इस पोस्ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 11 हिंदी के पद्य भाग के पाठ 2 ‘कबीर के पद की व्याख्या (Kabir ke pad Bihar Board class 11 Hindi)’ के सारांश और व्याख्या को पढ़ेंगे।
2.पद
लेखक-कबीर
पद – 1
संतो देखत जग बौराना ।
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ||
नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना ।
आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना ।।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितेब कुराना ।
कै, मुरीद तदबीर बतावै, उनमें उहै जो ज्ञाना ॥
भावार्थ- लेखक कबीर जी कहते हैं कि देखो यह संसार के लोग पागल सा हो गए। अगर सच बोलो तो मारने के लिए दौड़ते हैं और झुट बोलो तो सबकोई मान लेता है। बहुत ऐसे धर्म को पालन करने वालों को देखा जो सुबह उठते ही स्नान करते हैं। वे लोग जो अपने आत्मा को तकलिफ देते है या मारते हैं और पथरों की पूजा करते हैं। उनलोगों के पास किसी प्रकार का ज्ञान नहीं होता है वह अज्ञानी होते हैं। कबीर जी कहते हैं कि मैने बहुत ऐसे धर्म गुरू एवं संतो को देखा जो अपना धार्मिक किताब कुरआन पढ़ते हैं और अपने शिष्य एवं अपने छात्रों को अलग-अलग तरह-तरह के उपाय के बारे में बताते हैं जो उस पुस्तक में ज्ञान की बातें कही गई है।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीतर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना ।।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना॥
भावार्थ- वे लोग जो अपने अहंकार से अपने आसन पर बैठे हैं और मन में बहुत हीं ज्यादा घमंड परा है। कबीर दास जी कहते हैं कि वे जोग पितल, पत्थर को पुजते हैं और तीर्थ यात्रा को भुला जाते हैं अपने भगवान को भूल जाते हैं। कुछ लोग टोपी पहनते हैं तो कुछ लोग माला पहनते हैं। साथ हीं कुछ लोग तो तिलक भी लगाते हैं। और मानते हैं कि वे सब लोग साखी शब्द को गाना भूल गए हैं। अपने आत्मा के रहस्यमय को नहीं जानते हैं।
हिंदु कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना ।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना ।।
घर घर मंतर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना ।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अंत काल पछिताना ।।
कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना ।
केतिक कहौं कहा नहिं माने, सहजै सहज समाना ।।
भावार्थ- हिन्दु लोग कहते हैं हमारा राम प्यारा है और तुर्क कहे रहीम। और इसी बात को लेकर आपस में लड़ते हैं, और मारे जाते हैं। लेकिन किसी ने भी ईश्वर के बारे में नहीं जानना चाहा कि ईश्वर कौन है। वे घर-घर जाकर मंतर देते फिरते हैं क्योंकि उन्हें संसार के माया का बहुत हीं अभिमान होता है। और ऐसे गुरू व शिष्य सब अज्ञानता में डुबे हुए हैं। इन सबको अंतकाल में पश्तावा होगा। कबीर जी कहते हैं कि सुनों संतो, माया को सब कोई मानता है। और ईश्वर को भुला बैठे हैं इन्हें कितना हीं समझाओ ये नहीं मानेंगे। सच तो यह है कि इश्वर तो सहज साधना से भी मिल जाते है।
Kabir ke pad Class 11 Hindi Explanation
पद -2
माजी हो बलिया कब देखौंगी तोहि ।
अह निस आतुर दरसन कारनि, ऐसी ब्यापै मोहि ॥
नैन हमारे तुम्ह कूॅं चाहैं, रती न मानें हारि ।
बिरह अगिनि तन अधिक जरावै, ऐसी लेहु बिचारि ।।
भावार्थ- लेखक कबीर दास इस पंक्ति के माध्यम से कहते हैं कि हे प्रभु मैं आपको सब देखुंगा। यानी आपका दर्शन कब होगा। आपके दर्शन के लिए मैं रात-दिन व्यकुल रहता हुँ। अनुभव करता हुँ शायद दर्शन हो जाए। लेखक कहते हैं कि हे प्रभु हमारे आँखों की आपके चाहने की इच्छा इतनी है कि रात को भी आँखें बंद नहीं है। ये कभी हार नहीं मानती है। लेखक कहते हैं कि हे प्रभु आपके विनियोग की अग्नि में मेरा पुरा शरीर जल रहा है। और अब आप विचार कर लो कि मैं दर्शन के लायक हुँ या नहीं।
सुनहु हमारी दादि गुसाँई, अब जिन करहु बधीर ।
तुम्ह धीरज मैं आतुर स्वामी, काचै भांडै नीर ।।
बहुत दिनन के बिछुरै माधौ, मन नहिं बाँधै धीर ।
देह छताँ तुम्ह मिलहु कृपा करि, आरतिवंत कबीर ॥
भावार्थ- कबीर दास जी अपने बुरी स्थिति को बताते हुए निवेदन करते हैं ओर कहते हैं। हे प्रभु आप हमारी आवाज को सुनों इसे एक बहरे की तरह अनसुने मत करो। कबीर दास जी कहते हैं तुम धीरज हो और मैं अतुर स्वामी। मैं एक कच्चे घड़े की तरह हुँ जिस तरह पानी एक कच्चे घड़े को गलाकर पानी बाहर निकला जाता है ठिक उसी तरह मेरी स्थिति हो गई है। कबीर दास जी व्यकुलता पुर्वक कहते हैं कि प्रभु आपसे मिले बहुत दिन हो गए हैं अब मेरा मन नहीं लग रहा है। अन्त में कबीर जी कहते हैं। हे प्रभु आप हम पर दया किजिए बहुत जल्द दर्शन दीजिए।
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