इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पद्य भाग के पाठ 7 ‘तोड़ती पत्थर कविता का व्याख्या (Todti Patthar class 11 Hindi)’ के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
7 तोड़ती पत्थर
लेखक-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
वह तोड़ती पत्थर;
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर –
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार:-
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार ।
चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू,
रूई-ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गईं,
प्राय: हुई दुपहर :-
वह तोड़ती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार;
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा-
‘मैं तोड़ती पत्थर ।’
इस पाठ के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैं एक युवती को देखा इलाहाबाद के सड़को पर की वह पत्थर तोड़ रही हैं। वहाँ कोई छाया नही है वह पेड़ के तले बैठी हुई आराम कर रही हैं। जिसका शरीर सावली है और उसकी शरीर सम्पुर्ण रूप से गठीली है यानी उसका शरीर भरा है दुबली-पतली नही हैं। वह अपना कार्य बहुत ही प्यार से आँखे नीचे कर काम कर रही है। मानो की उस काम को अपने सम्पूर्ण इच्छा से करती है। कवि कहते हैं कि वह अपने हाथों से भारी भरकम हथौड़ा को पत्थर पर बार-बार प्रहार करती है। उसके चारो तरफ पेड़ो की पंक्ति लगी हुई है जो उसके सामने वृक्षो से घिरा हुआ एक महल मालुम पड़ता है। Todti Patthar class 11 Hindi
कवि कहते हैं उस तपति धूप में वह स्त्री पत्थर तोड़ रही है। और ये देखकर कवि कहते हैं प्रतिदिन गर्मी का बढ़ता ही जा रह है। इतने गर्मी पड़ रही है जिससे की लगता है यह दिन इन लोगों पर यानी देशवासियों पर क्रोधित है। उसी दिन लुह इतनी ज्यादा निकलती है लगता है और धरती इसी तरह जल रही है जिस तरह रूई जलती है और जब धुल उड़ती है और शरीर पर लगती है तो ऐसा लगता है जैसे आग की चिंगाड़ी लगा हो और वह दोपहर के वक्त पत्थर तोड़ रही है। कवि कहते हैं कि वह पत्थर तोड़ने वाली औरत एक बार कवि की ओर देखती है फिर वह उस बड़े से भवन को देखती है तो वहाँ पत्थर तोड़ने वाला कोई नहीं दिखता है। कवि कहते हैं कि जब वह हमारे तरफ देखती है तो ऐसा लगता है कि जिस तरह मार खाने के बाद न रोने वाले बच्चों के आँखों में होता है यहाँ पर वह मजदूरनी (मजदूरी करने वाली) बिवसता मालूम पड़ती है। कवि कहते हैं कि जब मैं उसे देखा तो मन में सितारे के तार बज उठते हैं। कवि कहते हैं कि ऐसा झंकार कभी नहीं सुना था जो आज सुना। उस समय उसका शरीर काँप उठता है और उसके माथ से पसिना नीचे की ओर लुढ़क जाता है और फिर वह अपने काम में लीन हो जाती है। अपना काम पुनः करने लगती है यानी पत्थर तोड़ने लगती है।
Todti Patthar class 11 Hindi
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