ला
(घ)   कोई नहीं

उत्तर-  (ग)   अ‍त्‍यधिक हो हल्‍ला 
Tumul Kolahal Kalah Mein class 12
प्रश्न 16. जयशंकर प्रसाद के कथा-संग्रह का नाम बतावें-
(क)   छाया
(ख)   प्रतिध्‍वनि
(ग)   इंद्रजाल
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर-  (घ)   उपर्युक्‍त सभी 

प्रश्न 17. जयशंकर प्रसाद के उपन्‍यासों के नाम लिखें-
(क)   कंकाल
(ख)   तितली
(ग)   इरावती
(घ)   उपर्युक्‍त सभी

उत्तर-  (घ)   उपर्युक्‍त सभी 

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